रतन कुमार सांभरिया
आठ घोड़ों की सजी - सँवरी बग्गी में रखी भगवान की भव्य मूर्ति को लेकर रथयात्रा निकाली जा रही थी। रथ के आगे पीछे जय-जयकार करती भीड़ ज्वार आये समुद्र की तरह उमड़ रही थी नानकिया, उसका पहलवान बेटा चंदू और उसके तीन शार्गिद तलवारों की पटेबाजी दिखाते हुए सबसे आगे चल रहे थे ।
रथयात्रा को अब संकरे मार्ग से गुजरना था। उस रास्ते में एक बिगड़ैल और जिद्दी साँड पसरा पड़ा था। वह इतना खूँख्वार था कि उसकी कल्पना से ही लोग थरथराते थे। उत्साही भीड़ जो ' जय-जयकार ' करती आगे बढ़ रही थी, साँड को सामने देख, पीछे भाग छूटी। पुजारी,जो भगवान की इसी मूर्ति के सामने बैठकर श्रद्धालुओं को अभयदान तक दिया करते थे, भय से घिग्घिया गए। सारथी की हाँफी छूट गई थी । घोड़ों ने भी ठिठक कर पाँव टपटपाए और हिनहिनाकर आगे न बढ़ने की अपनी विवशता प्रकट कर दी।
रथ के सामने अब पाँच लोग थे । नानकिया, चंदू और उसके तीन चेले। नानकिया ने रथ में बैठे पुजारी की ओर देखा तो उनकी आँखों मे चिंता, भय और बेबसी की त्रिवेणी थी। पुजारी ने नानकिया को अपने नजदीक बुलाया और उसके कंधे पर हाथ रखकर सूखे कण्ठ से कहा - "नानक, भगवान का रथ वापस नहीं लौटता है। जैसे भी हो, भगवान की इज्ज्त बचानी है ।''
श्रद्धासिक्त नानकिया जोश से उफन गया। उसने भगवान की 'जयजयकार' की ओर हाथ में तलवार लिए जब साँड की ओर बड़ा तो चंदू ने उसे रोक दिया, उसके होते वे साँड के सामने नहीं जाँएंगे। चंदू के शार्गिद मदद के लिए बढ़े तो उसने उनको भी हिदायत दे दी कि वह भी अकेला ही है ।
चंदू और साँड एक-दूसरे के सामने थे। चंदू के हाथ में नंगी तलवार थी और साँड दोनों सींग आगे बढ़ाये क्रोध के मारे सूँ- सूँ कर रहा था। सुरक्षित स्थानों पर खड़े लोग साँस रोके यह भयावह नजारा देख रहे थे। चंदू ने साँड पर वार करने का कई बार मन बनाया, लेकिन हर बार धर्म आड़े आ गया-गऊमाता का जाया है । आखिर, मर गया तो पाप लगेगा।
क्रोधित साँड चंदू पर टूट पड़ा और उसकी हड्डी- पसलियों को जमीन में मिलाकर वहाँ से भाग निकला।
अपने इकलौते पुत्र की हृदयविदारक मौत पर एक बार नानकिया की आँखें झलझला आईँ , कलेजा मुँह मे आ अटका, लेकिन दूसरे ही क्षण वह यह सोचकर संयमित हो गया कि राजा मोरध्वज ने भी अपने इकलौते पुत्र को आरे से चीरकर भगबान की सेवा में परस दिया था, अगर किसी छोटी जाति के मुझ जैसे नाचीज का पुत्र भगवान के नाम पर शहीद हो गया , तो क्या हुआ।
रथ मंदिर के सामने आकर खड़ा हो गया था। पुजारी रथ से नीचे उतर आये थे। मूर्ति को रथ से उतारकर मन्दिर में रखवाने की तैयारियाँ होने लगी थीं। बेटे के बलिदान से भावविभोर हुआ नानकिया भूल गया था कि वह किस जाति से है । स्वयं को एक समर्पित भगत मानकर मूर्ति को उतरवाने के लिए जब वह आगे बढ़ा तो पुजारी की आँखों में घृणा उतर आई। उन्होनें तिरस्कृत नेत्रों से नानकिया की ओर देखा और हड़काते हुए बोले-"नानकिया मूर्ति मत छूना तूं, भगवान भरिस्ट हो जायेगा।"
