देश
सिमर सदोष
वहां पानी की बहुत तंगी रहती थी ।बाल्टी भर पानी के लिये लोगों को मीलों तक चलना पडता था।वहां आदमी नहीं,मिलों ऊंट बसते थे !
एक बार सैलानियों का एक दल उस क्षेत्र में जा पहुंचा
।उनके पास पानी का काफ़ी भंडार था,जो कम से कम दो साल
चल सकता था ।
गांव के लोग आश्चर्य चकित से आते और दूर खडे उन्हें टुकुर-टुकुर
ताका करते।
एक दिन एक सैलानी ने गांव वालों की भीड में सबसे पीछे
एक संगमरमरी बुत खडा देखा । उसे गौर से देखने के लिये वह उसके नजदीक जा खडा हुआ
। उसकी नज़र भांप कर बुत के समीप खडे एक बूढे ने खींसे
निपोरते हुए कहा-मेरी बेटी है हजूर!
सैलानी ने उन्हें साथ ले जाकर एक मटका पानी दिया। बूढा
बहुत खुश हुआ!
उस दिन बाप -बेटी कोई तीन महीने पश्चात नहाए।रात को अन्य सैलानियों
ने देखा कि
उस सैलानी के खेमे में हल्की रोशनी जल रही है। उन्होंने
खेमे में
से आती कुछ आवाजें भी सुनी,जैसे वह किसी बुत के साथ खेल रहा हो।
धीरे-धीरे
रात भर हल्की-हल्की रोशनी में नहाये खेमों की संख्या बढती गई और सैलानियों
का पानी का भंडार निश्चित समय से पहले ही खत्म होने लगा ।
अतः एक रात मुँह
अंधेरे ही वहां से कूच कर गये । प्रातः किसी अनजाने भय के कारण कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकला। दोपहर तक हर कोई जान चुका
था कि प्रायः
हर घर में से एक-एक संगमरमरी
बुत गायब है ।सब एक दूसरे से मुँह चुरा रहे थे ।
(छोटी-बडी बातें सम्पादन-महावीर
प्रसाद जैन-जगदीश कश्यप प्रकाशन वर्ष 1978 पंकज प्रकाशन दिल्ली)
2 comments:
बेहतरीन लघुकथा...लाजवाब.
दोपहर तक हर कोई जान चुका था कि प्रायः
हर घर में से एक-एक संगमरमरी बुत गायब है ।सब एक दूसरे से मुँह चुरा रहे थे ।
_____________________________
इस कहन पर स्तब्ध हूँ
Post a Comment