मकान
रमेश जैन
मैं अब इस का सामना नहीं कर सकता । मेरी अंतिम इच्छा है कि
मकान के तले दबकर मर जाउं।
अब इस मकान का
अल्लाह ही मालिक है।
इस मकान में शांति
नाम की कोई चिडि़या नहीं चहकती । शांति के विषय में मेरी कोई व्याख्या नहीं है।
बरसों पहले आदर्शवादिता
ने इस मकान में जन्म लिया। तब से लेकर यह मकान इसी स्वप्नमयी का शिकार बन धंसता
चला जा रहा है।
यह मकान लक्ष्मी द्वा्रा शापित है ।इस मकान में कई सारे
लोगों ने मिलकर लक्ष्मी का शीलहरण किया है।
यदि यह मकान थोड़ा और पुराना होता तो अब तक खण्डहर भी नहीं
रहता ।
इस मकान पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। तिस पर भी यह मकान
मुझसे काफी अपेक्षाएं रखता है । इसकी एक भी इंट उखड़ना मेरे लिए अभिषाप बन
जायेगा।
यह मकान वीर्य -पुन्ज है । इस मकान की दो उत्तराधिकारिणियां
है - एक मकान के अंदर वाली दूसरी बाहर वाली। बाहर -वाली शगुफा है तो अंदर वाली
अंधेरी गुफा । एक इस मकान को चबा डालना चाहती है तो दूसरी डसना ।
नदी तूफानी है। मस्तूल डूब रहा है। किनारे पर खड़े लोग तमाशा
देख रहे है।