आठ घोड़ों की सजी - सँवरी बग्गी में रखी भगवान की भव्य मूर्ति को लेकर रथयात्रा निकाली जा रही थी। रथ के आगे पीछे जय-जयकार करती भीड़ ज्वार आये समुद्र की तरह उमड़ रही थी नानकिया, उसका पहलवान बेटा चंदू और उसके तीन शार्गिद तलवारों की पटेबाजी दिखाते हुए सबसे आगे चल रहे थे ।
रथयात्रा को अब संकरे मार्ग से गुजरना था। उस रास्ते में एक बिगड़ैल और जिद्दी साँड पसरा पड़ा था। वह इतना खूँख्वार था कि उसकी कल्पना से ही लोग थरथराते थे। उत्साही भीड़ जो ' जय-जयकार ' करती आगे बढ़ रही थी, साँड को सामने देख, पीछे भाग छूटी। पुजारी,जो भगवान की इसी मूर्ति के सामने बैठकर श्रद्धालुओं को अभयदान तक दिया करते थे, भय से घिग्घिया गए। सारथी की हाँफी छूट गई थी । घोड़ों ने भी ठिठक कर पाँव टपटपाए और हिनहिनाकर आगे न बढ़ने की अपनी विवशता प्रकट कर दी।
रथ के सामने अब पाँच लोग थे । नानकिया, चंदू और उसके तीन चेले। नानकिया ने रथ में बैठे पुजारी की ओर देखा तो उनकी आँखों मे चिंता, भय और बेबसी की त्रिवेणी थी। पुजारी ने नानकिया को अपने नजदीक बुलाया और उसके कंधे पर हाथ रखकर सूखे कण्ठ से कहा - "नानक, भगवान का रथ वापस नहीं लौटता है। जैसे भी हो, भगवान की इज्ज्त बचानी है ।''
श्रद्धासिक्त नानकिया जोश से उफन गया। उसने भगवान की 'जयजयकार' की ओर हाथ में तलवार लिए जब साँड की ओर बड़ा तो चंदू ने उसे रोक दिया, उसके होते वे साँड के सामने नहीं जाँएंगे। चंदू के शार्गिद मदद के लिए बढ़े तो उसने उनको भी हिदायत दे दी कि वह भी अकेला ही है ।
चंदू और साँड एक-दूसरे के सामने थे। चंदू के हाथ में नंगी तलवार थी और साँड दोनों सींग आगे बढ़ाये क्रोध के मारे सूँ- सूँ कर रहा था। सुरक्षित स्थानों पर खड़े लोग साँस रोके यह भयावह नजारा देख रहे थे। चंदू ने साँड पर वार करने का कई बार मन बनाया, लेकिन हर बार धर्म आड़े आ गया-गऊमाता का जाया है । आखिर, मर गया तो पाप लगेगा।
क्रोधित साँड चंदू पर टूट पड़ा और उसकी हड्डी- पसलियों को जमीन में मिलाकर वहाँ से भाग निकला।
अपने इकलौते पुत्र की हृदयविदारक मौत पर एक बार नानकिया की आँखें झलझला आईँ , कलेजा मुँह मे आ अटका, लेकिन दूसरे ही क्षण वह यह सोचकर संयमित हो गया कि राजा मोरध्वज ने भी अपने इकलौते पुत्र को आरे से चीरकर भगबान की सेवा में परस दिया था, अगर किसी छोटी जाति के मुझ जैसे नाचीज का पुत्र भगवान के नाम पर शहीद हो गया , तो क्या हुआ।
रथ मंदिर के सामने आकर खड़ा हो गया था। पुजारी रथ से नीचे उतर आये थे। मूर्ति को रथ से उतारकर मन्दिर में रखवाने की तैयारियाँ होने लगी थीं। बेटे के बलिदान से भावविभोर हुआ नानकिया भूल गया था कि वह किस जाति से है । स्वयं को एक समर्पित भगत मानकर मूर्ति को उतरवाने के लिए जब वह आगे बढ़ा तो पुजारी की आँखों में घृणा उतर आई। उन्होनें तिरस्कृत नेत्रों से नानकिया की ओर देखा और हड़काते हुए बोले-"नानकिया मूर्ति मत छूना तूं, भगवान भरिस्ट हो जायेगा।"
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