Saturday, January 29, 2011

एक ध्रुवीय विश्व में नाटो का औचित्य

नोम चोमस्की

तकरीबन २० साल पहले बर्लिन की दीवार के ध्वस्त होने के प्रतीक के साथ सोवियत संघ के पतन ने बहुत साफ तौर पर एकध्रुवीय विश्व  की स्थापना कर दी। जिसमें अमेरिका अब पहले की तरह एक प्रमुख महाशक्ति नहीं बल्कि एकमात्र महाशक्ति के रूप में रह गई थी ।
मौजूदा विश्व  व्यवस्था एक मामले में एकध्रुवीय बनी हुई है और वह है ताकत का मामला। अमेरिका अपनी सैन्य क्षमता पर लगभग इतना खर्च करता है जितना दुनिया के सारे देश  मिलजुल कर अपनी सैन्य क्षमता पर खर्च करता है। वह विध्वंस की टैक्नॉलोजी से अन्य देशो   के मुकाबले बहुत ही आगे है।
अमेरिका इस मामले में भी अकेला देश है जिसके दुनिया के विभिन्न देशो में सैकड़ों सैनिक अड्‌डे हैं और जिसने उर्जा का उत्पादन करने वाले दो क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में रख रखा है।

अभी तक नाटो के अस्तित्व को न्यायोचित ठहराने के लिए सोवियत संघ को सामने रख दिया जाता था और कहा जाता था कि यह सोवियत आक्रमण से बचाव के लिए है। सोवियत संघ के विघटन के बाद यह बहाना भी खत्म हो गया। लेकिन नाटो को बचाकर रखा गया और उस नये सांचें में ढालकर अमेरिका की तरफ से हस्तक्षेप करने वाली विशेष ताकत के रूप में स्थापित किया गया । जाहिर है इसके साथ ही उर्जा पर नियंत्रण का विशेष सरोकार भी प्रकाशित  किया गया।


( समकालीन तीसरी दुनिया /अक्टुबर -दिसम्बर २०१० से साभार)

Monday, January 3, 2011

'बेलदार को स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान'

 झारखंड के प्रतिष्ठित शिक्षन संस्थान स्पेनिन रांची द्वारा हिन्दी साहित्य की समृद्धि में योगदान के लिए श्याम कुमार पोकरा के उपन्यास 'बेलदार' को स्पेनिन साहित्य गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पिछले दस वर्षो में प्रकाशीत हिन्दी उपन्यासों में स्पेनिन द्वारा बेलदार को सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया गया है।
दिनांक २७ नवम्बर २०१० को एक भव्य समारोह में रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. शीन अखतर व रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की निदेद्गाक डॉ. ऋता शुक्ल ने ग्यारह हजार एक रूपये का चेक, , स्मृति चिन्ह, प्रद्गास्ति पत्र में स्पेनिन ने कहा कि प्राप्त कुल छत्तीस उपन्यासों में से बेदार को सर्वश्रेष्ठ कृति चुना गया है। निर्णायक मंडल की वरिष्ठ सदस्य डॉ. माया प्रसाद ने बेलदार पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि यह उपन्यास राजस्थान की पत्थर की खदानों के मजदूरों की जीवन परिस्थतियों को बहुत ही सुक्ष्मता पूर्वक प्रस्तुत करता है।