चम्बल ने अपने बहाव से चट्टानों को काट-काट गहरी घाटी बनाई है , अब चम्बल इस गहरी खाई में बहती है, किनारे जैसे किले की अभेद्य दीवारें। इन चट्टानी किनारों में गुफाएं, और गुफाओं में गूंजता सन्नाटा, अन्धेरे में लिपटा । किनारें सदियों की बारिश और धूप से स्याह हो गये हैं , लेकिन कई चट्टानें धूप में चमचमाती है ।
किनारें पर बीहड़ जंगल । लगता है इन गुफाओं में आदि मानव रहता होगा, ये गुफाऐं मुझे बार- बार आकर्षित करती हैं कि इनका अन्वेषण करूं कि कहीं अभी कोई आदि मानव इनमें रहता तो नहीं है, कुछ का कहना है कि इनमें शेर रहतें हैं । कुछ का कहना है कि इनमें ऋषि मुनि वर्षों से तपस्या कर रहें हैं । कहा जाता है कि एकाध गुफा में शिवलिंग है जिस पर वर्ष भर पानी टपकता रहता है, लेकिन जाना रेंगकर पढता हैं, आगे जाकर गुफा जरूर बड़ी हो जाती हैं, फिर खड़े - खड़े जा सकते हैं, वहॉं एक कुंड है जिसमें नहानें से मनुष्य को परम स्वास्थ्य उपलब्ध होता हैं ।मेरे इतिहास प्रेमी मित्र का कहना हैं कि इन गुफाओं में जरूर भित्तिचित्र होंगे, हो सकता हैं एजंता -एलोरा जैसे चित्र मिल जायें गुफायें तो आखिर गुफायें हैं अंधरें व रहस्य से आवृत । मैं पूरे रहस्य को अनावृत करना चाहता हूं , लेकिन इसमें जाने का साहस करना होगा , असुरक्षा व मृत्यु का भय पकड लेता हैं रहस्य को अनावृत्त करने के लिए क्या यम का मुकाबला करना होगा ! अन्दर चला भी गया तो आखिर क्या मिलेगा ? और उससे क्या हासिल होगा ? फिर भी ....मुझ में उन्हें अनावृत करने की अदम्य लालसा क्यों है ? मैं गुफा को गुफा नहीं रहने देना चाहता, लेकिन गुफायें भी तो अपना आकर्षण बनाये रखने के लिए रहस्य के धुंधलके में लिपटी रहती हैं, कई - कई किवदन्तियों के बीच आज भी ये रहस्य बनी हुई हैं ।
आदि मानव की मांनिद खतरों से जूझना ही पडेगा तभी रहस्य की चादर उसके चेहरे से हटकर , मुझे आकर्षित करना छोड देगी।
गुफाओं को बेनकाब करना ही होगा , नहीं तो ये मुझे प्रेत की तरह हॉन्ट करती रहेगी ।
3 comments:
बेहद प्रतीकात्मक...
मन की ग़ुफाओं में झांकती...
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले॥
गुफाओं को बेनकाब करना ही होगा , नहीं तो ये मुझे प्रेत की तरह हॉन्ट करती रहेगी ।
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बिल्कुल वैसे ही जैसे एक दुष्ट के विचारों को बेनकाब करना और उन्हे नाकाम करना ज़रूरी है।
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