Wednesday, December 29, 2010

भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर

 
 भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर



चैतन्य त्रिवेदी



अच्छा बताओ भवंरी देवी, जब वे तुम्हारा चीर खींच रहे थे, तब क्या तुमने सरकार को पुकारा था या गोपाल को याद किया था ?

भंवरी देवी, अच्छा यह बताओ , तुम्हारी जानकारी में यह बात तो होगी ही कि सरकार तो द्रोपदी के समय में भी कुछ न कर सकी थी तो अब क्या करेगी । घटना के दौरान तुम गोपाल को आवाज लगा लेती तो हो सकता है कि गोपाल चीर बढ़ा देते । जैसे द्रोपदी का बढ ाया था।

भंवरी देवी , जांच से पता चला कि तुमने घटना के दिन बहुत सस्ती साड ी पहन रखी थी। पता लगाने की बात यह है कि द्रोपदी के समय जो चीर बढ ाया गया था, वा कौन - सा कपड ा था? कितने पने का था ?

(यह बात संसद में विरोधी दलों को जवाब देने के सिलसिले में पूछी गई) हां तो भंवरी देवी , तुमने गोपाल को नहीं पुकारा पता नहीं, तुमने सरकार पर कैसे भरोसा कर लिया । पता नहीं गोपाल ने द्रोपदी के समय इतना कपड ा किसके थान में से चुराया होगा ? यहां तुम्हें अनावृत कर देने से ........ इस इलाके में कपड ों की कितनी दुकाने है ? वे साडि यां रखते हैं या नहीं । घटना के दिन उनके पास साडि यां थी या नहीं ।

अब आखिरी बात यह है कि टी.वी. पर हमने देखा था तुम्हें। तुम्हारा इंटरव्यू भी। देद्गा - भर ने तुम्हें देखा । अखबारों में पढा । रेडियो से जाना तुम्हारा नाम। तुम पब्लिक फिगर हो गई । मीडिया का यही काम है , पब्लिक फिगर बनाना । द्रोपदी भी आज तक पब्लिक फिगर है और बनी रहेगी।

कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पडता ही है । है ना भंवरी देवी!

6 comments:

रवि कुमार said...

मिथक का बेहतर इस्तेमाल...

नया सवेरा said...

... kyaa baat hai !!!

बलराम अग्रवाल said...

चैतन्य ने अपनी अधिकतर लघुकथाओं में गद्य-काव्य शैली का प्रयोग किया है। इस शैली ने नि:संदेह सभी को अपनी ओर आकर्षित किया। लेकिन लघुकथा निरा- काव्य नहीं है--यह इस बात से सिद्ध है कि चैतन्य की यह शैली चमत्कृत करने से आगे कहीं अपनाई न जा सकी। 'भंवरी देवी…' का तनाव भी वस्तुत: एक गद्य-कविता जैसा ही है, लघुकथा-जैसा नहीं। इस तनाव की अनगिनत कविताएँ हिन्दी में चर्चित-प्रचलित रही हैं।

सुभाष नीरव said...
This comment has been removed by the author.
सुभाष नीरव said...

पूर्व टिप्पणी मैंने इसलिए हटा दी क्योंकि उसमें शब्दों की अशुद्धियाँ बहुत चली गई थीं। उस टिप्पणी को ठीक करके पुन: दे रहा हूँ-

चैतन्य त्रिवेदी लघुकथा के परम्परागत अथवा प्रचलित ढाँचे की पर ध्यान नहीं देते, वे अपने ढंग से लघुकथा को एक नई शैली देने के प्रयास में दीखते हैं। परन्तु, "भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर" जैसा कि भाई बलराम अग्रवाल ने कहा, लघुकथा नहीं, बल्कि एक गद्य कविता ही अधिक प्रतीत होती है और हिन्दी में ऐसी संवेदनाओं पर ढेरों कविताएं हमें देखने को मिल जाएंगी।

प्रदीप कांत said...

चैतन्य हमारे समय में लघुकथा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। और इस लघुकथा की चैतन्य की शैली पर ध्यान न दिया जाए तो मिथक का बेहतरीन प्रयोग तो है ही।