Monday, September 14, 2009

राष्ट्रपिता के सपने

एक देश हुआ हिन्दुस्तान अब इंडिया हो गया है , इसके एक राष्ट्रपिता थे , जिन्होने अपनी लाठी से अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया । वे अंहिसावादी थे उन्होने कभी लाठी चलाई नहीं , हाँ कभी - कभी दिखा देते थे । जैसे नमक आन्दोलन में ।
उनके तीन बन्दर बहुत प्रसिद्ध हुए, वास्तव में ये तीन बन्दर ही उनके सच्चे वारिस थे , जो न बुरा देखते थे न बुरा सुनते थे , न बुरा कहते थे ।
इसलिए राष्ट्रपिता के वारिसों ने न तो कभी गरीबी जैसी बुराई देखी , न उन्होने भ्रष्टाचार के किस्सों पर कान दिया । वास्तव में उन्हें ऐसी बातें सुनाई ही नहीं पड़ती थी , न ही कभी उन्होंने किसी को बुरा - भला कहा सिवाय कम्युनिस्टों को छोड़कर । बुरा - भला कहनें की उन्हें जरूरत कहाँ थी विपक्षी उनके दरबार में हाजरी दे जाते थे , अफसर , उद्योगपति , व्यापारी ठेकेदार , जमींदार उनकी सेवा में रहते और वे भी उनकी सेवा करते । जीओ और जीने दो का सिद्धांत या इसे कहें सहअस्तित्व की भावना ।
उनके वारिसों ने राष्ट्रपिता के सपनों को साकार करने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई , जिससे इंजिनियरों , ठेकेदारों मंत्रियों , उद्योगपतियों और दलालों के विकास के साथ - साथ देश का थोड़ा बहुत विकास भी हुआ और इसी के चलते हम विकासशील देश की श्रेणी में आने लगे हैं देश को स्वावलम्बी करने के लिए विदेशों से कर्ज लिया , बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को न्योते दे देकर बुलाया ओर प्रार्थना की उनसे कि ‘आप हमारे राष्ट्रपिता के सपने साकार करें इस वास्ते नमक बनाने के हमारे अधिकार को हमने विदेशी कम्पनी ‘कारगिल’ को सौप दिये ।
खादी के विकास के लिए , बुनकरों के विकास के लिए उन्होनें बड़ी - बड़ी कपड़े की मिलें स्थापित की और कपडे का निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित करने लगे गोया विदेशी मुद्रा से प्यार हमारी देश भक्ति की सबसे बड़ी मिसाल है ।
राष्ट्रपिता की तीसरी या चौथी पीढ़ी के एक शख्स ने प्रधानमंत्री की कुर्सी से कहा कि जब भारत सरकार विकास में एक रूपया खर्च करती है तो पन्द्रह पैसे का विकास होता है । इतनी साफगोई थी इनमें । इतने सत्यवादी थे राष्ट्रपिता की तरह । कितने असहाय थे हमारे प्रधानमंत्री ।
राष्ट्रपिता ने शराबबन्दी का सपना देखा था उनके वारिसों में से एक ने गुजरात में पूर्णत: शराबबन्दी कर दी । जिससे राज्य सरकार को सालाना करोड़ो रूपयों का नुकसान होता था और शराब के धन्धों में लिप्त लागों को करोड़ों का मुनाफा होता था । इस मुनाफे को वे सद्कार्य में खर्च करते थे जैसे चुनाव फंड में पैसा देना , अस्पताल स्कूल खुलवाना , अनाथालय को दान देना जिससे उन्होनें खुब पुण्य कमाया वे रात -दिन बापूजी का गुणगान करते हैं और गांधी आश्रम को जम कर दान देते है।

3 comments:

विवेक सिंह said...

इस देश को लाइन पर लाने के लिए भागीरथ प्रयास की आवश्यकता है !

विवेक सिंह said...

इस देश को लाइन पर लाने के लिए भागीरथ प्रयास की आवश्यकता है !

प्रदीप कांत said...

और सभी उस भागीरथ प्रयास की राह देखते देखते मर जाएंगे. आगे कोई नहीं आएगा.