Wednesday, June 24, 2009
तालीम देने का खब्त
समाज को सभ्य बनाने में तालीम की अहम भूमिका है । पहले यही भूमिका अंग्रेज इस हद तक अदा कर रहे थे कि उन्हे हिन्दुस्तानियों को सभ्य बनाने का खब्त सवार था । कुछ लोग सभ्य हो गये इससे नुकसान अंगेजों को ही हुआ उन्हें यह मुल्क छोड़कर वापस इंग्लिस्तान जाना पड़ा । आजादी के बाद की सरकारों को भी यह खब्त सवार रहा बड़े मजे से ब्राह्मण , राजपूत और बनिये राज कर रहे थे लेकिन शिक्षा प्रदान करने के खब्त के चलते दलितों व पिछड़ों ने राजसता में भागीदारी मांगनी शुरू कर दी । जिससे हुआ यह कि अब संसद और विधानसभाओं में इन्हीं जातियों का बोल बाला है ।
जब सरकार ने नारी शिक्षा पर जोर दिया तो नारी लज्जावती न रह कर जीवन के हर क्षेत्र में पुरूष से बराबरी करने लगी । नारी शिक्षा के चलते पुरूष की सत्ता में भयंकर कमी आई वह तिलमिला कर रह गया । तालीम चीज ही ऐसी है , जो सब रिश्तो को बदल देती है अब स्त्रियों के लिए 33 प्रतिशत लोकसभा व विधानसभाओं में तथा 50 प्रतिशत पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण होगा । अभी से विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं शरद यादव ने तो लोकसभा में यहाँ तक कह दिया कि अगर यह बिल पास हो गया तो वे जहर खा लेंगें । अब बताइये इतने जहरीले बिल को सरकार पास करवाने पर क्यों तुली है । सरकार का गणित साफ है , जनसख्या में 50 प्रतिशत महिलायें हैं इसलिए उन्हें 50 प्रतिशत सीटें मिलनी चाहिए । इसमें गैर वाजिब क्या है और जहर खाने वाली क्या बात है बल्कि मिठाई बाँटने का समय है अगर आप नहीं खड़े हो सकते तो पत्नि को खड़ी कर दीजिए । लोकसभा आप नहीं तो आपकी पत्नि जायेगी । लेकिन पावर तो आपके पास ही रहेगी । बस आप उनके सेक्रेटरी बन जाइये ।
हमारी एक सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘आपरेशन ब्लेकबार्ड’ प्रारम्भ किया जिससे तालीम याफता लोगों की मानोपाली खत्म होने का मंजर सामने आया । शुक्रिया हो सरकार का कि उसने हर गाँव ढाणी में एक ब्लेकबोर्ड मुहैया करा दिया । लेकिन हुआ यह कि जहाँ ब्लेक बार्ड पहुँच गया वहाँ चाक नहीं पहुँची और जहाँ ब्लेकबोर्ड और चाक दोनों ही पॅंहुचे वहाँ गुरूजी नहीं पहुँचे , ‘अब बच्चे तो बच्चे, उन्होनें चाक लेकर ब्लेक बोर्ड पर ऐसी इबारते लिखी कि अगर अध्यापक पढ़ते तो दंग रह जाते चूंकि अध्यापक थे नहीं इसलिए दंग रहने का कार्य स्कूल निरीक्षक ने किया । उसने अपना टी. ए. डी. ए. बनाया और रिपोर्ट सरकार के पास भेज दी । रिपोर्ट में कहा गया कि फला गाँव में अध्यापक नहीं है , फलां गावं में ब्लेक बोर्ड नहीं है , फलां में स्कूल भवन नहीं है , फलाँ गावं का अध्यापक स्कूल जाता ही नहीं है । क्योंकि वह पंचायत समिति के प्रधान की हाजरी में रहता है , फिर जाकर करे भी क्या , क्योंकि वहाँ भवन , ब्लेकबोर्ड , चाक सब है लेकिन विद्यार्थी तो है ही नहीं चुनाचे वह महीने के अंत में जाकर अपनी हाजरी मांडकर तनखां उठा लेता है।
