Thursday, November 18, 2010

तीन कविता

शैलेन्द्र

हिन्दी के सुपरिचित कवि एव वरिष्ठ पत्रकार शैलेन्द्र के अब तक तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। बलिया के मनियार स्बे ५ अक्टूबर १९५६ को जन्मे शैलेन्द्रलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर हैं। पत्रकारिता में एक लंबी संघर्षमय यात्रा पूरी करके इस समय जनसत्ता के कोलकाता संस्करण में प्रभारी संपादक पद पर कार्यरत हैं। कविताओं के साथ ही समय समय पर दिनमान, रविवार, श्रीवर्षा, हिन्दी परिवर्तन, जनसत्ता, कथादेश, पाखी,  आदि पत्र पत्रिकाओं में समाचार कथाएँ, लेख, टिप्पणियों, कुछ कहानियों का प्रकाशन भी होता रहा है

सम्पर्क: , किशोर पल्ली, बेलघरिया
फोन: 09903146990
1
सच के बारे में
आओ
थोड़ा छत पर टहल लें
मकान मालिक के
लौटने तक
चाँदनी तले
थोड़ा हँस-खिलखिलालें
तारों की और नज़र कर लें

कितना अच्छा लगता है
तुम्हारे हाथ में हाथ डालकर
थिरकता खुले आसमान के नीचे
अभी पड़ोस की इमारतें
ऊंचा उठने ही वाली हैं
और उस तरफ
बस रही बस्ती
उफ!
हर तरफ उठ रही हैं लाठियाँ
कमज़ोर जिस्मों को तलाशती
आओ
थोड़ा और करीब आओ
कदम-कदम पर हारते
सच के बारे में
थोड़ा बतिया लें

2
कोलकाता
ऐ मेरे प्यारे शहर
तू जिंदा आबाद रह
तुझको नहीं लगे
किसी दुश्मन की नज़र

न पड़े फिर कभी तुझ पर
किसी अकाल की छाया
दंगे-फसाद से बचा रह
तुझमें फूले-फले
ममता और माया
न लौटे युद्ध
तेरे इरादे
बने रहे
नेक और शुद्ध

करता रह तू
सबकी परवाह
लगे नहीं तुझे
किसी की आह

3
बचपन
एक बचपन
मांगता है
रोबोट राकेट
सुबह सुबह
दूसरा रोटी।

एक बचपन
सिर पर उठा लेता है
पूरे घर को
दूसरा बोझ।

एक बचपन
बनता है मदारी
दूसरा जमूरा।

एक बचपन
पढ़ता है पुस्तकें
दूसरा
कठिन समय को।

बचपन होता है
राष्ट्र का भविष्य ।

7 comments:

बलराम अग्रवाल said...

शैलेन्द्र की कविताएँ अत्यन्त सहज हैं। उनमें 'पूँजी' से डर के दौरान सुख भोग लेने की जिजीविषा भी नजर आती है और जूझते इन्सानों, यहाँ तक कि बचपन की सुरक्षा की चिन्ता भी।

सुभाष नीरव said...

भगीरथ जी, शैलेन्द्र की कविताएं बहुत अच्छी लगीं। खासकर 'सच के बारे में' और 'बचपन'। कौन कहता है कि अच्छी कविताएं नहीं लिखी जा रही, लिखी जा रही हैं और खूब लिखी जा रही हैं परन्तु परन्तु कुछेक मुट्ठीभर कवियों को जिन्हें मुख्यधारा का कवि घोषित करके कुछ लोग यह भ्रम फैलाते रहते हैं कि समकालीन कविता परिदृश्य में उनके बाहर कविता है ही नहीं…

भगीरथ said...

टिप्प्णी करने का धन्यवाद भाई
बलराम अग्रवाल और
सुभाष नीरव

आओ थोड़ा और करीब आओ
कदम-कदम पर हारते
सच के बारे में
थोड़ा बतिया लें
सच को हारते देख्नना सचमुच एक त्रासदी है

रवि कुमार said...

बेहतर कविताएं...

जयकृष्ण राय तुषार said...

behad sundar kavityen padhne ko mili shailendraji badhai

Anonymous said...

shukriya balram ji, subhash ji, bhagirathji,ravi ji our tushar ji.
kavitayen padhane our apani ray dene ke liye. housalaafjaee ke liye shukriya.
shailendra.

RAGHUNATH MISRA said...

Shresta hai.Badhai,sadhuvad,shubhkamnayen sweekaren.
RAGHUNATH MISRA