Monday, October 20, 2014

आठवे दशक की लघुकथाए,

शीशा 

रमेश बत्तरा 

'सुनो कल रात मैंने स्वप्न में देखा की एक पर्स लेकर बाजार में घूम रही हूँ। '
'कल तुम शॉपिंग पर नहीं जा पायी थी न !'
'तुम्हीं ने तो रोक लिया था। '
'बस यही बात तुम्हारे मन में रह गई और तुम्हारा अवचेतन मन तुम्हें शॉपिंग पर ले गया। '
'पर,एक बात समझ नहीं आई की मैं नग्न ही क्यों घूम रही थी ?'
'क्या----कह ---रही  हो !'
'हाँ मैंने देखा कि मैं निर्वस्त्र हूँ और लोग मुझे घूर रहे हैं। '
'ओह -हो !तब तो तुम्हें बहुत शर्म आयी होगी ?'
'सच्च ,बहुत शर्म आयी। मेरा पर्स इतना गन्दा और फटा पुराना था जैसे कूड़े में से उठा कर लाया गया हो '
इससे पहले कि सामनेवाला उसका मुँह ताकता हुआ कुछ कह पाता उसने फैसला दिया की आज की शॉपिंग में
वह एक नया पर्स भी जरूर खरीदेगी। 

Thursday, September 25, 2014

हमका नहीं पढ़ाना

हमका नहीं पढ़ाना 

चंद्रभूषण सिंह 

पूरी की पूरी दुनिया बदल गयी ,परन्तु वह शिक्षक नहीं बदला। जब उसे ज्ञात्त हुआ कि भोलाराम के बेटे राजेंद्र ने एक सप्ताह से विद्यालय आना
छोड़ दिया है ,तो एक दिन वह उसके घर पहुँच गया। जब शिक्षक ने भोलाराम से राजेन्द्र की  अनुपस्थिति  के बारे में पूछा तो भोलाराम ने तपाक
से कहा ,--हमका रजिन्दरा को अब नहीं पढ़ाना।
"भाई कुछ कारण तो होगा  ?"
"आप रजिन्दरा को एक हफ्ता पहले मारा  ?"
वह शिक्षक याद करने लगा। कुछ मिनटों के बाद उसने बतलाया कि उसने राजेन्द्र को ताड़ी पीने के लिए पीटा था
इतना सुनना था कि भोलाराम भड़क उठा ,"इ ताड़ी नहीं पीयेगा ,तो दूध पीयेगा ?घी खायेगा ? मास्टर साहेब  इ पासी का बेटा है ,ताड़ी
उतारना ,ताड़ी बेचना और ताड़ी पीना त इसका कमबे है"
"भोलाराम इस गंदी आदत से बच्चे बचे रहें तो अच्छा है। "
इसके उत्तर में भोलाराम ने जो कहा उसेसुनकर  शिक्षक चुपचाप लौट आए।
"आप इस्कूल में पढ़ाने आया है कि हमका रोजी बिगारने। आप  रजिन्दरा को नौकरी दे सकता है।
(तत्पश्चात   )

Monday, June 30, 2014

बिन तले के जूते

बिन तले के जूते

सुखबीर विश्वकर्मा

हमेशा से यही होता था गांव में कभी कोई मौत होती या खुशी का मौका होता तो
उन्हें जरूर बुलाया जाता वह खुद न जाकर चमरौंधे जूतों का एक जोडा भेज देते
जो उनके शामिल होने का प्रतीक था

वे सैकडों बीघा जमीन के मालिक थे। गांव का एक हिस्सा उनकी जमीन जोत-बो कर
पलता था।उनकी किलेनुमा आलीशान हवेली में हर वक्त मोटे-तगडे नौकर मौजूद रहते।
भला किसमें हिम्मत थी कि उनकी हरकत के खिलाफ़ मुंह खोल सकता।

अचानक एक दिन उनकी मां मर गई।परम्परा के मुताबिक गांव में खबर पहुंचा दी गयी
कि हरेक घर से एक-एक आदमी को शवयात्रा में शामिल होना है। जबाब मिला आयेंगे

अर्थी बनकर तैयार हो गई लेकिन एक भी आदमी वहां नहीं पहुंचा । वे हैरान थे।
झल्लाकर वे नौकरों पर बरसने लगे।

तभी दो बैलगाडियां हवेली की तरफ़ आती दिखाई पडी । वे चादरों से ढकी थी । पास
आने पर उन्होंने गाडीवालों से पूछा,"लोग कहां है ? और ये क्या तमाशा है ?

