देवेन्द्र रिणवा
इन्दौर के पास महूगांव में जन्म
स्नातकोत्तर तक औपचारिक शिक्षा
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाशवाणी से रचनाएँ प्रकाशित - प्रसारित
1
हाँ-नहीं
हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगुनी ताक़त लगती है
नहीं बोलने में
हाँ बोलना यानि
शीतल हवा हो जाना
नहीं बोलना यानि
गरम तवा हो जाना
हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नहीं करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है
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2
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दो या तीन लोग
जमा करते हैं
घास-फूस, रद्दी कागज़,
टूटे खोखे, गत्ते, छिलपे
घिसे टायर
और तमाम फालतू चीज़ें
जलाया जाता है अलाव
एक एक कर जुटते हैं लोग
जमता है कोई इंर्ट पर
पत्थर पर कोई
आसपास हो तो
मुड्ढ़ा या कुर्सी भी
कुछ न हो तो
पंजे के बल
थकने पर
जूते या चप्पल पर
हैसियत के मुताबिक
जगहें होती है
जिस और होता है
धुएँ का ज़ोर
अक्सर उधर
बैठता है कमज़ोर
जो बीच बीच में उठता है
लाता है बलीतन
खेती, गृहस्थी, धंधा,
निंदा, धर्म, राजनीति
एक एक कर सभी हाजिर होते हैं
बेशक चिन्ता भी
पर अलाव का ताप
खदेड़ देता है उसे
खोई छिलपे को
खड़ा करता है
तोड़ने लगता है कोई अंगारे
ऊपर की जलती हुई लकड़ी को
नीचे घुसेड़ता है कोई
लपट उठाने के लिए
फ़ूंकता है कोई
आंसू आ जाने तक
गऱज़ ये कि
कुरेदे बगैर कोई बैठा नहीं होता
अलाव के आगे
कुरेदा नहीं जाता
जब अलाव
तो जमने लगती है राख
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3
यह जो तरल है
यह जो तरल है
इसमें गति भी है, शक्ति भी
बहता आया है यह सदियों से
हमारे मन, मस्तिष्क में
सींचता आया है सम्बन्धों को
जरूरत पड़ने पर तोड़ा है इसने
बन्धनों को
बहा ले जाता है
कूड़ा-करकट और गन्दगी
अनावश्यक संग्रह और
ख़तरनाक होती बन्दगी
सभ्यताएँ इसके किनारे पर
हुई हैं विकसित और ध्वस्त
इतिहास तैरता रहा है
इसकी धारा में
और यह बहता रहा है
दो किनारों के बीच
बनकर मध्यस्थ
इसके होने से ही होती है
आंख में भेदने की ताक़त
कलम में चीख़ने की
यह न होता तो आदमी
नहीं पहनता कपड़े
न तमीज़ सीखता
नहीं बोलने की
यह बहता है
तो पैदा होती है ऊर्जा
नृत्य करता है सृजन
कुलबुलाने लगती है कुंठाएँ
ठहरने लगता है जीवन
यह जो तरल है
गाढ़ा होता जा रहा है लगातार
इसे पिघलाने लिये
ज़रूरी है
सम्बन्धों की ऊष्मा
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