पूरन मुदगल
''बहुत मोटी है यह बाल।'' उसने किसान से कहा । किसान ने बाल से कुछ दाने निकालकर अपने हाथ पर रखे और बेमन से कहा, ''देखो''
देखते -देखते सब दाने दो - दो टुकड़ो में खिल गए। अजनबी हैरान हुआ, पूछा, ''ये दाने साबुत क्यों नहीं रहे ? ''
''यह नए बीज की फसल है । पिछले पांच सालों से हम यही खा रहे हैं।चार -पांच गुना झाड है इसका, लेकिन....''
किसान के चेहरे पर अनजाने में किसी गलत दस्तावेज पर किए दस्तखत जैसी लिखाई उभरी।
''क्या ....?
''यह बीज विदेशी हैं।मेरे बेटे इसे बाहर से लाए है। इसकी फसल तो अच्छी होती है , पर बीज के काम नहीं आती।''
क्यों ?''
''देखा नहीं तुमने ! बाल से निकलते ही हरेक दाने के दो टुकड़े हो जाते हैं। मेरे लडके निक्का और अमली चोरी छिपे ले आते हैं यह बींज''
''लेकिन जिस फसल से बीज न बने , वो किस काम की !किसी साल विदेश से बीज ने आया तो......? अजनबी ने वही बात कह दी जो किसान की परेशानी की बायस बनी हुई थी। लोग फसल काटने में व्यस्त थे। निकट ही हवा में तैर रही ढोल की आवाज किसान को अप्रिय लगी। वह अपनी हथेली पर रखे गेंहू के टुकड़ा -टुकड़ा दानों को देखने लगा, जिनका धरती से रिश्ता टूट गया था।