Monday, June 3, 2013

आठवे दशक की लघुकथाए

देश

सिमर सदोष

वहां पानी की बहुत तंगी रहती थी ।बाल्टी भर पानी के लिये लोगों को मीलों तक चलना पडता था।वहां आदमी नहीं,मिलों ऊंट बसते थे !
एक बार सैलानियों का एक दल उस क्षेत्र में जा पहुंचा ।उनके पास पानी का काफ़ी भंडार था,जो कम से कम दो साल चल सकता था ।
गांव के लोग आश्चर्य चकित से आते और दूर खडे उन्हें टुकुर-टुकुर ताका करते।
एक दिन एक सैलानी ने गांव वालों की भीड में सबसे पीछे एक संगमरमरी बुत खडा देखा । उसे गौर से देखने के लिये वह उसके नजदीक जा खडा हुआ
। उसकी नज़र भांप कर बुत के समीप खडे एक बूढे ने खींसे निपोरते हुए कहा-मेरी बेटी है हजूर!
सैलानी ने उन्हें साथ ले जाकर एक मटका पानी दिया। बूढा बहुत खुश हुआ! उस दिन बाप -बेटी कोई तीन महीने पश्चात नहाए।रात को अन्य सैलानियों ने देखा कि
उस सैलानी के खेमे में हल्की रोशनी जल रही है। उन्होंने खेमे में से आती कुछ आवाजें भी सुनी,जैसे वह किसी बुत के साथ खेल रहा हो।
धीरे-धीरे रात भर हल्की-हल्की रोशनी में नहाये खेमों की संख्या बढती गई और सैलानियों का पानी का भंडार निश्चित समय से पहले ही खत्म होने लगा ।
 अतः एक रात मुँह अंधेरे ही वहां से कूच कर गये । प्रातः किसी अनजाने भय के कारण कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकला। दोपहर तक हर कोई जान चुका था कि प्रायः
हर घर में से एक-एक संगमरमरी बुत गायब है ।सब एक दूसरे से  मुँह चुरा रहे थे ।

(छोटी-बडी बातें सम्पादन-महावीर प्रसाद जैन-जगदीश कश्यप प्रकाशन वर्ष 1978 पंकज प्रकाशन दिल्ली)


2 comments:

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बेहतरीन लघुकथा...लाजवाब.

प्रदीप कांत said...

दोपहर तक हर कोई जान चुका था कि प्रायः
हर घर में से एक-एक संगमरमरी बुत गायब है ।सब एक दूसरे से मुँह चुरा रहे थे ।
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इस कहन पर स्तब्ध हूँ