Monday, December 21, 2009

प्रत्याशी से पूछताछ

एक एम.एल. उम्मीदवार से चुनाव समिति ने निम्न प्रश्न पूछे ! अब आप बताएंगे कि चुनाव समिति ने सवाल क्यों पूछे - और इनकी प्रासंगिकता क्या है ?
जिला प्रमुख सुजीत जायसवाल ने पार्टी से एम.एल.ए. का टिकट मांगने का निश्चय कर , चुनाव समिति के समक्ष साक्षात्कार के लिए उपस्थित हुए ।
जो प्रश्नावली उनसे पूछी गई वह निम्न क्रम में थी
- आपका पूरा नाम
- किस विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ोगे ?
- किस जाति के हो ?
- आपके जाति के मतदाताओं की विधानसभा क्षेत्र में संख्या तथा
कुल मतदाताओं इनका कितना प्रतिशत है
- उक्त मतदाताओं का पार्टी की ओर रूझान
- आपका उन मतदाताओं पर प्रभाव / पकड़ कितनी है ?
- किन जातियों के समीकरण से चुनाव जीता जायगा ?
- आपकी आर्थिक हैसियत ? पार्टी फंड में कितना दे सकते हैं ?
- चुनाव में कितना खर्च कर लेंगे ?
- चुनाव फंड इकठ्ठा करने की सामर्थ्य ?
- पहले कोई चुनाव लड़ा हो तो वोटों की संख्या, जीते या हारे ।
- अल्पसंख्यकों का झुकाव , पार्टी की ओर है ?
- आपका अल्पसंख्यकों के नेताओं पर प्रभाव एसटी एस सी ओबीसी के नेताओं पर आपका प्रभाव
- अपनी पार्टी के किन - किन नेताओं से आपके घनिष्ठ संबन्ध है ?
- क्या जिला कमेटी व ब्लॉक कमेटी के सदस्य आपको सर्पोट करेंगे ?
- स्थानीय मुद्दे जिन पर चुनाव लड़ा जाएगा ।
- पार्टी के विभिन्न संगठनों (जिला व ब्लॉक स्तर पर ) पर आपकी पकड़
- कितने मुकदमें चल रहे हैं आपके विरूद्ध क्या हत्या/अपहरण/ व बलात्कार का कोई कैस है ?
- संगठन में किन - 2 पदों पर कार्य किया ?
- रैली के लिए अपने क्षेत्र से कितनी बसें भर कर ला सकते हो ? उनका भुगतान पार्टी नहीं करेगी
- प्रत्येक ब्लॉक से कितने समर्थक जुटा सकते हो ?
- क्या लोग आपसे खौफ खाते हैं ?
- क्या क्षेत्र के लोग ठीक से पहचानते हैं? थाना , कचहरी , कलेक्ट्रेट में पहचान है
- कोई आन्दोलन का नेतृत्व किया ? क्या क्या तोड़ा -फोड़ा - जलाया । पुलिस ने केस असली अपराधी पर बनाये या भोले भाले लोगों को फांसा । क्या आपने उन्हें छुडा़कर वाह - वाही लूटी, अखबार में फोटो आया । इसकी गूंज प्रदेश स्तर पर सुनाई पड़ी या नहीं ।
- आपकी छवि दबंग नेता की है या दब्बू नेता की ।

Wednesday, December 2, 2009

उदारह्दय



उदारह्दय
आप बहुत उदार है, इसलिए आपका समय उदारवादी कहलाता है आप उदार है निजी हितों के लिए ,निजी लाभ के लिए। तमाम प्रतिबन्ध हटाओ कि निजी क्षेत्र विस्तार चाहता है, कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपना साम्राज्य विस्तार चाहती है। अब सरकार हमारी नहीं रह गई , यह तो चेम्बर आँफ़ कामर्स एवं ईंडस्ट्रीज , बहुराष्ट्रीय निगमों और उनकी वकालत करने वाली अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की हो गई है । आपके वित्तमंत्री अपनी नीतियों के अनुमोदन के लिए उद्योगपतियों की संस्थाओं पर कितने निर्भर है ! बार-बार उनसे बैठके की जाती है, उन्हें समझाया जाता है बल्कि उनसे समझा जाता है ,किसानों -मजदूरों के साथ बैठके करते है? उनसे अपनी नीतियों का अनुमोदन करवाते हैं ? मजदूर किसान क्या जाने! वे तो निपट अपढ और अज्ञानी हैं । क्या उद्योगपतियों को अपने हित की नीतियां मनवाने के लिये किसान -मजदूर की तरह सड़क पर उतरना पड्ता है ?क्या कभी उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों पर लाठी-गोली चली?
जब भी कुल्हाडी गिरनी होती है इन जैसे गरीबों पर ही क्यों गिरती है?
सरकार को मार्ग निर्देश कहाँ से मिलते हैं ? विश्व बैंक , अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष , विश्व व्यापार संगठन आपको मुफ्त की सलाह क्यों देते हैं ? सलाह मानिए , नहीं तो उनकी फैंकी बोटियाँ आपको नहीं मिलेगी । सरकार लपकेंगी फैंकी बोटियाँ की ओर क्योंकि विकास के लिये पूंजी चाहिए,हेमामालिनी के गाल जैसी सडकें चाहिए बडे -बडे माँल चाहिए सेज़ चाहिए,इस पूंजी का 15% विकास पर और 85% नेताओं,सरकारी अफ़सरों,ठेकेदारों,एन्जिनियर,सप्लायरों,
उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों की तिजोरियों में जाकर काला धन बन जाता है।काला धन बेईमानी से इकट्ठा किया जाता है इसलिये वह काले कारनामे करता है।
पूंजी निवेश बढेगा तो रोजगार बढेगा। अरे पूँजी तो पूरे विश्व में अपना नंगा नाच नाचने के लिए तैयार है । यह वह नर्तकी है जिसके नाच पर सभी देशों की सरकारे फ़िदा है ।देशी दलाल पूंजी, विदेशीपूंजी के साथ ताल मिलाकर नाचेगी
सरकार फ़िर मुज़रे देखने का काम करेगी या विदेश यात्रा मे डिस्को व केसिनो देखेगी।
अभी बहुराष्ट्रीय कम्पनिया गर्वनेस मे भी उतर रही है तब हमारी सरकारों को प्रशासन कि जिम्मेदारी से भी मुक्ति मिल जाएगी। सरकारे केवल वे नितीगत फ़ैसले लेगी जो उसे तश्तरी में परोस कर दिये जाएंगे। संसद केवल बहस
करेगी, बहुमत न हो तो खरीद लिया जायगा।परमाणु करार में यही तो हुआ।
अब देखिये ये टेंडर किसको मिलता है ?