इसे फ़रोग की कविता के साथ पढें
ज्ञानसिन्धु पोस्ट दिनांक 23. 4. 09
संवाद
कहने का मतलब यह है कि प्यार से लबरेज आंखे लिए ही में जीवन में आने वाली आंधियों का सामना कर सकी हूं और हर पुस्तक रचना मे जता रही हूँ कि स्त्री प्रेम की मिट्टी से बनी होती है । उसके प्यार को अवैध कहना औरत की जिंदगी का अपमान है । देखिए कि वह अपने प्रेम में उस पति को भी शामिल कर लेती है जो उसके जीवन में उसकी मर्जी से नहीं आया । मगर समाज सोचता है कि वह इस स्वीकृति के साथ अपने आप को भौतिक और नैतिक रूप से निष्क्रिय माने । पुरुष को मीत नहीं , ईश्वर की तरह पूजे और मनुष्यगत प्रतियोगिताओ को छोड़ती चली जाये । मकसद यही हुया न कि वह अपने प्रेम को मारती चली जाये , जो उसकी अन्दरूनी ताकत होता है । स्त्री की इस नैसर्गिकता को पाप कहा , अपराध कहा । प्रेम के कारण उसके कुंआरेपन को लाँछित किया और विवाहेतर संबध बताकर व्यभिचार के खाते में डाल दिया ।