Sunday, April 26, 2009

मैत्रेयी पुष्पा के साक्षात्कार के अंश

http://anyatha.com/. से मैत्रेयी पुष्पा के साक्षात्कार के अंश

इसे फ़रोग की कविता के साथ पढें
ज्ञानसिन्धु पोस्ट दिनांक 23. 4. 09


संवाद

कहने का मतलब यह है कि प्यार से लबरेज आंखे लिए ही में जीवन में आने वाली आंधियों का सामना कर सकी हूं और हर पुस्तक रचना मे जता रही हूँ कि स्त्री प्रेम की मिट्टी से बनी होती है । उसके प्यार को अवैध कहना औरत की जिंदगी का अपमान है । देखिए कि वह अपने प्रेम में उस पति को भी शामिल कर लेती है जो उसके जीवन में उसकी मर्जी से नहीं आया । मगर समाज सोचता है कि वह इस स्वीकृति के साथ अपने आप को भौतिक और नैतिक रूप से निष्क्रिय माने । पुरुष को मीत नहीं , ईश्वर की तरह पूजे और मनुष्यगत प्रतियोगिताओ को छोड़ती चली जाये । मकसद यही हुया न कि वह अपने प्रेम को मारती चली जाये , जो उसकी अन्दरूनी ताकत होता है । स्त्री की इस नैसर्गिकता को पाप कहा , अपराध कहा । प्रेम के कारण उसके कुंआरेपन को लाँछित किया और विवाहेतर संबध बताकर व्यभिचार के खाते में डाल दिया ।

Thursday, April 23, 2009

पाप

http://setusahitya.blogspot.com/से

फ़रोग फ़रोखज़ाद की एक कविता
अनुवाद एवं प्रस्तुति : यादवेन्द्र
कविता के
साथ चित्र : अवधेश


पाप
बाँहों मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
समा गई गर्म और उत्तप्त में
मुझसे पाप हो गया
पुलकित, बलशाली और आक्रामक बाँहों में।
एकांत के उस नीरव कोने में
मैंने उसकी रहस्यमयी आँखों में देखा
सीने में मेरा दिल ऐसे आवेग में धड़का
उसकी आँखों की सुलगती चाहत ने
मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में
जब मैं उससे सटकर बैठी
अंदर का सब कुछ बिखर कर बह चला
उसके होंठ मेरे होंठों में भरते रहे लालसा
और मैं अपने मन के
तमाम दुखों को बिसराती चली गई।
मैंने उसके कान में प्यार से कहा –
मेरी रूह के साथी, मैं तुम्हें चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ तुम्हारा जीवनदायी आलिंगन
मैं तुम्हें ही चाहती हूँ मेरे प्रिय
और सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में।
चाहत कौंधी उसकी आँखों में
छलक गई शराब उसके प्याले में
और मेरा बदन फिसलने लगा उसके ऊपर
मखमली गद्दे की भरपूर कोमलता लिए।
मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
उस देह के बारूद में लेटी हूँ
जो पड़ा है अब निस्तेज और शिथिल
मुझे यह पता ही नहीं चला हे ईश्वर !
कि मुझसे क्या हो गया
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में।
(‘अहमद करीमी हक्काक’ के अंग्रेजी अनुवाद से)
फ़रोग फ़रोखज़ाद

