Wednesday, September 15, 2010
गोविन्द गौड नहीं रहे ।
गोविन्द गौड ने यूं तो कविता से ही लेखन प्रारम्भ किया , किन्तु वास्तविक पहचान कथाकार के रूप में ही बनाई। दैनिक मिलाप, वीर प्रताप, सारिका, समांतर, आघात, दिव्य आहूति, सूजन, युवा हस्ताक्षर , आत्मविश्लेषण, आगामी , राजस्थान पत्रिका, लोकशासन आदि देश की कई पत्र पत्रिका , लोकशासन आदि देश की कई पत्र. पत्रिकाओं इनकी रचनाए प्रकाशित हुई है।
लघुकथा एवं लघुपत्रिका आंदोलन से सम्बद्व रह कर, रावतभाटा, स्लापर हि.प्र. पानीपत, कोटा से क्रमश: चन्दिका, संवाद, हिमस्नेह, राकेश दीप तथा कदम्बगंध पत्रिकाओं का सम्पादन किया ।
इनका एक कहानी सन्ग्रह असमांतर व लघुकथासंगह ‘प्रहार प्रकाशित हो चुका है । यह सन्ग्रह प्रहार लघुकथा के कारवां को आगे बढ़ाने में निश्चत ही मूल्यवान साबित होगा।
अन्तिम दिनों में परिवारजनों विशेषत: पत्नी से प्रताड़ित थे, और रात दिन उनके षड़यंत्रों से वे चिंतित रहते थे, कि वे अति मानसकि तनाव के शिकार हो गये , जब भी मिलते इसकी विषय पर वे घंटो बोलते रहते । समस्या सुलझाने के प्रयत्न मित्रों ने किये भी लेकिन वे सब असफल रहे । वे शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होते गए व 18 अगस्त 2010 को इस जग से विदा हो गये।
दिवंगत आत्मा को हमारी ओर से व मित्र लेखकों की हार्दिक श्रद्धांजलि।
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2 comments:
भाई गोविंद गौड़ के निधन का समाचार कष्टप्रद है। पिछले माह उनके अनजान हितैषियों में से एक आज के जाने-माने शायर भाई (आचार्य)सारथी रूमी ने उनके साथ बिताए महत्वपूर्ण दिनों को भावुकतापूर्वक याद किया था। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैं किस तरह उन्हें यह दु:खद समाचार दूँ। आपके द्वारा आयोजित कोटा(लघुकथा)सम्मेलन के दौरान दबी, लेकिन सधी और संतोषप्रद जुबान में उन्होंने मुझसे शिकायत की थी कि मैंने 'वर्तमान जनगाथा' में उनके लघुकथा संग्रह 'प्रहार' पर बहुत-अच्छी समीक्षा नहीं लिखी। मैं उन्हें तब यही कह पाया था कि उक्त संग्रह की अच्छी लघुकथाओं के प्रति मेरे मस्तिष्क में हमेशा जगह बनी रहेगी। अभी, पिछले दिनों पूरा किए गये अपने एक शोध-प्रबंध में उक्त संग्रह से कई लघुकथाओं को मैंने उद्धृत किया है। काश, वे देख पाते और अपनी शिकायत से मुझे बरी कर पाते। मैं हृदय से उन्हें याद करते हुए उनके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ। उनके निकट परिजनों/मित्रों/हितैषियों तक इसे पहुँचाने का कष्ट करें।
यह एक बेहद दुख्द समाचार है।
हार्दिक श्रद्धांजलि .
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