Friday, May 15, 2009

लडो डट कर लडो


लडो डट कर लडो
भाई -भाई लड़ते है] हिन्दु मुस्लिम भाई - भाई है] इसलिए आपस में लड़ते है। अगर भाई - भाई नहीं होते तो आपस में नहीं लड़ते । पहले हिन्दी चीनी भाई -भाई थे इसलिए आपस में लड़े । जब से दुश्मन हुए है] नहीं लड़े ।
जब हम कहते हैं कि हिन्दु - मुसलमान लड़ते हैं तो इसका तात्पर्य है कि हिन्दु - हिन्दु नहीं लड़ते , मुसलमान - मुसलमान नहीं लड़ते लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान , पूर्वी पाकिस्तान से लड़ा , इराक कुवैत से लड़ा , इरान - इराक लड़े , लोगों को बिना लड़े चैन नहीं मिलता सो लोग आपस में लड़ते है।
संजीदा लोगों को भाइयों के झगड़ों में नही पड़ना चाहिए । सरकार को भी चाहिए कि वह भाई - भाई के झगड़ों में अपने कानून का डंडा नहीं घुमाएं बल्कि लड़ने के लिए स्टेडियम प्रदान करे और टिकट लगाकर तमाशा दिखाए ताकि सरकार का रेवेन्यू बढे।
कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें लड़ने का नही लड़ाने का शौक है उन्हें लोगों को लड़ाये बिना चैन नहीं मिलता । जैसे नवाब पहले मुर्गे लड़ाते थे ,आजकल के नवाब आदमियों को लड़ाते हें जैसे मीणा को गूजर से दलित को ब्राहण से] पिछड़े को अति पिछड़ें से ।
आजादी के बाद का इतिहास आपस में लड़ने का इतिहास रहा है आजादी प्राप्त होते ही हिन्दु - मुसलमान लड़े , फिर मराठी - तेलगू , यानि भाषा के नाम पर लड़े , प्रांतो पर लड़े , नदियों के बंटवारें को लेकर लड़े , हिन्दु - सिक्ख जम कर लड़े , बाबरी मस्जिद को लेकर कारसेवक मुसलमान से लड़ मरे आदिवासी - गैर आदिवासी लड़े , कम्यूनिस्ट कम्यूनिस्ट से लड़े , नकस्ली सरकार से लड़े , आरक्षण हितेषी - आरक्षण विरोधी से लड़े भारतीय मुजाहदीन और अभिनव भारत लोगों को लामबन्द कर रही है । नहीं लड़ने वाले की लड़ने वाले नहीं सुनते वे कहते है तुम यह बताओ कि तुम किस तरफ हो । किसी भी तरफ नहीं हो तो हिजड़ै हो । लड़ो - डट कर लड़ो । आमीन

राजनीति में सती सावित्री
(राजनीति में आई एक स्त्री के प्रति लोगों (पुरूषों) का क्या दृष्टिकोण है जरा मुलाहिजा फरमाइये। )
राजनीति में सती सावित्री का क्या काम ! फिर भी सावित्री ने तय किया कि अब वह राजनीति करेगी उसने पार्टी अध्यक्ष से मुलाकात की । अध्यक्ष ने सावित्री का स्वागत करते हुए कहा कि महिलाओं को राजनीति में आगे की पंक्ति में आना चाहिए । हमारा सौभाग्य है कि आप आई, अध्यक्ष ने उनके सुन्दर चेहरे को लक्ष्यकर आश्वस्त किया कि आपको किसी पार्टी पोस्ट पर एडजस्ट कर दिया जायेगा ।
अध्यक्ष जी ने उनकी उम्र, शैक्षणिक यौग्यता व कार्य में दिलचस्पी को देख उन्हें पार्टी की युवा शाखा का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया ।
अध्यक्षजी ने कहा पद जिम्मेदारी का है और उसमें पूरे प्रदेश के दौरे करने पड़ेगें । मेरे दौरे का प्रोग्राम बन गया है आप मेरे साथ चलेगी । सावित्री मना कैसे करती!
एक दौरे के बाद ही कार्यकर्ताओं में कई किस्से प्रचलित हो गये । अध्यक्षजी ने क्या चीज पकड़ी है ! जैसे अध्यक्षजी चील हो और सावित्री चिड़िया । ‘यार अध्यक्षजी के तो मजे है। अब तो और अधिक दौरे होंगे । अबकि बार सावित्री का विधानसभा का टिकिट पक्का है । अध्यक्षजी ने सारा भार सावित्री पर डाल दिया है। सावित्री को अफसोस था कि उसकी योग्यता और कार्य को कोई नहीं देख रहा है । निराशा के क्षणों में सावित्री ने अध्यक्षजी से कहा - बहुत हो गया , राजनीति छोड़ मैं अब सत्यवान के पास वापस जाउंगी ।
अभी तो तुम्हारे पाँव भी नहीं जमे है। मैं मुख्यमन्त्री से कहकर किसी निगम की अध्यक्ष बनवा देता हूँ ताकि तुम्हारा खर्चा पानी चल सके । और फिर अगले साल इलेक्शन है अभी से भाग दौड़ कर टिकट पक्का कर लो । अब मुख्यमन्त्रीजी को तो ‘गुडह्युमर’ में रखना ही होगा न । जिला व राज्य कमेटी को भी विश्वास में लेना होगा ।
पार्टी कार्यकर्ता जानते हैं कि सावित्री सबको विश्वास में ले लेगी । कार्यकर्ता सावित्री पर पूरी नजर रखे थे । उसकी पहुँच कहाँ - कहाँ तक है और क्यों है ?
ज्यों - ज्यों सावित्री के बारे में किस्से कहानियाँ फैलती गई । उसकी पुहॅंच भी ऊँची होती गई । कार्यकर्ता अपना काम निकलवाने के लिए सावित्रीजी का उपयोग करने लगे और मौका मिलने पर नजर भी फैंक लेते क्या पता चिड़िया फॅंस ही जाये ।
सावित्री का संघर्ष तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि वह विधायक बनकर मन्त्री की कुर्सी पर न बैठ जाये ।
विधानसभा चुनाव आ गये , तो सावित्री को टिकट मिल गया । अब तो पार्टी वर्कर चौडे में बोलने लगे । फलाने के साथ हमबिस्तर हुई थी] साली को एक ही रात में टिकट मिल गया और जो दसियों वर्षो से राजनीति कर रहे हैं उन्हें टका सा जवाब दे दिया - महिलाओं को आगे लाना है ।
जब सावित्री पुरूष मतदाता की ओर उन्मुख हुई तो उसका चेहरा निहार कर वे अपने को धन्य मानते । अपनी ही पार्टी के विरोधी तमाम तरह के किस्से जनता में फैलाने लगे थे । जनता भी क्या चीज है जो इस तरह की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती है । नतीजा , अपनी पूरी इज्जत उतरवाकर भी सावित्री हार गई ।