इससे भी हैरतअंगेज मंजर वहाँ दिखा जहाँ अध्यापक, छात्र , ब्लेकबोर्ड और चाक सभी थे लेकिन उनमें आपसी सामजंस्य नहीं था। छात्रों के पास कभी कापी नहीं थी तो कभी पैंसिल । कभी किताब नहीं तो कभी खेत पर जाना जरूरी था मास्टरजी हैं तो वो कभी बीमार हो जाते , तो कभी जनगणना का काम कर रहे होते तो कभी वोटर लिस्ट बनवा रहे होते या कभी फेमिली प्लांनिग के केस पटाने में जुड़े रहते तो कभी चुनाव कार्य करवाने में व्यस्त हो जाते है। जबसे मिड डे मिल योजना प्रारम्भ हुई है तब से गुरूजी सामान खरीदने , पोषाहार बनवाने , बाँटने और हिसाब -किताब का काम देख रहे हैं । कक्षा में जाने का समय ही कहाँ बचता है । सो स्टाफ ‘मिलजुलकुर खाओं और बैकुण्ठ जाओ ’ के सिद्धांत पर चल रहा है । कहने का तात्पर्य यह है कि तमाम व्यवस्था के बावजूद तालिम हैं कि हासिल ही नहीं होती अब इसमें किसी का क्या कसूर । जितनी तालिम हो चुकी है वही सरकार के गले पड़ रही है ।
अब तालिम ऐसी हो चुकी है कि हजारों-लाखों रूपये खर्च न करो तो आती ही नही है। पब्लिक स्कूलों के बच्चे फर्राटेदार अंग्रजी बोलकर , वर्नाकूलर स्कूल के बच्चों को पीछे छोड़ जाते हैं । इस तरह समर्थ फिर आगे बढ़ जाता है अब सबको शिक्षा देनी है तो ऐसे ही दी जा सकती है ।
Thursday, June 11, 2009
मौनव्रत
जिलाधीश कार्यालय के सामने शामियाने के नीचे एक आदमी अपने मुँह को दोनों हाथों से ढाँपे , गांधीजी के बंदर की मुद्रा में बैठा है । ठीक उसके ऊपर एक बैनर टंगा है बैनर पर मौन व्रत लिखा है । कुछ और खद्दरधारी उसी मुद्रा में उसके दोनों ओर धरने पर बैठ जाते है। जिलाधीश को ज्ञापन देना है । कौन ज्ञापन देगा पहले से ही तय हो तो उचित रहेगा , नहीं तो वहाँ हड़बड़ी में मौन जुलुस की भद्द पड़ जायेगी ।
पत्रकारों और फोटोग्राफरों का प्रवेश। विडियों कैमरा काम कर रहा है , पत्रकार ने पूछा - देश में आपातकाल लागू है आपकी प्रतिक्रिया! वे मौन है
1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के बारे में आपका क्या कहना है ? वे मौन है
बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला इस सन्दर्भ में आपका क्या कहना है ? वे मौन है
अहमदाबाद में हिन्दु मुस्लिम दंगे में लागों को जिन्दा जला दिया गया है , कौन इसके लिए जिम्मेदार है वे फिर मौन है
उत्तर न पाकर पत्रकार ने उकसाया -
जब भी कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता है , आप लोग मौन साध लेते हैं । मुख्य बंदर मौन व्रत धारी उन्हें चुप रहने का आखों से इषारा करता है पत्रकार अनुनय करता हे , लिखित वक्तव्य ही दे दीजिए
‘‘सार्थक संवाद केवल मौन में ही सम्भव है
कौन जिम्मेदार है , अपने मांही टटोल ,
आत्मा को शुद्ध करो , मौन भटको को रास्ते पर लाता है ।
शब्द झगड़े की जड़ है । मौन शान्तिपूर्ण और प्रेममय है ।
मौन में सारी समस्याएं समाप्त हो जाती है ’’
मौन धीरे - धीरे असाध्य लगने लगता है कुछ लोग खुजलाते है , एक -दो हथेली पर तम्बाकु घिसते हैं । कई अपनी पुड़िया खोल कर खाते है । दर्शकों में से लड़के - लड़कियाँ आँख लड़ाने की कोशिश करते है।
