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भगीरथ परिहार की कहानी पुस्तक 'बाजीगर' की समीक्षा
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अपने समय और समाज
के विविध पक्षों का दृश्यमान स्वरूप है - ' बाजीगर '
- विजय जोशी
- विजय जोशी
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अपने आस-पास के
वातावरण का सूक्ष्म अवलोकन करने और संवेदना को आत्मसात करने के पश्चात् व्यक्ति जब
उस परिवेश में स्वयं को टटोलता हुआ यात्रा करता है तो उसे कई पड़ावों से होकर बढ़ना
होता है।ये बढ़ते कदम उसे विविध अनुभवों का पुञ्ज प्रदान करते हैं वहीं उसकी
अनुभूति को केन्द्रित कर वैचारिक दायरे को विस्तृत करते हैं। इन सन्दर्भों को जब
एक लेखक आत्मसात करता है तो उसके लेखन की गति और दिशा सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर
प्रवाहित होने लगती है।
कथाकार भगीरथ परिहार ने इन सन्दर्भों को अपने भीतर और बाहर में समन्वित किया और लघुकथाओं की धारा को विस्तृत कैनवास प्रदान किया। जब एक लघुकथाकार की सूक्ष्म दृष्टि संवेदना के विविध आयामों को रेखांकित करती हुई व्यापकता की ओर अग्रसर होती है तो कहानी का रूप धारण करती है जिसमें विवेचना और विश्लेषण की दुधारी भाषा और शैली का विस्तार उजागर होता है।इन सन्दर्भों का जीवन्त दस्तावेज़ है भगीरथ परिहार का कहानी- संग्रह " बाजीगर "
"जीवन को जानने और उसकी आलोचना का एक तरीका है कहानियों को पढना और लिखना।अपने जीवन या आसपास घटी घटनाएँ जो आपको विचलित करती हैं या सोचने पर विवश करती हैं उन्हें लेकर कहानी बुनी जा सकती है।" अपनी इस बात पर सजगता से कदम रखते हुए कहानीकार ने जिन कहानियों को बुना है उनका ताना- बाना सामाजिक चेतना के विविध आयामों का वितान खड़ा करता है।
शीर्षित कहानी 'बाजीगर' मजदूर,मालिक और प्रशासन के त्रिकोणीय सम्बन्धों के यथार्थ का चित्रण है। वहीं मजदूरों के जीवन,उनकी चेतना,उनकी सीमाएं,संघर्ष,परिवेश के दबाव और जिजीविषा के साथ उनके सरोकारों की बानगी 'जूझते हुए, मोर्चे , शहादत,संघर्ष जारी रहेगा,जन्म,चिथड़ा औरत के सपने,ओटन लगे कपास जैसी कहानियों में शिद्दत से उभर कर आई है।
पत्रात्मक शैली में लिखी कहानी 'पूज्य पिताजी' शीर्षक के अनुरूप परिवार के मुखिया के पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों के परिणाम स्वरूप उपजी स्थिति का विवेचनात्मक पत्र है जो पारिवारिक मूल्यों के बदलते स्वरूप को विश्लेषित करता है। यही सन्दर्भ परिवर्तित परिवेश के साथ आगे 'पीढ़ियाँ ' कहानी में विस्तार पा जाता है।वहीं ' हाईकमान ', 'अच्छे दिन ' वर्तमान राजनीतिक परदृश्य का कच्चा-चिठा खोलती है, तो 'दंगे के बाद' पुलिस की छवि को उजागर करती है। संग्रह की अन्य कहानियों में स्त्री विमर्श, मानसिक द्वन्द्व और बदलते मूल्यों के साथ-साथ वर्तमान सन्दर्भों का गहन विवेचन और विश्लेषण हुआ है।
अन्ततः यही कि बाजीगर की कहानियों का परिवेश अपने आसपास को उभरता है तो पात्रों के संवाद कथ्य को विस्तृत कैनवास प्रदान करते हैं।सहज भाषा- शैली के साथ देशज शब्दों के प्रयोग से कथा के लोक पक्ष का उजागरण हुआ है वहीं समकालीन परिवेश भी जीवन्त हो उठा है।संस्मरण और रेखा चित्र- सी खिंचती ये कहानियाँ पाठकों को अपने भीतर की संवेदनाओं से साक्षात्कार कराती है जिससे पाठक गहरे तक जुड़ाव पाता है और कहानियों के पात्रों के साथ सह यात्री हो जाता है। इसी यात्रा का बतियाता और भावपूर्ण चित्र उभर कर सामने आता है इस संग्रह के मुख पृष्ठ पर जो शीर्षक और कहानियों की मूल संवेदना को उभारता है और व्यक्ति में पनप रहे विचारों के समुच्चय को दिग्दर्शित करता है।
