किस्सा स्थानीय पत्रकार का
हमारे कस्बें में एक पत्रकार है जो राजधानी से प्रकाशित होने वाले एक प्रमुख हिन्दी अखबार में पत्रकार हैं । अखबार राज्य स्तर का है इसलिए पत्रकार का स्तर भी राज्य स्तर का है । उन्हें अखबार से कोई वेतन नहीं मिलता फिर भी ठाठ से रहते हैं , हजारों रूपये महीने का खर्चा है , आफीस है टेलीफोन है अब फैक्स भी है इज्जतदार लोगों से उनके ताल्लुक है । अखबार के मालिक बहुत होशियार, मुख्य समाचार तो समाचार एंजेंसी से लेते हैं और फी के स्थानीय पत्रकार रख लेते हैं जो गाहक बनाते हैं , पेपर बांटते हैं , विज्ञापन बुक करते हैं और स्थानीय खबरें भेजते हैं । स्थानीय खबरों में थाने - कचहरी की खबरें, कौन गिरफतार हुआ, कोर्ट ने किसको रिहा किया या सजा दी ; मन्त्रियों, अधिकारियो और राजनेताओं के दौरों की खबरें , उदघाटन - शिलान्यास की खबरें धार्मिक व जाति संगठनों की खबरे, दुर्घटना और हादसों की खबरें , कांगस व भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाईयों के छुटमयै नेताओं द्धारा मुख्यमंत्री, मन्त्री यहा तक की प्रधानमन्त्री को ज्ञापन चिठठी देकर स्थानीय समस्याओं का समाधान करने की अपील , जैसी खबरें होती हैं , जो अखबार के खाली कालमों को भरने के काम आती है , जिससे अखबार की बिक्री भी बढ़ती है पत्रकार को एक काWलम में चार इंच की न्यूज का पैसा मिल जाता है विज्ञापन पर भी कमीशन मिलता है लेकिन कमाइ 500 -700 से आगे नहीं बढ़ती । उन्हे अखबार की कमाई से मतलब नहीं है । उनके पास अखबार का दिया पहचान पत्र है जो सरकारी क्या निजी बसों में भी आने - जाने के काम आता है । किसी सरकारी डराना धमकाना हो तो भी पहचान पत्र काम आता है । थाने में तो इस पहचान पत्र की बहुत भूमिका है । कई मामले थाने में रफा दफा करवाकर अपना कमीशन प्राप्त करते हैं । ऐसे ही वे कभी तहसील चले जायेंगे , तहसील के कर्मचारियों पर हाथ रखेंगे , ट्रांसफर की धमकी देंगे , बड़े ही शिष्ट अंदाज में तब तहसीलदार पत्रकार की सेवा करने लगेगा । , वो तहसीलदार जो दूसरों की जेब काटता है , पत्रकार उसकी भी काट लेता है इस मामले में ये ठीक करता है कम से कम समाजवादी कार्य तो करता है । ऐसे कई ठिये हैं मसलन शराब का ठेकेदार , जुआघर के मालिक , नगरपालिका के चेयरमेन , पी.डब्लू डी के इन्जीनियर , सिंचाई विभाग व बिजली विभाग के ईंजीनियर । जैसे उनकी सब कोई सेवा करते हैं जो नही करते वे उनके बहमास्त्र के शिकार हो जाते हैं । उनका बहमास्त्र है आपके खिलाफ न्यूज लगा दूंगा । क्योंकि लोग बदनामी से डरते हैं । कुछेक शरीफ इसलिए डरते है कि नंगों से कौन पंगा ले । लेकिन अधिकतर तो दो नम्बर की कमाई वाले ही होते हैं , जिस पर वे इनकम टेक्स तक नहीं देते ऐसे में पत्रकार अपना चार्ज वसूल कर लेता तो बुरा क्या है । जो सेवा करने नहीं पहुचते उनके बारें में न्यूज लगा देते है, इस वास्ते पार्टियों के संगठन काम आते है। विरोधी लोग स्वयं पत्रकार को अधिकारी @ नेताओं की पोल पटटी मय सबूत देते हैं । पत्रकार महोदय उन सबूतों के फाटो स्टेट कापी संबधित अधिकारी के पहुचा देते है। फिर टेलीफोन पर उनके भले की बात कह देते हैं कि सच्चाई जानने के लिए वे दूसरे पक्ष से भी तथ्यों की जानकारी कर लेना जरूरी समझते हैं सो दूसरा पक्ष आतंकित हो सेवा करने पहुच जाता है ।
