Wednesday, September 30, 2009

लोकार्पण

शिवराम के नाटक के लोकार्पण पर ली गई तस्वीरें । देर से प्राप्त

बाएँ से - महेंद्र नेह, मंजरी वर्मा , शिवराम , रविन्द्र कुमार रवि , नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी , शैलेश चौहान
दर्शक दीर्घा
लोकार्पण की पूरी रिपोर्ट पिछ्ली पोस्ट में पढ़े ।

Monday, September 21, 2009

शिवराम के नाटक - पुनर्नव , गटक चूरमा का लोकार्पण

शिवराम के नाटक - पुनर्नव , गटक चूरमा का लोकार्पण

20 सितम्बर 2009 को कोटा की कला दीर्घा में शिवराम के दो नाट्य संग्रहों पुनर्नव व गटक चूरमा का विमोचन डा. ‘रविन्द्र कुमार रवि’ , अध्यक्ष विकल्प अखिल भारतीय जनवादी , जनसांस्कृतिक - सामाजिक मोर्चा, डा. मंजरी वर्मा , शैलेश चौ
हान व नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी ने किया इस अवसर पर बोलते हुए डा. रवि ने कहा कि जिस तरह चन्द्रधर शर्मा गुलेरी मात्र एक कहानी ‘उसने कहा से ’ प्रसिद्ध हुई ठीक उसी तरह शिवराम ‘जनता पागल हो गई’ नाटक से लोकप्रिय हुए। शिवराम सन् 1973 से ही नुक्कड़ नाटक लिख
रहे हैं वे ‘नुक्कड़’ नाटक
के प्रणेता भी हैं और पुरोधा भी । विभिन्न नाट्य रूपों को शिवराम ने अपने नाटकों में सम्मिलित किया है। ये नाटक प्रकाशित होने से पहले सैकड़ों बार देश के विभिन्न क्षेत्रों में खेले जा चुके हैं
डा. मंजरी वर्मा ने कहा कि बिहार के सदूर गावों में इन नाटको का प्रभाव
देखने योग्य है। दुलारी बाई नाटक को देखकर गाँव के लोंगों ने यह निर्णय लिया कि अब कोई भी इस गाँव में शादी के अवसर पर न तो तिलक देगा न तिलक लेगा । शिवराम के नाटक जनता में चेतना जगाने में समर्थ हैं ।
समारोह सभा के अध्यक्ष डा. नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी ने कहा कि जब वे एडीएम थे तब उन्होनें एक नाटक लिखा था जिसे राजस्थान साहित्य एकादमी ने पुरस्कृत भी किया। इसके बावजूद मुझे कोई नाटककार के रूप में
नहीं पहचानता जबकि शिवराम को कोई भी एकादमी पुरस्कार नहीं मिला है फिर भी हिन्दी क्षेत्र में वे एक लोकप्रिय
नाटककार के रूप में जाने जाते हैं ।



शिवराम को हिंदी में नुक्कड़ नाटक आंदोलन के प्रणेताओं में माना जाता है। इनका नाटक ‘जनता पागल हो गई है’ हिंदी के शुरूआती नुक्कड़ नाटकों में शुमार किया जाता है यह हिन्दी का सर्वाधिक खेला जाने वाला नुक्कड़ नाटक है शिवराम के कई नाटक अन्य भाषाओं में अनूदित होकर भी खेले गए हैं। नाट्य लेखन के साथ वे एक कुशल निर्देशक और अभिनेता भी हैं।
हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ का , पिछले 33 वर्षो से सम्पादन ।
‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक - सामाजिक मोर्चो के महासचिव


गटक चूरमा में संग्रहित नाटक

1 बोलो - बालो हल्ला बोलो , ढम ढमा ढम ढम , गटक चूरमा व हम लड़कियाँ शिवराम

पुनर्नव में संग्रहित कहानियों के नाट्य रूपान्तर

1 प्रेमचन्द की कहानियाँ - ठाकुर का कुँआ , सत्याग्रह , ऐसा क्यों हुआ

रिजवान जहिर उसमान की कहानी ‘खोजा नसरूद्दीन बनारस में’ व नीरज सिहं की कहानी ‘क्यों’ का नाट्य रूपान्तर , वक्त की पुकार इस संग्रह में संग्रहित है।