कुल मिलाकर अपने समय और समाज के विविध पक्षों को दृश्यमान करती ये कहानियाँ परिवर्तित विचार धाराओं से उपजे परिवेश का दृष्टान्त है।
- विजय जोशी
कथाकार भगीरथ परिहार ने इन सन्दर्भों को अपने भीतर और बाहर में समन्वित किया और लघुकथाओं की धारा को विस्तृत कैनवास प्रदान किया। जब एक लघुकथाकार की सूक्ष्म दृष्टि संवेदना के विविध आयामों को रेखांकित करती हुई व्यापकता की ओर अग्रसर होती है तो कहानी का रूप धारण करती है जिसमें विवेचना और विश्लेषण की दुधारी भाषा और शैली का विस्तार उजागर होता है।इन सन्दर्भों का जीवन्त दस्तावेज़ है भगीरथ परिहार का कहानी- संग्रह " बाजीगर "
"जीवन को जानने और उसकी आलोचना का एक तरीका है कहानियों को पढना और लिखना।अपने जीवन या आसपास घटी घटनाएँ जो आपको विचलित करती हैं या सोचने पर विवश करती हैं उन्हें लेकर कहानी बुनी जा सकती है।" अपनी इस बात पर सजगता से कदम रखते हुए कहानीकार ने जिन कहानियों को बुना है उनका ताना- बाना सामाजिक चेतना के विविध आयामों का वितान खड़ा करता है।
शीर्षित कहानी 'बाजीगर' मजदूर,मालिक और प्रशासन के त्रिकोणीय सम्बन्धों के यथार्थ का चित्रण है। वहीं मजदूरों के जीवन,उनकी चेतना,उनकी सीमाएं,संघर्ष,परिवेश के दबाव और जिजीविषा के साथ उनके सरोकारों की बानगी 'जूझते हुए, मोर्चे , शहादत,संघर्ष जारी रहेगा,जन्म,चिथड़ा औरत के सपने,ओटन लगे कपास जैसी कहानियों में शिद्दत से उभर कर आई है।
पत्रात्मक शैली में लिखी कहानी 'पूज्य पिताजी' शीर्षक के अनुरूप परिवार के मुखिया के पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों के परिणाम स्वरूप उपजी स्थिति का विवेचनात्मक पत्र है जो पारिवारिक मूल्यों के बदलते स्वरूप को विश्लेषित करता है। यही सन्दर्भ परिवर्तित परिवेश के साथ आगे 'पीढ़ियाँ ' कहानी में विस्तार पा जाता है।वहीं ' हाईकमान ', 'अच्छे दिन ' वर्तमान राजनीतिक परदृश्य का कच्चा-चिठा खोलती है, तो 'दंगे के बाद' पुलिस की छवि को उजागर करती है। संग्रह की अन्य कहानियों में स्त्री विमर्श, मानसिक द्वन्द्व और बदलते मूल्यों के साथ-साथ वर्तमान सन्दर्भों का गहन विवेचन और विश्लेषण हुआ है।
अन्ततः यही कि बाजीगर की कहानियों का परिवेश अपने आसपास को उभरता है तो पात्रों के संवाद कथ्य को विस्तृत कैनवास प्रदान करते हैं।सहज भाषा- शैली के साथ देशज शब्दों के प्रयोग से कथा के लोक पक्ष का उजागरण हुआ है वहीं समकालीन परिवेश भी जीवन्त हो उठा है।संस्मरण और रेखा चित्र- सी खिंचती ये कहानियाँ पाठकों को अपने भीतर की संवेदनाओं से साक्षात्कार कराती है जिससे पाठक गहरे तक जुड़ाव पाता है और कहानियों के पात्रों के साथ सह यात्री हो जाता है। इसी यात्रा का बतियाता और भावपूर्ण चित्र उभर कर सामने आता है इस संग्रह के मुख पृष्ठ पर जो शीर्षक और कहानियों की मूल संवेदना को उभारता है और व्यक्ति में पनप रहे विचारों के समुच्चय को दिग्दर्शित करता है।
कुल मिलाकर अपने समय और समाज के विविध पक्षों को दृश्यमान करती ये कहानियाँ परिवर्तित विचार धाराओं से उपजे परिवेश का दृष्टान्त है।
- विजय जोशी