स्थानीय पत्रकार ने अधिशाषी अभियंता को फोन किया ‘हेलो एक्स.ई.एन. साब कहिए क्या ठाठ है ‘आपकी मेहरबानी है साहब बोले ’ ‘लेकिन आपकी तो मेहरबानी होती ही नहीं’ स्वर व्यंग्यपूर्ण था कहिए क्या सेवा करूं । सेवा का आपने अवसर दिया ही नहीं , सुना है से भरा एक ट्रक स्टोर से रवाना होकर सीधे साहब के बन रहे नये बंगले पर खाली हुआ है, अब यह लगायें कि ये बंगला कौन से साहब का बन रहा हैं ’ पत्रकार का सीधा लक्ष्य अधिशाषी अभियंता ही थे । परन्तु मजाल है एक बार में ही बात तय की जाकर सौदा पटाया जाये । अधिशाषी अभियंता भी कम घाघ नहीं था। सो उन्होनें पत्रकार महोदय को डिनर पर बुलाकर बताया कि देखों अगर पैसे में सौदा पटाओगे तो नुकसान में रहोगे , ज्यादा से ज्यादा पाच हजार , बस केवल एक बार की कमाई और फिर !पत्रकार हाथों पर चेहरा टिकाये उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे थे । ‘फिर मेरी भी जेब खाली क्यों हो ! सरकारी तिजोरी लबालब भरी है , एक मुठठी मैने निकाली और अगर एक मुठठी आप निकाल लेंगें तो कौनसी तिजोरी खाली हो जायेगी। गंगोत्री से एक लोटा पानी पी लेने से गंगोत्री थोड़े ही सूख जायेगी । ‘तो कैसे क्या किया जाये ! पत्रकार लालायित हो बोले । ‘अभी बगीचों में मिट्टी डालने का टेन्डर निकला है ‘टेंडर मैं भरवा देता हू , काम भी मैं करवा दूंगा तुम तो अपना 20 प्रतिशत प्रोफिट ले लेना ।’ ‘ऐसा हो जायेगा ! ‘हां क्यों नहीं । फिर ऐसे टेंडर निकलते ही रहते है। जैसे देशी खाद लाने के , गडडा खोदने के पेड़ लगाने के , मेरे साथ रहे तो साल में डेढ़ दो लाख की कमाई करवा दूंगा । ‘सच’ उनकी आखें चमक उठी । इससे पत्रकार की स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें भी अपराधियों की गेंग में शामिल कर हमेशा के लिए चुप कर दिया ।
हमारे कस्बें में एक पत्रकार है जो राजधानी से प्रकाशित होने वाले एक प्रमुख हिन्दी अखबार में पत्रकार हैं । अखबार राज्य स्तर का है इसलिए पत्रकार का स्तर भी राज्य स्तर का है । उन्हें अखबार से कोई वेतन नहीं मिलता फिर भी ठाठ से रहते हैं , हजारों रूपये महीने का खर्चा है , आफीस है टेलीफोन है अब फैक्स भी है इज्जतदार लोगों से उनके ताल्लुक है । अखबार के मालिक बहुत होशियार, मुख्य समाचार तो समाचार एंजेंसी से लेते हैं और फी के स्थानीय पत्रकार रख लेते हैं जो गाहक बनाते हैं , पेपर बांटते हैं , विज्ञापन बुक करते हैं और स्थानीय खबरें भेजते हैं । स्थानीय खबरों में थाने - कचहरी की खबरें, कौन गिरफतार हुआ, कोर्ट ने किसको रिहा किया या सजा दी ; मन्त्रियों, अधिकारियो और राजनेताओं के दौरों की खबरें , उदघाटन - शिलान्यास की खबरें धार्मिक व जाति संगठनों की खबरे, दुर्घटना और हादसों की खबरें , कांगस व भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाईयों के छुटमयै नेताओं द्धारा मुख्यमंत्री, मन्त्री यहा तक की प्रधानमन्त्री को ज्ञापन चिठठी देकर स्थानीय समस्याओं का समाधान करने की अपील , जैसी खबरें होती हैं , जो अखबार के खाली कालमों को भरने के काम आती है , जिससे अखबार की बिक्री भी बढ़ती है पत्रकार को एक काWलम में चार इंच की न्यूज का पैसा मिल जाता है विज्ञापन पर भी कमीशन मिलता है लेकिन कमाइ 500 -700 से आगे नहीं बढ़ती । उन्हे अखबार की कमाई से मतलब नहीं है । उनके पास अखबार का दिया पहचान पत्र है जो सरकारी क्या निजी बसों में भी आने - जाने के काम आता है । किसी सरकारी डराना धमकाना हो तो भी पहचान पत्र काम आता है । थाने में