Monday, September 14, 2009

राष्ट्रपिता के सपने

एक देश हुआ हिन्दुस्तान अब इंडिया हो गया है , इसके एक राष्ट्रपिता थे , जिन्होने अपनी लाठी से अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया । वे अंहिसावादी थे उन्होने कभी लाठी चलाई नहीं , हाँ कभी - कभी दिखा देते थे । जैसे नमक आन्दोलन में ।
उनके तीन बन्दर बहुत प्रसिद्ध हुए, वास्तव में ये तीन बन्दर ही उनके सच्चे वारिस थे , जो न बुरा देखते थे न बुरा सुनते थे , न बुरा कहते थे ।
इसलिए राष्ट्रपिता के वारिसों ने न तो कभी गरीबी जैसी बुराई देखी , न उन्होने भ्रष्टाचार के किस्सों पर कान दिया । वास्तव में उन्हें ऐसी बातें सुनाई ही नहीं पड़ती थी , न ही कभी उन्होंने किसी को बुरा - भला कहा सिवाय कम्युनिस्टों को छोड़कर । बुरा - भला कहनें की उन्हें जरूरत कहाँ थी विपक्षी उनके दरबार में हाजरी दे जाते थे , अफसर , उद्योगपति , व्यापारी ठेकेदार , जमींदार उनकी सेवा में रहते और वे भी उनकी सेवा करते । जीओ और जीने दो का सिद्धांत या इसे कहें सहअस्तित्व की भावना ।
उनके वारिसों ने राष्ट्रपिता के सपनों को साकार करने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई , जिससे इंजिनियरों , ठेकेदारों मंत्रियों , उद्योगपतियों और दलालों के विकास के साथ - साथ देश का थोड़ा बहुत विकास भी हुआ और इसी के चलते हम विकासशील देश की श्रेणी में आने लगे हैं देश को स्वावलम्बी करने के लिए विदेशों से कर्ज लिया , बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को न्योते दे देकर बुलाया ओर प्रार्थना की उनसे कि ‘आप हमारे राष्ट्रपिता के सपने साकार करें इस वास्ते नमक बनाने के हमारे अधिकार को हमने विदेशी कम्पनी ‘कारगिल’ को सौप दिये ।
खादी के विकास के लिए , बुनकरों के विकास के लिए उन्होनें बड़ी - बड़ी कपड़े की मिलें स्थापित की और कपडे का निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित करने लगे गोया विदेशी मुद्रा से प्यार हमारी देश भक्ति की सबसे बड़ी मिसाल है ।
राष्ट्रपिता की तीसरी या चौथी पीढ़ी के एक शख्स ने प्रधानमंत्री की कुर्सी से कहा कि जब भारत सरकार विकास में एक रूपया खर्च करती है तो पन्द्रह पैसे का विकास होता है । इतनी साफगोई थी इनमें । इतने सत्यवादी थे राष्ट्रपिता की तरह । कितने असहाय थे हमारे प्रधानमंत्री ।
राष्ट्रपिता ने शराबबन्दी का सपना देखा था उनके वारिसों में से एक ने गुजरात में पूर्णत: शराबबन्दी कर दी । जिससे राज्य सरकार को सालाना करोड़ो रूपयों का नुकसान होता था और शराब के धन्धों में लिप्त लागों को करोड़ों का मुनाफा होता था । इस मुनाफे को वे सद्कार्य में खर्च करते थे जैसे चुनाव फंड में पैसा देना , अस्पताल स्कूल खुलवाना , अनाथालय को दान देना जिससे उन्होनें खुब पुण्य कमाया वे रात -दिन बापूजी का गुणगान करते हैं और गांधी आश्रम को जम कर दान देते है।