प्रदीप कान्त
22 मार्च 1968 को रावत भाटा (राजस्थान) में जन्म ।
अजमेर विश्व विद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर के पश्चात भौतिकी में भी स्नात्तकोत्तर।
कथादेश, इन्द्रपस्थ भारती, सम्यक, सहचर, अक्षर पर्व आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण आदि समाचार पत्रों में गज़लें व गीत प्रकाशित।
प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत
फोन: 0731 2320041
Email: kant1008@rediffmail.com, kant1008@yahoo.co.in
1
किसी न किसी बहाने की बातें
ले देकर ज़माने की बातें
उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें
रात अपनी गुज़ार दें ख़्वाबों में
सुबह फिर वही कमाने की बातें
समझें न समझें हमारी मर्ज़ी
बड़े हो, कहो सिखाने की बातें
मैं फ़रिश्ता नहीं न होंगी मुझसे
रोकर कभी भी हँसाने की बातें
2
मोड़ के आगे मोड़ बहुत
रही उम्र भर दौड़ बहुत
द्वापर में तो कान्हा ही थे
इस युग में रणछोड़ बहुत
नियम एक ही लिखा गया
हुऐ प्रकाशित तोड़ बहुत
किसिम किसिम की मुखमुद्राएँ
धनी हुऐ हँसोड़ बहुत
अन्तिम सहमति कुर्सी पर
रहा सफल गठजोड़ बहुत
3
अपने रंग में उतर
अब तो जंग में उतर
सलीका उनका क्यों
अपने ढंग में उतर
दर्द को लफ़्ज़ यूँ दे
किसी के रंज में उतर
बदतर हैं हालात ये
कलम ले, तंज में उतर
अपने में ही गुम है
अपने दिले तंग में उतर
22 मार्च 1968 को रावत भाटा (राजस्थान) में जन्म ।
अजमेर विश्व विद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर के पश्चात भौतिकी में भी स्नात्तकोत्तर।
कथादेश, इन्द्रपस्थ भारती, सम्यक, सहचर, अक्षर पर्व आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण आदि समाचार पत्रों में गज़लें व गीत प्रकाशित।
प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत
फोन: 0731 2320041
Email: kant1008@rediffmail.com, kant1008@yahoo.co.in
1
किसी न किसी बहाने की बातें
ले देकर ज़माने की बातें
उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें
रात अपनी गुज़ार दें ख़्वाबों में
सुबह फिर वही कमाने की बातें
समझें न समझें हमारी मर्ज़ी
बड़े हो, कहो सिखाने की बातें
मैं फ़रिश्ता नहीं न होंगी मुझसे
रोकर कभी भी हँसाने की बातें
2
मोड़ के आगे मोड़ बहुत
रही उम्र भर दौड़ बहुत
द्वापर में तो कान्हा ही थे
इस युग में रणछोड़ बहुत
नियम एक ही लिखा गया
हुऐ प्रकाशित तोड़ बहुत
किसिम किसिम की मुखमुद्राएँ
धनी हुऐ हँसोड़ बहुत
अन्तिम सहमति कुर्सी पर
रहा सफल गठजोड़ बहुत
3
अपने रंग में उतर
अब तो जंग में उतर
सलीका उनका क्यों
अपने ढंग में उतर
दर्द को लफ़्ज़ यूँ दे
किसी के रंज में उतर
बदतर हैं हालात ये
कलम ले, तंज में उतर
अपने में ही गुम है
अपने दिले तंग में उतर
1 comment:
The gazals are excellent, and having "Chhoti Bahar". Accept my "Badhaieya" for presenting such lovely Gazals.
Narendra Chakravarti
nkcfriendshelpline@gmail.com
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