tag:blogger.com,1999:blog-8598379541054488135.post5257609247801801325..comments2023-10-16T00:14:00.526-07:00Comments on ज्ञानसिंधु: मकड़ियाँभगीरथhttp://www.blogger.com/profile/11868778846196729769noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8598379541054488135.post-90332809599088706042010-07-25T10:27:43.435-07:002010-07-25T10:27:43.435-07:00बहुत अच्छी रचना । यह व्यवस्था सचमुच मकडी जैसी ही,...बहुत अच्छी रचना । यह व्यवस्था सचमुच मकडी जैसी ही, जो जाला बुनती है जिसमें सबसे ज्यादा फंसता है निम्न मध्यम वर्ग का व्यक्ति।उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8598379541054488135.post-36121348798974351532009-09-03T10:07:33.691-07:002009-09-03T10:07:33.691-07:00''मकड़ी !''
बेहतरीन ......''मकड़ी !'' <br /><br />बेहतरीन ......प्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8598379541054488135.post-70013400754286115102009-08-31T20:55:55.391-07:002009-08-31T20:55:55.391-07:00आपने बिल्कुल सही और सांगोपांग वर्णन कर दिया है
व...आपने बिल्कुल सही और सांगोपांग वर्णन कर दिया है<br />वाकई मकड़ी !<br />एक ऐसी मकड़ी जो प्रतिपल बस जाल बुनती है<br />अपने भोजन के लिए दूसरों का काल बुनती है<br />वाह !<br />बहुत ख़ूब लघुकथा....बधाई !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.com