Friday, April 10, 2009

वैज्ञानिक दृष्टिकोण



वैज्ञानिक दृष्टिकोण
नेहरुजी चाहते थे कि यह पुराना हिन्दुस्तान, जो विश्वास में डूबा है विज्ञान में उन्नति के शिखर चूमे । वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर अपनी जीवन शैली को वैज्ञानिक -दृष्टि सम्पन्न बनाएं । हुआ भी वही , बडे -बडे बाँध बने ,बिजली घर बने ,बडे-बडे उद्योग खुले ,शोध शालाएँ खुली , इंजीनियरिंग व मेडिकल कालेज खुले , विद्यार्थी पढे , कुछ विदेश चले गये ,जो नहीं जा सके वे मन मसोस कर यहीं सरकार की खिदमत करते रहे ।
हमारे वैज्ञानिकों का यह हाल है कि माशहअल्ला क्या कहें ! न वे अपनी संस्कृति छोड़ सकते हैं न अपने संस्कार और विश्वास ,वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी नहीं छोड सकते । अतः जिस तरह हमने अर्थशास्त्र में मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसी नायाब धारणा का विकास किया , करीब वैसी ही नायाब सोच हमारे वैज्ञानिकों ने विज्ञान और विश्वास के मिश्रण में देखी । पूरब और पश्चिम का अदभूत मिलन । उद्योग लगे तो भूमिपूजन हो, मशीन लगे तो नारियल फ़ूटे , प्रसाद जरुर बंटे ,अगरबत्तियाँ और दीप जरुर प्रज्जवलित हो , पंडित जरुर मंत्र पढे अब यह सब न हो तो वैज्ञानिकों पर संस्कृति विहीन और संस्कार-हीन होने का आरोप लगेगा ।
एक बार हमारे मन में आई कि पंडत तू संस्कृत पढा है , धर्म की किताबे पढी , बच्चों की पुस्तकों से विज्ञान भी पढ़ ही रहा है , तो मन में एक दुविधा उठी कि सूर्य ग्रहण , राहु-केतु जब सूर्य को ग्रस लेते है , तब होता है या विज्ञान के अनुसार सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्र के आने से होता है , तो हमने यह दुविधा चीफ़ इंजीनियर के सामने रखी। वे हनुमान भक्त थे , अक्सर मंदिर में भेंट होती थी , कुछ धार्मिक चर्चा भी होती थी , जब कभी जरुरत पडती प्रोजेक्ट में पूजन करने चला जाता , विश्वकर्मा पूजा तो होती ही है. चीफ़ साहब आप इन दोनों दृष्टिकोण में सामंजस्य कैसे बिठाते है ? वे बोले -इट्स वेरी सिम्पल धर्म को धर्म की तरह मानो और विज्ञान को विज्ञान की तरह । बस नो प्राब्लम ।
गैलिलियों ने कहा- पृथ्वी सूरज के चारों ओर चक्कर काटती है जबकि विश्वास कहता है ,सूरज पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है वह बेकार अपनी बात पर अडा रहा , जिससे उसे जेल की हवा खानी पडी हमें देखिये कि हम धर्म का प्रसाद भी खा रहे है , और विज्ञान के लड्डू भी। पंडित जी अपनी दुविधा यहीं छोडिये ,सबसे बडा सिध्दांत है कि आपके दोनों हाथों में लड्डू है या नहीं ।

प्रार्थना
पडोसी ने प्रभु से प्रार्थना की -हे भगवान ! मेरे प्रिय पडोसी के यहाँ महान देशभक्त पैदा हो ।
दूसरे पडोसी ने प्रार्थना की - हे भगवान! मेरे जीवन का कोई भी पूण्य हो तो मेरे घर चद्रास्वामी जैसा व्यक्ति पैदा हो।
तभी आकाशवाणी हुई ।
'वत्स,तुम्हारे पडोसी ने तुम्हारे लिए जो प्रार्थना की थी मैंने स्वीकार करली है , क्योंकि उसकी प्रार्थना अच्छी थी'
'कौन-सी प्रार्थना भगवान ?
यही की स्वतंत्रता की 50वीं वर्ष गांठ पर तुम्हारे घर महान देशभक्त पैदा हो ।
'मैं लुट जाऊँगा प्रभु ! आप मेरी सुनिये । पडोंसी तो जलन और ईर्ष्या के मारे प्रार्थना कर रहा है ।
'सोच लो,देशभक्ति सर्वोच्च गौरव है ।
'इसमें क्या सोचना ,्मैं अपनी संतान को पांचसितारा संस्कृति में फ़ली-फ़ूली देखना चाहता हूँ ,तिहाड जेल में नहीं
'चद्रास्वामी भी तो तिहाड जेल में थे
'लेकिन भगवान वे वहाँ भी पाँचसितारा सुविधा में थे ।
'मैं तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ ,जरा खुलासा करो।
'भगवान आप तो अंर्तयामी है, इस मूर्ख की बुध्दि पर तरस खाएँ इतना तो सभी जानते है कि क्रान्तिकारी स्वंय तो यातनाएँ झेलकर , बेमौत मारा जाता है उसके परिवार के लोगों को भी वह जीवनभर दुख ही देता है ।



4 comments:

Arvind Mishra said...

आपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है इसके बजाय कुछ दृष्टान्तों के सहारे अपनी बात सामने रखी है -मनुष्य अनुष्ठान प्रिय है और कुछ कर्मकांड अब हमारी संस्कृति के अंग बन गए हैं -यदयपि वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार वे नहीं होते पर मन को तसल्ली देते हैं -यह अनुष्ठान हमारे वैज्ञानिक कार्यों में कोई अड़चन भी नहीं करते ! पर हां हमें यह स्वीकार्य होना चाहिए कि ऐसे अनुष्ठान महज शुभ संकेत भर हैं -इससे अधिक नहीं !
आप अपने अगली पोस्ट में यह बताएं कि वैज्ञानिक पद्धति है क्या और उसे जीवन में कैसे आत्मसात की जाय !

प्रदीप कांत said...

प्रार्थना एक अच्छा व्यंग्य है जबकि वैग्यानिक द्रष्टिकोण एक अच्छा चिन्तन.

Urmi said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

नरेन्द्र चक्रवर्ती said...

Dharm manushya ki pravarti hai jab ki Vigyan uski Gigyasa ka Utter. Dono main Tal mel hi Unnati hai. Bahut acchaa laga, Vang Bhi; Aur Sar Bhi.

Narendra Chakravarti
nkcfriendshelpline@gmail.com