यशेंद्रा भारद्वाज
‘‘देख रामकली तू परिवार की बडी बहू है इसलिए सर ढाँप कर रखना और बड़ों के पाँव छूकर आशीर्वाद लेना ।‘‘
सुहाग सेज पर पति द्वारा दी गई हिदायत को उसने पल्लू से बाँध लिया था। अपने प्रेम और सेवाभाव से रामकली ने सभी का मन जीत लिया था। जिस देवर को उसने कभी गोद में खिलाया था आज उसकी सगाई की रस्म अदा करने लडकी वाले आ रहे थे।
मन में उठ रहे विचारों को झटक उसने काँजीवरम की साड़ी पहनी , नाक में नथनी पावों को लाल-लाल आलते से और चादी नगों वाले बिछुए पहन कर सजाया।
सोलह श्रृंगार कर अपना रूप दर्पण में निहारा और धीरे से साड़ी के पल्लू से अपना सर ढ़ाँप लिया था।
‘‘कैसे लग रही हूँ जी , उसने इठलाते हुए पूछा । ‘‘बेजोड‘‘ परन्तु ये पल्लू सर से उतारो, जानती नहीं क्या तुम्हे इस रूप में देखकर लडकी वाले समझेंगे कि हम असभ्य है, गंवार हैं जो आजकल के जमाने के अनुसार नही चलतें।‘‘ कहते-कहते उसने पत्नी के सर से पल्लू खीच लिया था
उसे लगा था कि जैसे किसी ने उसे भरे बाजार में नंगा कर लिया हो । बडे-बूढ़ो के आगे बिना पल्लू के जाने की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठा था
अब उसका ड़रा सहमा सा मन ‘कुलवधु‘ की नई परिभाषा सीखने की कोशिश करने लगा था ।
अन्धा मोड़ सम्पादक : - कालीचरण प्रेमी , पुष्पा रघु
4 comments:
mMlaawat ke dambh pr karaaraa vyang. Saarthak post.
mMlaawat ke dambh pr karaaraa vyang. Saarthak post.
नई संस्कृति ने कई चीजों की परिभाषा बदल दी है।...अच्छी पोस्ट।
क्या परिभाषा का बदल जाना और उसे अपनाना इतना आसान है?
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