गाडीवान बगैर कुछ कहे वापस लौट गये ।इधर उन्होंने आगे बढकर बैलग़ाडियों पर से
चादरें हटायी ।वह ठगे रह गये । ग़ाडियों में बिन तलों के वही जूते भरे थे जो उन्होंने
समय-समय पर गांव वालों के यहां भिजवाये थे ।

("तनीहुई मुट्ठियां" सम्पादक मधुदीप/ मधुकांत     1980)

Wednesday, May 21, 2014

बहू का सवाल

बहू का सवाल

बलराम


रम्मू काका काफ़ी रात गये घर लौटे तो काकी ने जरा तेज आवाज पूछा---कहां च्लेगे रहन तुमका घर केरि तनकब चिंता फिकिर नांइ रहित हय। कोट की जेब से हाथ
निकालते हुए रम्मू काका ने विलम्ब का कारण बताया।
--जरा ज्योतिषीजी के घर लग चलेगे रहन ।बहू के बारे मा।म पूछय का रहय
रम्मू काका क जबाब सुनकर सूरजमुखी के मानिंद काकी का चेहरा खिल उठा, आशा भरे स्वर में जिज्ञासा प्रकट की
---का बताओ हइन
चारपाई पर बैठते हुए रम्मू काका ने कम्पुआइन भाभी को भी अपने पास बुला लिया और धीरज से समझाते हुए बताया
----शादी के बाद आठ साल लग तुम्हारी कोखि पर शनिचर देवता क्यार असर रहो,ज्योतिषीजी बतावत रहेय। हवन पूजन
किराय कय उइ शनिचर देवता की शान्ति करि दयाहंय। तुम्हंया तब आठ सन्तानन क्यार जोगु हयऽगले मंगल का हवन पूजन होई
ज्योतिषीजी ते हम कहि आये हन ।रम्मु काका एक ही सांस में सारी बात कह गये।
कम्पुआइन भाभी और भइया चर दिन की छुट्टी पर कानपुर से गांव आये थे और सोमवार को उन्हें कानपुर पहुंच जाना था। रम्मू काका
की बात काटते हुए कम्पुआइन भाभी ने कहा।
--हमने बडे-बडे डाक्टरों से चेकाप करवाया है और मैं कभी भी मां नहीं बन सकूंगी।
कम्पुआइन भाभी का यह जबाब सुनकर रम्मू काका सकते में आगये और अपेक्षाकृत तेज आवाज में बोले---
तब्फिरि इसे साल बबुआ केरि दूसरि शादी करि देवे अवहिन ओखेरि उमर का हय तीसय बत्तीस बरसक्यार तव हय
रम्मू काका की यह बात सुनते ही भाभी को क्रोध आ गया तो उन्होंने सही बात उगल दी।
---कमी मेरी कोख में नहीं ,आपके बबुआ के शरीर में है। मैं मां बन सकती हूं पर वे बाप नहीं बन सकते और बोलो।

Tuesday, February 18, 2014


अदला-बदली
मालती महावर
-क्या आप मुझे गोद लेना पसंद करेंगे ?
यह सुन्कर उस हरिजन व्यक्ति ने सिर से पैर तक उस नवयुवक को देखा,जिसका यह सवाल था।
-मुझे इसकी क्या आवश्यकता ?मेरा लडका भी तुम्हारी उमर का है
-नहीं,मेरा मतलब है आप मुझे सिर्फ़ सरकारी कागजों पर अपना लडका बना लें।मैं ब्राह्मण जाति का हूं,लेकिन मेरे पिता की पेंशन होने से मुझे आगे पढाने में असमर्थ है,आपका लडका बनने से मुझे हरिजन स्कालरशिप मिल जायेगी।
-मेरा लडका भी कालिज में ऊंची जाति के लडकों के साथ पढने के कारण हीन भावना से ग्रस्त हो गया है ,अक्सर अपने को कोसता है कि इस जाति में जन्म क्यों लिया! ऐसे जीवन से तो मर जाना अच्छा। तुम अपने पिताजी से
पूछकर आओ कि क्या वे मेरे लडके को गोद ले लेंगे?