जिलाधीश कार्यालय के सामने शामियाने के नीचे एक आदमी अपने मुँह को दोनों हाथों से ढाँपे , गांधीजी के बंदर की मुद्रा में बैठा है । ठीक उसके ऊपर एक बैनर टंगा है बैनर पर मौन व्रत लिखा है । कुछ और खद्दरधारी उसी मुद्रा में उसके दोनों ओर धरने पर बैठ जाते है। जिलाधीश को ज्ञापन देना है । कौन ज्ञापन देगा पहले से ही तय हो तो उचित रहेगा , नहीं तो वहाँ हड़बड़ी में मौन जुलुस की भद्द पड़ जायेगी ।
पत्रकारों और फोटोग्राफरों का प्रवेश। विडियों कैमरा काम कर रहा है , पत्रकार ने पूछा - देश में आपातकाल लागू है आपकी प्रतिक्रिया! वे मौन है
1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के बारे में आपका क्या कहना है ? वे मौन है
बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला इस सन्दर्भ में आपका क्या कहना है ? वे मौन है
अहमदाबाद में हिन्दु मुस्लिम दंगे में लागों को जिन्दा जला दिया गया है , कौन इसके लिए जिम्मेदार है वे फिर मौन है
उत्तर न पाकर पत्रकार ने उकसाया -
जब भी कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता है , आप लोग मौन साध लेते हैं । मुख्य बंदर मौन व्रत धारी उन्हें चुप रहने का आखों से इषारा करता है पत्रकार अनुनय करता हे , लिखित वक्तव्य ही दे दीजिए
‘‘सार्थक संवाद केवल मौन में ही सम्भव है
कौन जिम्मेदार है , अपने मांही टटोल ,
आत्मा को शुद्ध करो , मौन भटको को रास्ते पर लाता है ।
शब्द झगड़े की जड़ है । मौन शान्तिपूर्ण और प्रेममय है ।
मौन में सारी समस्याएं समाप्त हो जाती है ’’
मौन धीरे - धीरे असाध्य लगने लगता है कुछ लोग खुजलाते है , एक -दो हथेली पर तम्बाकु घिसते हैं । कई अपनी पुड़िया खोल कर खाते है । दर्शकों में से लड़के - लड़कियाँ आँख लड़ाने की कोशिश करते है।
जुल्म, अन्याय व अत्याचार के विरूद्ध मौनजुलूस, बेरोजगारी व गरीबी के विरूद्ध मौन जुलुस , मौन रामबाण है अतः सरकार मौन रहने का मूलभूत अधिकार सबको देती है बोलने की बदतमीजी की आज्ञा सिर्फ सिरफिरों को है । सरकार मौनव्रत धारी बंदरों की मूर्तियों को सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित किये जाने के आदेश देती है और मौनव्रत धारियों का धन्यवाद करती है
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6 comments:
खामोशी में भी एक आवाज है, जो बोलने से भी कारगर होता है। अच्छी प्रस्तुति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail
मौन के अंतर्विरोध को खूब उभारा आपने...
मेरे पास तो जानकारी ही नहीं थी, आपकी इस जुंबिश की...
अब निरंतर....
बेहतर पैनी दृष्टि।
सटीक।
हमारे नेता गाँधी जी के इन्हीं तीन बन्दरों की शिक्षा पर ही तो चल रहे हैं:)
मौन का अर्थ केवल नाराजगी प्रकट करने तक है, इस के बाद...........
‘‘सार्थक संवाद केवल मौन में ही सम्भव है
कौन जिम्मेदार है , अपने मांही टटोल ,
आत्मा को शुद्ध करो , मौन भटको को रास्ते पर लाता है ।
शब्द झगड़े की जड़ है । मौन शान्तिपूर्ण और प्रेममय है ।
मौन में सारी समस्याएं समाप्त हो जाती है ’’
किन्तु भारतीय मौन ही तो हमे लेकर डूब रहा है.
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