जुल्म, अन्याय व अत्याचार के विरूद्ध मौनजुलूस, बेरोजगारी व गरीबी के विरूद्ध मौन जुलुस , मौन रामबाण है अतः सरकार मौन रहने का मूलभूत अधिकार सबको देती है बोलने की बदतमीजी की आज्ञा सिर्फ सिरफिरों को है । सरकार मौनव्रत धारी बंदरों की मूर्तियों को सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित किये जाने के आदेश देती है और मौनव्रत धारियों का धन्यवाद करती है
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Wednesday, June 3, 2009
डाकुओं की संगठित गेंग के बारे में हलफिया बयान
डाकुओं की संगठित गेंग के बारे में हलफिया बयान
पुलिस के बारे में एक जज साहेब ने टिप्पणी की थी कि पुलिस डाकुओं की एक संगठित गेंग है । भई ! यह तो बहुत ही सख्त टिप्पणी है पुलिस सेवा के बारे में । चूंकि जज साहब को तो सरकार चलानी नहीं , इसलिए वे तो ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं लेकिन यह तो सरकार ही जानती है कि पुलिस किस कदर जनता की सेवा व सुरक्षा में चैबीस घंटे लगी हुई है ।
आलतू - फालतू आन्दोलनों को तोड़ने व फोड़ने , मरोड़ने व कुचलने का कार्य भी यही गेंग सरअंजाम देती है । विरोधियों के छक्के छुड़ाने व छठ़ी का दूध याद दिलाने का काम भी इसी के जिम्मे है । क्योंकि सरकार यह काम नहीं कर सकती इसलिए यह काम पुलिस के द्धारा करवाया जाता है जिससे देश में अमन चैन बना रहता है ।
और फिर उन्हें डकैत कहना तो खुला झूठ है , डकैत हमेशा खुले में लूटमार करते हैं जबकि पुलिस कभी ऐसा नहीं करती , वह हमेशा प्रछन्न तरीके अपनाती है । उसके लिए बकायदा प्रत्येक थाने में, पहुॅंच रखने वाले लोग होते हैं , वे राजनैतिक दल के कार्यकर्ता हो सकते है , कुछ छटे हुए बदमाश भी यह काम करते हैं कुछ वकील लोग भी यह काम करते हैं क्योंकि यह उनकी प्रेक्टिस की परिभाषा में आता है । इन लोगों का काम है मुर्गी फांसना और फिर थाने में होती है मुर्गी हलाल । जो मुर्गी फांसकर लाते हैं थाने में , उनकी समाज में बड़ी इज्जत होती है , इससे ही अंदाज लगाइये कि पुलिस की समाज में कितनी इज्जत होगी । इनसे पंगा लेना , मौत को दावत देना है । इज्जतदार लोगों से आम जनता हमेशा थरथराती रही है । अब आप ही बताइये कि वे कौनसे कारनामे हैं जिसकी वजह से सरकार को यह नियम बनाना पड़ा कि थानेदार किसी स्त्री का बयान थाने में बुलाकर नहीं ले सकता ।
पाठ पढ़ाने में हमारी पुलिस का कोई सानी नहीं है । थर्ड डिग्री क्या होता है ये वे लोग ठीक से जानते हैं जिनके घुटनें की टोपियाॅं टूट गई या हाथ - पाॅंव की हड्डियाॅं टूट गई , जिनके मुहॅं में मूता गया और गवाही चाहिए तो जुगता की लो जिसका लिंग तक उन्होनंे काट दिया ।
यह सब इसलिए किया जाता है कि अपराधियों में हाथ - पाॅंव टूटने का डर नहीं होगा तो अपराध रूकेंगे कैसे सरकार के वक्तव्यों और भाषणों से तो अपराध रूकने से रहे न ही कोर्ट कचहरी के भरोसे अपराध रूकेंगे । पुलिस जब सीधी और स्वविवेक से कार्यवाही करेगी तब ही अपराध जगत में दशहत फैलेगी ।
लेकिन ऐसा क्यों होता है कि दशहत आम लागों में फैल जाती है और अपराध जगत के बीर बांकुरे थाने में बैठे मूंछों पर ताव देते रहते हैं ।