शिवराम के नाटक - पुनर्नव , गटक चूरमा का लोकार्पण
20 सितम्बर 2009 को कोटा की कला दीर्घा में शिवराम के दो नाट्य संग्रहों पुनर्नव व गटक चूरमा का विमोचन डा. ‘रविन्द्र कुमार रवि’ , अध्यक्ष विकल्प अखिल भारतीय जनवादी , जनसांस्कृतिक - सामाजिक मोर्चा, डा. मंजरी वर्मा , शैलेश चौ
हान व नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी ने किया इस अवसर पर बोलते हुए डा. रवि ने कहा कि जिस तरह चन्द्रधर शर्मा गुलेरी मात्र एक कहानी ‘उसने कहा से ’ प्रसिद्ध हुई ठीक उसी तरह शिवराम ‘जनता पागल हो गई’ नाटक से लोकप्रिय हुए। शिवराम सन् 1973 से ही नुक्कड़ नाटक लिख
रहे हैं वे ‘नुक्कड़’ नाटक
के प्रणेता भी हैं और पुरोधा भी । विभिन्न नाट्य रूपों को शिवराम ने अपने नाटकों में सम्मिलित किया है। ये नाटक प्रकाशित होने से पहले सैकड़ों बार देश के विभिन्न क्षेत्रों में खेले जा चुके हैं
डा. मंजरी वर्मा ने कहा कि बिहार के सदूर गावों में इन नाटको का प्रभाव
देखने योग्य है। दुलारी बाई नाटक को देखकर गाँव के लोंगों ने यह निर्णय लिया कि अब कोई भी इस गाँव में शादी के अवसर पर न तो तिलक देगा न तिलक लेगा । शिवराम के नाटक जनता में चेतना जगाने में समर्थ हैं ।
समारोह सभा के अध्यक्ष डा. नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी ने कहा कि जब वे एडीएम थे तब उन्होनें एक नाटक लिखा था जिसे राजस्थान साहित्य एकादमी ने पुरस्कृत भी किया। इसके बावजूद मुझे कोई नाटककार के रूप में
नहीं पहचानता जबकि शिवराम को कोई भी एकादमी पुरस्कार नहीं मिला है फिर भी हिन्दी क्षेत्र में वे एक लोकप्रिय
नाटककार के रूप में जाने जाते हैं ।
शिवराम को हिंदी में नुक्कड़ नाटक आंदोलन के प्रणेताओं में माना जाता है। इनका नाटक ‘जनता पागल हो गई है’ हिंदी के शुरूआती नुक्कड़ नाटकों में शुमार किया जाता है यह हिन्दी का सर्वाधिक खेला जाने वाला नुक्कड़ नाटक है शिवराम के कई नाटक अन्य भाषाओं में अनूदित होकर भी खेले गए हैं। नाट्य लेखन के साथ वे एक कुशल निर्देशक और अभिनेता भी हैं।
हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ का , पिछले 33 वर्षो से सम्पादन ।
‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक - सामाजिक मोर्चो के महासचिव
गटक चूरमा में संग्रहित नाटक
1 बोलो - बालो हल्ला बोलो , ढम ढमा ढम ढम , गटक चूरमा व हम लड़कियाँ शिवराम
पुनर्नव में संग्रहित कहानियों के नाट्य रूपान्तर
1 प्रेमचन्द की कहानियाँ - ठाकुर का कुँआ , सत्याग्रह , ऐसा क्यों हुआ
रिजवान जहिर उसमान की कहानी ‘खोजा नसरूद्दीन बनारस में’ व नीरज सिहं की कहानी ‘क्यों’ का नाट्य रूपान्तर , वक्त की पुकार इस संग्रह में संग्रहित है।