रघुनाथ मिश्र को गीत
चान्दनी हैदराबाद द्वारा
निराला सम्मान
बधाईया
वक्त से पैगाम लो
सच असच पहिचान लो
थक चुका मस्तिष्क यदि
सिर्फ दिल से काम लो
बच सके यदि जन हजारो
अपने सर इल्जाम लो
मत मरो औलाद बिन
गोद में अवाम लो
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शब्द मूल्यहीन हो गया
शिल्प कथ्यहीन हो गया
कल तलक था जो नया -नया
आज वो प्राचीन हो गया
हद से बढ़ गई गिरावटे
आसमां जमीन हो
क्या तरक्कियों का दौर है
आदमी मशीन् हो गया
आम आदमी डरा डरा
डर भी यह युगीन हो गया
हर किसी की जान पै पड ी,
कुछ को जग हसीन हो गया।
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बच सके यदि जन हजारो
अपने सर इल्जाम लो
मत मरो औलाद बिन
गोद में अवाम लो
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BEHATAREEN
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