क्या पता बेटा !
बच्चे ने टी.वी. देखते हुए पिता से पूछा -
‘पापा , ये बुश अंकल ईराक पर बमबारी कर लोगों को क्यों मार रहे हैं ?
‘बेटा कहते हैं सददाम चाचा के पास जैविक व रासायनिक हथियार है जो अगर अलकायदा को दे दिए तो पश्चिमी राष्ट्रों को बरबाद कर देगा ।
‘ पापा ये जैविक - रासायनिक हथियार कैसे होते हैं ?
‘बीमारी के जीवाणुओं और जहरीली गैसों को वातावरण में छोड़कर , लोगों को बीमार कर मार डालते हे।
‘जहरीली गैसों से मारो चाहे बमों से, मरता तो आदमी ही है ’
‘ हा बेटा ! तुम तो अच्छा तर्क कर लेते हो
‘लेकिन बेटा अमेरिका का आदमी स्पेशल है वह पूरी दुनिया को अपनी मुठ~ठी में कर लेना चाहता है
‘पापा आज खबर है कि सद~दाम पकड़ा गया ।
‘हा बेटा , ईराक अमेरिका के अधीन हो गया है अमेरिका कह रहा है कि अब ईराक में प्रजातान्त्रिक सरकार चुनी जायेगी ।
‘क्या वास्तव में ऐसा ही होगा ?
‘होगा लेकिन वह सरकार अमेरिका के आर्थिक व राजनैतिक हित पूरे करेगी । तेल के कुओं पर तो उसने अपना आधिपत्य कर ही लिया है ।
‘पापा , वह जैविक व रासायनिक हथियार वाली बात सही साबित हुई क्या ?
‘ शत प्रतिशत झूठी थी । जिसके आधार पर बुश ने इराक पर हमला किया था ।
‘तो अब सद~दाम पर क्या आरोप लगेगा ।
‘ यही कि डिक्टेटर होते हुए कुर्दो व जनता पर जुल्म ठाने के आरोप ।
‘ इतनी तबाही के बाद बुश इराकियों को प्रजातंत्र का तोहफा देंगे ।
‘पता नहीं बेटा।
शरीफ लोग
एक सुन्दर शरीफ स्त्री , निपट अकेली बीच बाजार में भूल - भूलैया में पड़े चूहे सी भटकती , हर रास्ते और मोड़ पर बैठे शोहदे उसे दबोचने की फिराक में पीछा कर रहे थे । उनकी तत्परता देखने लायक थी ।
'चूहिया अंतत: दबोच ली जायेगी ' उस सुन्दर स्त्री ने सोचा , और मन ही मन कुछ निर्णय किया ।
देखा एक शरीफ अधेड़ आदमी बाजार से कुछ खरीद कर घर की ओर जा रहा था । वह उसके गले पड़ गई - आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर, कब से ढूँढ रही हूँ ' अधेड़ आदमी अवाक देखता रहा - मैं इतनी गई बीती तो नहीं, कसम खाती हूँ तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी ।
शोहदे ठिठक गए - जैसे हाथ से शिकार निकल गया हो शरीफ आदमी ने , बीच बाजार में , लोगों को तमाशे का मजा लेते देख , कहा - यहाँ तमाशा मत बनाओ घर चल कर बात करेंगे ।
गर्मी
अप्रत्याशित ही मध्यावधि चुनाव का एलान हुआ जनवरी का महीना कड़ाके की ठण्ड हाथ - पाँव ठंडे हो गये ।
' वोट तो देना ही है , भाई किसे दें? क्यों दें ? और फिर ठंड में हाड कँपाने क्यों जाएँ ?
' आप उसकी फिक्र न करें , कार्यकर्ता ने आश्वस्त करना चाहा
' तो भई गरम कोट का इन्तजाम हो जाये ।
' हो जायेगा , तुम चलो तो सही , पिछ्ली बार कम्बल बाँटे थे कि नहीं ।
' सो तो ठीक है , मगर
' अच्छा - अच्छा चलो , कार्यकर्ता परेशान होकर बोला '
' वे जीप में बैठ गये । लाईन में खड़े , कोट पहने काँप रहे थे ,
हाथों को रगड़कर गर्मी लाने का उपक्रम कर रहे थे
' कार्यकर्ता से बोले भाई हाथ गरम करो , बड़ी ठंड पड़ रही है , कार्यकर्ता ने झुँझलाकर कुछ नोट रखे उसके हाथ पर , और हिदायत दी - ध्यान रखना ।
यह भी कोई कहने की बात है । उन्होंने दाँत निपोरते हुए कहा ।
अब वे पूरी तरह गरम हो चुके थे ।
दबाव
शासक पार्टी टूट रही थी राजधानियों मे भगदड़ मची हुई थी । दिल्ली में ब्रेक - अवे ग्रुप की बैठक चल रही थी । कुछ विधायक भोपाल से भी गए थे । मुख्यमंत्री पर दबाव डालने का इससे सुनहरा अवसर कौनसा हो सकता था ।
मुख्यमंत्री भी चौकन्ने थे ,
दिल्ली की बैठक से लौटे तो मुख्यमंत्री ने खबर ली ।
' तो आप हमारे घटक के मजबूत कार्यकर्ता हैं ?
वे बगलें झाँकने लगे ।
मंत्रीपद का आश्वासन मिला है '
' नहीं ऐसी बात नहीं है, …
' ठीक है एडजस्ट कर लेगें अगले महीने मंत्रीमण्डल का विस्तार कर रहे हैं । तब तक ये लो हवाई टिकट , अगले सप्ताह डेलीगेशन टोक्यो जायेगा घूम - फिर कर आइये । दर्द उठे तो हमे कहिए , क्यों सीधे दिल्ली भाग जाते हैं ?
जी - अच्छा , और लौटते समय वे आश्व्स्त और सतुष्ट थे ।
खदेड़ना
गांव के छोर पर , जहाँ नदी बहती है तथा जहाँ से जंगल आरंभ होता है , वहाँ सियार हूक रहे थे ।
एक पहर से ज्यादा रात निकल चुकी थी , सर्दी के दिन थे और लोग बिस्तरों में घुसने का इन्तजाम कर रहे थे , किंतु सियारों की हुँआ - हुँआ उन्हें नींद नहीं लेने दे रही थी ।
जैसे ही सियारों की हुँआ - हुँआ तेज हुई , गाँव की गलियों में रहने वाले कुत्ते भी भौंकने लगे । अब तो सोना मुश्किल हो गया गांव का एक कर्रा जवान उठा , लोहा जड़ी लाठी उठाई और कुत्तों के पास जाकर बोला क्यों भौंक रहे हो ?
- हम सियारों को खदेड़ रहे हैं, कुत्ते बोले ।
- अच्छा ! उसने अपनी लाठी उठाई और कसकर मारी , कुत्ते बैं - बैं कर दुम दबाये भागने लगे ।
वह चीखा - इसे कहते हैं खदेड़ना कुत्तों ।