Saturday, November 29, 2008

सबसे बड़ा शहीद

भारत में ऐसे नेता है , जिन्हें महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा जाना कुछ हजम नहीं होता , उनका कहना है - भारत माँ है , गाँधी तो उसके सपूत थे , पिता होने का प्रश्न ही कहां है ? वे पक्के हिन्दू थे और मुसलमानों का पक्ष लेते थे , इसलिए गोड़से उनसे बहुत नाराज रहा करता था लेकिन गोड़से अंग्रेजों से नाराज नहीं था , महात्मा गाँधी से नाराज था , वह देशभक्त था और देश के लिए उसने राष्ट्रपिता की जान ले ली और बदले में फाँसी पर झूल कर शहीद हो गया आज भी उसके कई हमखयाली उसकी शहादत से तुलना करते हैं यह देश भक्ति भी कितनी कुत्ती चीज है कि राष्ट्रपिता को गोली मारकर देशभक्त कहलाया जाए , आज भी ऐसे देशभक्त हैं , जो गोड़से को ठीक मानते हैं , बल्कि बिल्कुल ठीक मानते हैं अगर ऐसे देशभक्तों के हाथों मे सत्ता आ गई तो गोड़से सबसे बड़े देशभक्त व शहीद माने जायेंगे , हो सकता है कुछ सालों बाद संसद में उनके चित्र का अनावरण भी हो ।

लोकतंत्र के कलाकार


भारत में लोकतंत्र के सूत्रधार गाँधीजी थे । इसलिए सरकार के सभी कार्यालयों में महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है गांधीजी का विश्वास था कि यहां के सांसद, विधायक, मंत्री , मुख्यमंत्री , राष्ट्रपति आदि ढाई आने गज की खादी पहनेंगे । यही नहीं वे यह भी उम्मीद करते थे कि वे दो - चार घंटे सूत और उसी का धोती कुर्ता बनवा कर पहनेंगे । वे देश के आदर्श नागरिक होंगे जो दरिद्र नारायण और देश की सेवा में जुटे रहेंगे जिनके जीवन का ध्येय ही गरीबों का कल्याण होगा वे सादा जीवन , सादा भोजन और सादा निवास अपनायेंगे ।
लेकिन यह जरुरी तो नहीं कि जब पात्र मंच पर आयें तो वे सूत्रधार के अनुसार ही चले , पात्र कठपुतली तो है नहीं कि सूत्रधार की अंगुलियों पर नाचें । फिर ये तो जीवित पात्र थे , हाड - माँस के पुतले , इनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं थी , इनके अपने परिवार थे , नाते - रिश्तेदार थे , पुत्र - पुत्रियाँ थीं , जिनकी अपनी आकांक्षाएं थी । ऊँचे लोग ऊँचे लक्ष्य । लक्ष्य को आँख से ओझल मत होने दो । गांधीजी की तरह , लक्ष्य साधने में साधन और साध्य का विवाद मत लाओ , साधन को भूलो , साध्य को साधो , जायज - नाजायज का चक्कर छोड़ो मंच तुम्हारा है , जो चाहो सो दिखाओ , जनता को तो अन्तत: तालियाँ बजाना ही है ।
लोकतंत्र का कलाकार जानता है , वोट हासिल करना कितना मुश्किल है , लोगों को तोड़कर, तो कहीं जोड़कर , तो कहीं जोड़ - तोड़ कर वोट प्राप्त करने होते हैं , एक - एक सीट के लिए 50-50 लाख का दाँव लगाना पड़ता है और वेतन क्या मिलता है ? लोकतंत्र के कलाकार का वेतन - भत्ता भरपूर होना चाहिए ताकि वे लोकतंत्र में अपनी भूमिका ठीक तरह से निभा सके अबकि बार संसद इस मामले मे एक हो गई और उन्होनें अपने लिए इतने वेतन - भत्ते और पेंशन तय किये कि जीते जी कम नहीं पड़ेगी जब यह बिल संसद मेरे पास हुआ तो विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा । राष्ट्रीय एकता का अप्रतिम उदाहरण देखकर दीवार पर टंगे महात्माजी ने अपना चश्मा उतार , आँखे पौंछी और फिर चश्मा लगाकर यथावत फ्रेम मे फिट हो गये ।

Friday, November 7, 2008

रघुनाथ मिश्र की गजल



रघुनाथ मिश्र की गजल

कितने हो गये तबाह, हम तलाशेंगे ।
चश्मदीद कुछ गवाह हम तलाशेंगे ।
ठिठुर रहे हैं सर्द रात में, असंख्य जहाँ ,
वहीं पे गर्म ऐशगाह , हम तलाशेंगे ।
यहाँ ये रोज भूख - प्यास महामारी है ,
वहाँ पे क्यों है वाह -वाह , हम तलाशेंगे ।
खुलूस -ओ - प्यार की आबोहवा जहरने में ,
उठी है कैसे यह अफवाह , हम तलाशेंगे ।
जिन बस्तियों ने हर खुशी बाँटी उनमें ,
ठहरी है क्यों कराह, हम तलाशेंगे ।
बहते हुए दरिया का अचानक यूं ही ,
ठहरा है क्यों प्रवाह हम तलाशेंगे ।
चश्मदीद :- आखों देखा , ऐशगाह :- ऐयाशी की जगह , खुलूस -ओ - प्यार :- प्यार भरी सच्चाई , आबोहवा :- जलवायु

रघुनाथ मिश्र की गजलें





रघुनाथ मिश्र की गजलें
1
मुल्क की हालत , बड़ी गम्भीर है।
प्रश्नचिन्हों में घिरी , तस्वीर हैं ।
चल रहीं हैं , बे-नियंत्रित आँधियाँ,
गर्दनों पे घूमती , शमशीर है ।
आम जन हैं, हसरतों में मौत की,
जिंदगी कुछ खास की जागीर है।
मंजिलों की ओर बढ़ते पाँव को ,
रोकती वर्चस्व की , जंजीर है ।
उग रहे हैं भूख के , जंगल घने ,
मौसमों में दर्द की , तासीर है ।
आरजूएँ लुट गई , इन्सान की ,
चन्द सिक्कों में बिकी तदबीर है॥
शमशीर :- बीच में झुकी हुई तलवार , वर्चस्व :- तेज , प्रबलता , तदबीर :- उपाय , युक्ति