Friday, May 1, 2009

श्याम पोकरा के उपन्यास बेलदार का लोकार्पण

'शारदा' पत्रिका एवं 'बेलदार' उपन्यास का विमोचन
शारदा साहित्य मंच के तत्वाधान में दिनांक १९।०४.०९ को डा. भीमराव अम्बेडकर भवन , रावतभाटा में लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया । जिसमें मंच की वार्षिक पत्रिका ‘शारदा’ एवं श्री श्याम कुमार पोकरा के उपन्यास बेलदार का विमोचन कोटा के वरिष्ठ कथाकार श्री विजय जोषी , कवि श्री सोहन सिंह केलवा एवं वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भगीरथ परिहार ने किया । श्री श्याम पोकरा ने कोटा से पधारे मुख्य अतिथि श्री विजय जोशी का परिचय देते हुए कहा कि श्री जोशी अच्छे कथाकार ही नहीं अच्छे समीक्षक भी हैं मेरा इनसे परिचय सन 1999 में दशहरा मेले में हुआ । उनसे मुझे काफी उर्जा इस क्षेत्र में मिली प्रसन्नता का विषय है कि वे आज इस समारोह में उपस्थित होकर ‘बेलदार’ उपन्यास का लोकार्पण करेंगे श्री दिनेश छाजेड़ ने शारदा साहित्य मंच का परिचय देते हुए कहा कि जो पौधा हमने पाँच वर्ष पूर्व लगाया था , वह अब बड़ा होकर वृक्ष बनने लगा हे । आज इस मंच की पत्रिका ‘शारदा’ का प्रवेशांक वरिष्ठ साहित्कारों द्धारा किया जा रहा है समारोह के मुख्य अतिथि एवं वरिष्ठ कथाकार श्री विजय जोषी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अणुनगरी में साहित्य के जलते दीपों कों देखकर मुझे अतिप्रसन्नता हो रही हे हर्ष व्यक्त करते हुए उन्होने कहा कि यह बड़े गौरव की बात है कि विज्ञान व तकनीकी से जुड़े लोग भी साहित्य में गहरी रूचि रखते हैं । मानव मन में उपजी संवेदनायें ही शब्द बनकर सृजन के रूप में प्रकट हो 'शारदा' जैसी पत्रिका के रूप में आकार ग्रहण करती है । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री विजय जोशी ने कहा कि श्याम पोकरा का उपन्यास ‘बेलदार’ मुखर संवेदनाओं का एक गम्भीर दस्तावेज है । इस कृति में उपन्यासकार ने बेलदार के रूप में एक ऐसे चरित्र को प्रस्तुत किया है जो नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए कठोर संघर्श का मार्ग अपनाता है । अपमान को सहन कर अन्याय का डटकर मुकाबला करता हे और अंत में अपने धैर्य व बुद्धि के बल पर सत्य को उजागर करने में सफल होता है । मुझे आषा है कि बेलदार एक कालजयी कृति का स्थान ग्रहण करेगा । अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए वरिश्ठ लघु कथाकार भगीरथ परिहार ने मंच की गतिविधयों व उपलब्धियों पर संतोश प्रकट किया । शारदा साहित्य मंच के प्रभारी श्री अरूण भट्ट ने कहा कि छोटे - छोटे दीपों से हम साहित्य का प्रकाष फेलाने का प्रयास कर रहे हैं । जिसका परिणाम प्रकाश पुंज बनकर ‘शारदा' पत्रिका के रूप में आपके सामने है । हरिओम षर्मा , रमाकान्त शर्मा , रिपेन्द्र सिंह , देव किशोर , अरूण भट्ट राम शंकर वर्मा , तेजपाल गुसाईवाल , दिनेश छाजेड़ ,सुरेश छाबड़ा , वीरेन्द्र सिंह , गोविन्द प्रसाद , हेमन्त आमेठा , एन. पण्डित , श्याम पोकरा , प्रदीप गुर्जर आदि कवियों ने अपनी रचनाऐं प्रस्तुत की अंत में मंच के सदस्यों द्धारा सभी अतिथियों एवं ‘शारदा' पत्रिका के सम्पादक श्री ओ. पी. आर्य का श्रीफल व शौल ओढ़ाकर सम्मान किया गया ।

सुरेश छाबडा(कुरते में.)अरूण भट्ट,सोहनसिंह केलवा,विजय जोशी,भगीरथ,
श्याम कुमार पोकरा व दिनेश छाजेड