भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर
चैतन्य त्रिवेदी
अच्छा बताओ भवंरी देवी, जब वे तुम्हारा चीर खींच रहे थे, तब क्या तुमने सरकार को पुकारा था या गोपाल को याद किया था ?
भंवरी देवी, अच्छा यह बताओ , तुम्हारी जानकारी में यह बात तो होगी ही कि सरकार तो द्रोपदी के समय में भी कुछ न कर सकी थी तो अब क्या करेगी । घटना के दौरान तुम गोपाल को आवाज लगा लेती तो हो सकता है कि गोपाल चीर बढ़ा देते । जैसे द्रोपदी का बढ ाया था।
भंवरी देवी , जांच से पता चला कि तुमने घटना के दिन बहुत सस्ती साड ी पहन रखी थी। पता लगाने की बात यह है कि द्रोपदी के समय जो चीर बढ ाया गया था, वा कौन - सा कपड ा था? कितने पने का था ?
(यह बात संसद में विरोधी दलों को जवाब देने के सिलसिले में पूछी गई) हां तो भंवरी देवी , तुमने गोपाल को नहीं पुकारा पता नहीं, तुमने सरकार पर कैसे भरोसा कर लिया । पता नहीं गोपाल ने द्रोपदी के समय इतना कपड ा किसके थान में से चुराया होगा ? यहां तुम्हें अनावृत कर देने से ........ इस इलाके में कपड ों की कितनी दुकाने है ? वे साडि यां रखते हैं या नहीं । घटना के दिन उनके पास साडि यां थी या नहीं ।
अब आखिरी बात यह है कि टी.वी. पर हमने देखा था तुम्हें। तुम्हारा इंटरव्यू भी। देद्गा - भर ने तुम्हें देखा । अखबारों में पढा । रेडियो से जाना तुम्हारा नाम। तुम पब्लिक फिगर हो गई । मीडिया का यही काम है , पब्लिक फिगर बनाना । द्रोपदी भी आज तक पब्लिक फिगर है और बनी रहेगी।
कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पडता ही है । है ना भंवरी देवी!