तो इस पहचान पत्र की बहुत भूमिका है । कई मामले थाने में रफा दफा करवाकर अपना कमीशन प्राप्त करते हैं । ऐसे ही वे कभी तहसील चले जायेंगे , तहसील के कर्मचारियों पर हाथ रखेंगे , ट्रांसफर की धमकी देंगे , बड़े ही शिष्ट अंदाज में तब तहसीलदार पत्रकार की सेवा करने लगेगा । , वो तहसीलदार जो दूसरों की जेब काटता है , पत्रकार उसकी भी काट लेता है इस मामले में ये ठीक करता है कम से कम समाजवादी कार्य तो करता है । ऐसे कई ठिये हैं मसलन शराब का ठेकेदार , जुआघर के मालिक , नगरपालिका के चेयरमेन , पी.डब्लू डी के इन्जीनियर , सिंचाई विभाग व बिजली विभाग के ईंजीनियर । जैसे उनकी सब कोई सेवा करते हैं जो नही करते वे उनके बहमास्त्र के शिकार हो जाते हैं । उनका बहमास्त्र है आपके खिलाफ न्यूज लगा दूंगा । क्योंकि लोग बदनामी से डरते हैं । कुछेक शरीफ इसलिए डरते है कि नंगों से कौन पंगा ले । लेकिन अधिकतर तो दो नम्बर की कमाई वाले ही होते हैं , जिस पर वे इनकम टेक्स तक नहीं देते ऐसे में पत्रकार अपना चार्ज वसूल कर लेता तो बुरा क्या है । जो सेवा करने नहीं पहुचते उनके बारें में न्यूज लगा देते है, इस वास्ते पार्टियों के संगठन काम आते है। विरोधी लोग स्वयं पत्रकार को अधिकारी @ नेताओं की पोल पटटी मय सबूत देते हैं । पत्रकार महोदय उन सबूतों के फाटो स्टेट कापी संबधित अधिकारी के पहुचा देते है। फिर टेलीफोन पर उनके भले की बात कह देते हैं कि सच्चाई जानने के लिए वे दूसरे पक्ष से भी तथ्यों की जानकारी कर लेना जरूरी समझते हैं सो दूसरा पक्ष आतंकित हो सेवा करने पहुच जाता है ।
स्थानीय पत्रकार ने अधिशाषी अभियंता को फोन किया ‘हेलो एक्स.ई.एन. साब कहिए क्या ठाठ है ‘आपकी मेहरबानी है साहब बोले ’ ‘लेकिन आपकी तो मेहरबानी होती ही नहीं’ स्वर व्यंग्यपूर्ण था कहिए क्या सेवा करूं । सेवा का आपने अवसर दिया ही नहीं , सुना है से भरा एक ट्रक स्टोर से रवाना होकर सीधे साहब के बन रहे नये बंगले पर खाली हुआ है, अब यह लगायें कि ये बंगला कौन से साहब का बन रहा हैं ’ पत्रकार का सीधा लक्ष्य अधिशाषी अभियंता ही थे । परन्तु मजाल है एक बार में ही बात तय की जाकर सौदा पटाया जाये । अधिशाषी अभियंता भी कम घाघ नहीं था। सो उन्होनें पत्रकार महोदय को डिनर पर बुलाकर बताया कि देखों अगर पैसे में सौदा पटाओगे तो नुकसान में रहोगे , ज्यादा से ज्यादा पाच हजार , बस केवल एक बार की कमाई और फिर !पत्रकार हाथों पर चेहरा टिकाये उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे थे । ‘फिर मेरी भी जेब खाली क्यों हो ! सरकारी तिजोरी लबालब भरी है , एक मुठठी मैने निकाली और अगर एक मुठठी आप निकाल लेंगें तो कौनसी तिजोरी खाली हो जायेगी। गंगोत्री से एक लोटा पानी पी लेने से गंगोत्री थोड़े ही सूख जायेगी । ‘तो कैसे क्या किया जाये ! पत्रकार लालायित हो बोले । ‘अभी बगीचों में मिट्टी डालने का टेन्डर निकला है ‘टेंडर मैं भरवा देता हू , काम भी मैं करवा दूंगा तुम तो अपना 20 प्रतिशत प्रोफिट ले लेना ।’ ‘ऐसा हो जायेगा ! ‘हां क्यों नहीं । फिर ऐसे टेंडर निकलते ही रहते है। जैसे देशी खाद लाने के , गडडा खोदने के पेड़ लगाने के , मेरे साथ रहे तो साल में डेढ़ दो लाख की कमाई करवा दूंगा । ‘सच’ उनकी आखें चमक उठी । इससे पत्रकार की स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें भी अपराधियों की गेंग में शामिल कर हमेशा के लिए चुप कर दिया ।