चाँद शैरी की गजल
मुल्क तूफाने बला की जद में है
दिल सियासत दान का मसनद में है
अब मदारी का तमाशा छोड कर
कल वो आदमी संसद में है
एकता का तो दिलों में है मुकाम
वो कलश में हैं न वो गुम्बद में है
जिंदगी भर खून से सींचा जिसे
वो शजर मेरा निगाहे बद मे है
फिर हैं खतरे मे वतन की आबरू
फिर बड़ी साजिश कोई सरह्द में है
एक जुगनू भी नहीं आता नजर
यह अंधेरा किस बुरे मकसद में हैं
चिलचिलाती धूप में 'शेरी' खयाल
हट के मन्जिल से किसी बरगद में हैं
पुरुषोत्तम 'यकीन' की गजल
न कोई शिकवा न काम रखना
सभी से लेकिन सलाम रखना
किसी को रख लेना अपने दिल में
और उसके दिल में क़याम रखना
अमल को अपने ग़ज़ल में अपनी
मुहब्बतों का पयाम रखना
भरोसा पल का नहीं पे पल का
है लाजमी एहतिमाम रखना
नहीं, न हो,जेरे - आस्माँ घर
दिलों के भीतर मकाम रखना
तुम अपनी यादों की डायरी में
कहीं तो मेरा भी नाम रखना
जफ़ा के बदले वफ़ा मुसलसल
तू रोजो - शब , सुबहो शाम रखना
बहुत ज़माने ने कहर तोड़ा
गया न 'ईमां' न 'राम' रखना
सभी को खुल कर पिला ऐ साकी
किसी का खाली न जाम रखना
'यक़ीन' शैरो - सुखन की जद पर
अदब से दर्दे -अवाम रखना
8 comments:
vaakayi inki gazal ke kya kahne ...bahut hi achchhi
नहीं, न हो,जेरे - आस्माँ घर
दिलों के भीतर मकाम रखना
बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत दिनों में शेरी की ग़ज़ल पढ़ी। वैसे उन से खुद से सुन चुका हूँ।
बहुत उम्दा!!
पुरुषोत्तम ’यकीन’ जी की गज़ल पेश करने का आभार.
अब मदारी का तमाशा छोड कर
आज कल वो आदमी संसद में है(चाँद शेरी)
तुम अपनी यादों की डायरी में
कहीं तो मेरा भी नाम रखना(पुरुषोत्तम 'यकीन')
उक्त शे'र पढ़कर सचमुच मुंह से वाह निकली।
दोनों शायरों की ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं।
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है..सारे शेर दमदार हैं...शुक्रिया इस प्रस्तुति का.
नीरज
अब मदारी का तमाशा छोड कर
आज कल वो आदमी संसद में है(चाँद शेरी)
अमल को अपने ग़ज़ल में अपनी
मुहब्बतों का पयाम रखना (पुरुषोत्तम 'यकीन')
यकीनन अच्छी गज़ले.
एकता का तो दिलों में है मुकाम
वो कलश में हैं न वो गुम्बद में है
न कोई शिकवा न काम रखना
सभी से लेकिन सलाम रखना
दोनों गज़ले बहुत ही अच्छी है बधाई स्विकरेअ
नरेन्द्र चक्रवर्ती
चाँद शेरी की गज़ल अच्छी है।
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