Friday, April 10, 2009

वैज्ञानिक दृष्टिकोण



वैज्ञानिक दृष्टिकोण
नेहरुजी चाहते थे कि यह पुराना हिन्दुस्तान, जो विश्वास में डूबा है विज्ञान में उन्नति के शिखर चूमे । वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर अपनी जीवन शैली को वैज्ञानिक -दृष्टि सम्पन्न बनाएं । हुआ भी वही , बडे -बडे बाँध बने ,बिजली घर बने ,बडे-बडे उद्योग खुले ,शोध शालाएँ खुली , इंजीनियरिंग व मेडिकल कालेज खुले , विद्यार्थी पढे , कुछ विदेश चले गये ,जो नहीं जा सके वे मन मसोस कर यहीं सरकार की खिदमत करते रहे ।
हमारे वैज्ञानिकों का यह हाल है कि माशहअल्ला क्या कहें ! न वे अपनी संस्कृति छोड़ सकते हैं न अपने संस्कार और विश्वास ,वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी नहीं छोड सकते । अतः जिस तरह हमने अर्थशास्त्र में मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसी नायाब धारणा का विकास किया , करीब वैसी ही नायाब सोच हमारे वैज्ञानिकों ने विज्ञान और विश्वास के मिश्रण में देखी । पूरब और पश्चिम का अदभूत मिलन । उद्योग लगे तो भूमिपूजन हो, मशीन लगे तो नारियल फ़ूटे , प्रसाद जरुर बंटे ,अगरबत्तियाँ और दीप जरुर प्रज्जवलित हो , पंडित जरुर मंत्र पढे अब यह सब न हो तो वैज्ञानिकों पर संस्कृति विहीन और संस्कार-हीन होने का आरोप लगेगा ।
एक बार हमारे मन में आई कि पंडत तू संस्कृत पढा है , धर्म की किताबे पढी , बच्चों की पुस्तकों से विज्ञान भी पढ़ ही रहा है , तो मन में एक दुविधा उठी कि सूर्य ग्रहण , राहु-केतु जब सूर्य को ग्रस लेते है , तब होता है या विज्ञान के अनुसार सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्र के आने से होता है , तो हमने यह दुविधा चीफ़ इंजीनियर के सामने रखी। वे हनुमान भक्त थे , अक्सर मंदिर में भेंट होती थी , कुछ धार्मिक चर्चा भी होती थी , जब कभी जरुरत पडती प्रोजेक्ट में पूजन करने चला जाता , विश्वकर्मा पूजा तो होती ही है. चीफ़ साहब आप इन दोनों दृष्टिकोण में सामंजस्य कैसे बिठाते है ? वे बोले -इट्स वेरी सिम्पल धर्म को धर्म की तरह मानो और विज्ञान को विज्ञान की तरह । बस नो प्राब्लम ।
गैलिलियों ने कहा- पृथ्वी सूरज के चारों ओर चक्कर काटती है जबकि विश्वास कहता है ,सूरज पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है वह बेकार अपनी बात पर अडा रहा , जिससे उसे जेल की हवा खानी पडी हमें देखिये कि हम धर्म का प्रसाद भी खा रहे है , और विज्ञान के लड्डू भी। पंडित जी अपनी दुविधा यहीं छोडिये ,सबसे बडा सिध्दांत है कि आपके दोनों हाथों में लड्डू है या नहीं ।

प्रार्थना
पडोसी ने प्रभु से प्रार्थना की -हे भगवान ! मेरे प्रिय पडोसी के यहाँ महान देशभक्त पैदा हो ।
दूसरे पडोसी ने प्रार्थना की - हे भगवान! मेरे जीवन का कोई भी पूण्य हो तो मेरे घर चद्रास्वामी जैसा व्यक्ति पैदा हो।
तभी आकाशवाणी हुई ।
'वत्स,तुम्हारे पडोसी ने तुम्हारे लिए जो प्रार्थना की थी मैंने स्वीकार करली है , क्योंकि उसकी प्रार्थना अच्छी थी'
'कौन-सी प्रार्थना भगवान ?
यही की स्वतंत्रता की 50वीं वर्ष गांठ पर तुम्हारे घर महान देशभक्त पैदा हो ।
'मैं लुट जाऊँगा प्रभु ! आप मेरी सुनिये । पडोंसी तो जलन और ईर्ष्या के मारे प्रार्थना कर रहा है ।
'सोच लो,देशभक्ति सर्वोच्च गौरव है ।
'इसमें क्या सोचना ,्मैं अपनी संतान को पांचसितारा संस्कृति में फ़ली-फ़ूली देखना चाहता हूँ ,तिहाड जेल में नहीं
'चद्रास्वामी भी तो तिहाड जेल में थे
'लेकिन भगवान वे वहाँ भी पाँचसितारा सुविधा में थे ।
'मैं तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ ,जरा खुलासा करो।
'भगवान आप तो अंर्तयामी है, इस मूर्ख की बुध्दि पर तरस खाएँ इतना तो सभी जानते है कि क्रान्तिकारी स्वंय तो यातनाएँ झेलकर , बेमौत मारा जाता है उसके परिवार के लोगों को भी वह जीवनभर दुख ही देता है ।