Monday, July 7, 2008

भ्रूण हत्या


डा कमल चौपडा

खल - छिलका भिगोने के लिए हौज को भरने के लिए नलका चलाते - चलाते बुधनिया के हाथ बाँह दर्द करने लगे थे, थोड़ा सा काम करते ही साँस फूलने लगता है! ऊपर से चौथा महीना लग गया है। शहर से उनका मनीआर्डर तो दूर … खैर - खैरियत की चिट्ठी तक नहीं आई ! कृष्णा दाई कहती है, अब तुझे भारी काम बन्द करके आराम करना चाहिए । अव तो आराम ही कर लो ! या सारा दिन प्रधान जी के घेर में खट कर रोटी का जुगाड़ ही कर लो। अपनी जिंदगी खींचने के लिये दाल रोटी पैदा करना मुश्किल हो रहा है, जो आने वाला है उसके लिए … इस हालत में तो और भी ज्यादा खुराक चाहिए वरना … पर कौन कहाँ से किसे और कैसे दे…?
"प्रधान जी ने आज भूरी भैंस को खल - छिलका व भूसा डालने से मना कर दिया है। भूरी भैंस भी गाभिन है और उसने दूध देना बंद कर दिया है । अव जब तक सूयेगी नहीं तब तक उसे 'चराई' पर जिन्दा रहना पड़ेगा । पशु और गरीबों का भगवान ही मालिक है वरना हफ्ते से बीस रुपये माँग रही हूँ पर देने से साफ इन्कार कर रहा है, ब्याज की एवज में काम करते रहो… चाहे भूखे मरो प्रधान जी को क्या ? आस औलाद का मोह तो की कीड़े - मकोड़े जानवरों को भी होता है । हम तो इन्सान हैं । पर प्रधान जी हमें इन्सान समझें तब ना … प्रधान जी की अपनी बहू भी तो 'दिनों' से है, उसकी जो सेवा और देखभाल हो रही है वह … कोई बात नहीं … पैदा तो 'बालक' ही होगा ।
पैसे तो दूर प्रधान जी ने उसे छुट्टी तक नहीं दी, काम कौन करेगा ? शाम को चार रोटी चाहिए तो काम कर वरना … बुधनिया तड़प कर रह गई।
बुधनिया काम छोड़े भी कैसे ? काम बन्द तो रोटी भी बन्द ! वैसे उससे काम हो भी नहीं पा रहा था । भूख से बेहाल होकर भी जैसे - तैसे काम में जुटी रही ।
शाम होते बुधनिया की तबीयत खराब होती चली गई। जिस बात का उसे डर था वही हुआ , उसके कपड़े खून से भीगने लग गये । किसी तरह घर पहुँची तो तकलीफ और बढ़ गई । उसके सारे कपड़े खून ही खून हो गये । यह तीसरी बार थी । दो बार पहले भी वह इसी तरह तकलीफ झेल चुकी थी, शायद सन्तान का मुँह देखना ही… । अचानक गुस्से में आकर बुधनिया अपने खून से सने कपड़े ले जा कर प्रधान जी के दरवाजे पर पटक आई ।
प्रधान जी को पता चला तो वे आपे से बाहर हो उठे और बुधनिया की लाश बिछा डालने पर तुल गए । लेकिन उसी समय पण्डितों सयानों में मची भगदड़ से पता चला की इस प्रकार नीची जात का जीव खंडित होना शुभ होता है। आपके वंश के लिए उस चमार की औलाद ने कुर्बानी दी है । उसे तो इनाम मिलना चाहिए !
उस दिन बिना हाड़तोड़ मेहनत के ही मीठे पकवान वे लोग बुधनिया को दान में खिला भी रहे थे । लेकिन वह चीख उठी ," तुम हत्यारे हो … तुमने मेरे बच्चे की हत्या कर दी है ।"

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