Sunday, October 31, 2010

बन्द दरवाजे

सुरेश शर्मा
श्यामलाल का परिवार सुखी परिवार में गिना जाता था रात को काम पर लौटने के बाद दोनो बेटों व बडी बहू के साथ खाना खाते समय टी वी आन कर लेते । सब मिल कर टी वी देखते हुए दिन भर के दुख-सुख व समाचारों का आदान-प्रदान देर तक करते रहते।श्यामलाल सेवानिवृति तथा पत्नी बिछोह के बावजूद कभी भी अकेलेपन का अहसास नही हुआ।
छोटे पुत्र की शादी हुई । दहेज में अन्य सामान के साथ रंगीन टी वी भी आया । श्यामलाल बच्चों के साथ चर्चा करने वाले थे कि दो टी वी का घर में क्या करेगें ? पुराना टी वी बेचकर नया टी वी रख लेंगे। उनका विचार बाहर आ पाता , उससे पूर्व ही छोटू के कमरे से नए टी वी की आवाज बाहर आ गई । खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। एक दिन बडा पुत्र अपने लिए नया टी वी ले आया । अब खाना भी उनके कमरे में जाने लगा।
एक रात अचानक श्यामलाल के सीने में जोर का दर्द उठा । शरीर पसीने से भीग गया । हाथ-पाव कापने लगे। घबराहट बढने लगी तो पानी पीने के लिए उठे । पैरों ने साथ नही दिया। लडखडा कर गिर पडे । दोनो पुत्रों को आवाज लगाई। बन्द दरवाजों से आती धारावाहिक तथा पाप संगीत की मिलीजुली तेज आवाजों में उनकी आवाज कहीं खो गई।
अन्धा मोड(सं-कालीचरण प्रेमी, पुष्पा रघु)-से साभार

Sunday, October 3, 2010

नाटककार शिवराम नहीं रहे




एक अक्टूबर
को अचानक हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई । वे 61 वर्ष के थे और उर्जा से भरपूर , जन - जन के लिए संघर्ष करने को तत्पर वे एक कुशल संगठनकर्ता , वक्ता और नाटककार थे । सीटू और सी.पी.एम. से आरम्भ कर राजस्थासीटू और एम. सी.पी. आई की यात्रा पूरी की वे एम.सी. पी. आई . के पोलतब्यूरों के सदस्य थे। विकल्प जनवादी सामाजिक सांस्कृतिक मोर्चा के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे , उनके जीवन काल में उनकी ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित हुई । साहित्य में वामपंथी रूझान वाले सभी संगठनों को साझा मंच पर लाने का वे अथक प्रयास करते रहे।
वे नाटककार तो अच्छे थे ही, कुशल अभिनेता भी थे । वे अपने परिवार में भी प्रिय थे उनका व्यवहार पारावारिक सदस्यों से मित्रता का था ऐसे आत्मीय जन का बिछुड़ना हृदय को दुख से भर देता है। मैं उन्हें हार्र्दिक श्रृद्धांजली अर्पित करते हुए उनके परिवार के प्रति आत्मीय संवेदना प्रकट करता हूW।
नाट~य संस्था ‘पलाश’ और ज्ञानसिंधु अपने श्रृद्धा सुमन उन्हें अर्पित करता है।