Wednesday, June 3, 2009

डाकुओं की संगठित गेंग के बारे में हलफिया बयान




डाकुओं की संगठित गेंग के बारे में हलफिया बयान


पुलिस के बारे में एक जज साहेब ने टिप्पणी की थी कि पुलिस डाकुओं की एक संगठित गेंग है । भई ! यह तो बहुत ही सख्त टिप्पणी है पुलिस सेवा के बारे में । चूंकि जज साहब को तो सरकार चलानी नहीं , इसलिए वे तो ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं लेकिन यह तो सरकार ही जानती है कि पुलिस किस कदर जनता की सेवा व सुरक्षा में चैबीस घंटे लगी हुई है ।
आलतू - फालतू आन्दोलनों को तोड़ने व फोड़ने , मरोड़ने व कुचलने का कार्य भी यही गेंग सरअंजाम देती है । विरोधियों के छक्के छुड़ाने व छठ़ी का दूध याद दिलाने का काम भी इसी के जिम्मे है । क्योंकि सरकार यह काम नहीं कर सकती इसलिए यह काम पुलिस के द्धारा करवाया जाता है जिससे देश में अमन चैन बना रहता है ।
और फिर उन्हें डकैत कहना तो खुला झूठ है , डकैत हमेशा खुले में लूटमार करते हैं जबकि पुलिस कभी ऐसा नहीं करती , वह हमेशा प्रछन्न तरीके अपनाती है । उसके लिए बकायदा प्रत्येक थाने में, पहुॅंच रखने वाले लोग होते हैं , वे राजनैतिक दल के कार्यकर्ता हो सकते है , कुछ छटे हुए बदमाश भी यह काम करते हैं कुछ वकील लोग भी यह काम करते हैं क्योंकि यह उनकी प्रेक्टिस की परिभाषा में आता है । इन लोगों का काम है मुर्गी फांसना और फिर थाने में होती है मुर्गी हलाल । जो मुर्गी फांसकर लाते हैं थाने में , उनकी समाज में बड़ी इज्जत होती है , इससे ही अंदाज लगाइये कि पुलिस की समाज में कितनी इज्जत होगी । इनसे पंगा लेना , मौत को दावत देना है । इज्जतदार लोगों से आम जनता हमेशा थरथराती रही है । अब आप ही बताइये कि वे कौनसे कारनामे हैं जिसकी वजह से सरकार को यह नियम बनाना पड़ा कि थानेदार किसी स्त्री का बयान थाने में बुलाकर नहीं ले सकता ।
पाठ पढ़ाने में हमारी पुलिस का कोई सानी नहीं है । थर्ड डिग्री क्या होता है ये वे लोग ठीक से जानते हैं जिनके घुटनें की टोपियाॅं टूट गई या हाथ - पाॅंव की हड्डियाॅं टूट गई , जिनके मुहॅं में मूता गया और गवाही चाहिए तो जुगता की लो जिसका लिंग तक उन्होनंे काट दिया ।
यह सब इसलिए किया जाता है कि अपराधियों में हाथ - पाॅंव टूटने का डर नहीं होगा तो अपराध रूकेंगे कैसे सरकार के वक्तव्यों और भाषणों से तो अपराध रूकने से रहे न ही कोर्ट कचहरी के भरोसे अपराध रूकेंगे । पुलिस जब सीधी और स्वविवेक से कार्यवाही करेगी तब ही अपराध जगत में दशहत फैलेगी ।
लेकिन ऐसा क्यों होता है कि दशहत आम लागों में फैल जाती है और अपराध जगत के बीर बांकुरे थाने में बैठे मूंछों पर ताव देते रहते हैं ।

2 comments:

सुभाष नीरव said...

भगीरथ भाई, एक कटु सत्य है यह तो!

प्रदीप कांत said...

पुलिस के बारे में एक जज साहेब ने टिप्पणी की थी कि पुलिस डाकुओं की एक संगठित गेंग है ।

मेरी छोटी सी समझ में यह बड़ी ही कटु किन्तु सत्य टिप्पणी है।