उदारह्दय
आप बहुत उदार है, इसलिए आपका समय उदारवादी कहलाता है आप उदार है निजी हितों के लिए ,निजी लाभ के लिए। तमाम प्रतिबन्ध हटाओ कि निजी क्षेत्र विस्तार चाहता है, कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपना साम्राज्य विस्तार चाहती है। अब सरकार हमारी नहीं रह गई , यह तो चेम्बर आँफ़ कामर्स एवं ईंडस्ट्रीज , बहुराष्ट्रीय निगमों और उनकी वकालत करने वाली अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की हो गई है । आपके वित्तमंत्री अपनी नीतियों के अनुमोदन के लिए उद्योगपतियों की संस्थाओं पर कितने निर्भर है ! बार-बार उनसे बैठके की जाती है, उन्हें समझाया जाता है बल्कि उनसे समझा जाता है ,किसानों -मजदूरों के साथ बैठके करते है? उनसे अपनी नीतियों का अनुमोदन करवाते हैं ? मजदूर किसान क्या जाने! वे तो निपट अपढ और अज्ञानी हैं । क्या उद्योगपतियों को अपने हित की नीतियां मनवाने के लिये किसान -मजदूर की तरह सड़क पर उतरना पड्ता है ?क्या कभी उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों पर लाठी-गोली चली?
जब भी कुल्हाडी गिरनी होती है इन जैसे गरीबों पर ही क्यों गिरती है?
सरकार को मार्ग निर्देश कहाँ से मिलते हैं ? विश्व बैंक , अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष , विश्व व्यापार संगठन आपको मुफ्त की सलाह क्यों देते हैं ? सलाह मानिए , नहीं तो उनकी फैंकी बोटियाँ आपको नहीं मिलेगी । सरकार लपकेंगी फैंकी बोटियाँ की ओर क्योंकि विकास के लिये पूंजी चाहिए,हेमामालिनी के गाल जैसी सडकें चाहिए बडे -बडे माँल चाहिए सेज़ चाहिए,इस पूंजी का 15% विकास पर और 85% नेताओं,सरकारी अफ़सरों,ठेकेदारों,एन्जिनियर,सप्लायरों,
उद्योगपतियों व कोर्पोरेट घरानों की तिजोरियों में जाकर काला धन बन जाता है।काला धन बेईमानी से इकट्ठा किया जाता है इसलिये वह काले कारनामे करता है।
पूंजी निवेश बढेगा तो रोजगार बढेगा। अरे पूँजी तो पूरे विश्व में अपना नंगा नाच नाचने के लिए तैयार है । यह वह नर्तकी है जिसके नाच पर सभी देशों की सरकारे फ़िदा है ।देशी दलाल पूंजी, विदेशीपूंजी के साथ ताल मिलाकर नाचेगी
सरकार फ़िर मुज़रे देखने का काम करेगी या विदेश यात्रा मे डिस्को व केसिनो देखेगी।
अभी बहुराष्ट्रीय कम्पनिया गर्वनेस मे भी उतर रही है तब हमारी सरकारों को प्रशासन कि जिम्मेदारी से भी मुक्ति मिल जाएगी। सरकारे केवल वे नितीगत फ़ैसले लेगी जो उसे तश्तरी में परोस कर दिये जाएंगे। संसद केवल बहस
करेगी, बहुमत न हो तो खरीद लिया जायगा।परमाणु करार में यही तो हुआ।
अब देखिये ये टेंडर किसको मिलता है ?
1 comment:
ओहो! तो इसे कहते हैं उदारवाद। मैं तो कुछ और ही समझा था।
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