सतीश दुबे
खाना लगा दूं
हूं !
मूड तो अच्छा है ?
हां !
स्मिता आजकल जिद नहीं करती ?
हूं !
अब बाजार भाव फिर बढने लगे हैं ।
हां !
पडोस के वर्माजी का बच्चा बहुत बीमार है ।
हूं !
थोडी मिठाई भी लीजिए ना !
ऊं-हूं !
नीता की शादी में चलेंगे ना ?
हां-हां !
आपकी क्लास-फैलो कुमुद आई थी,बडी देर तक इंतजार करती रही---!
अच्छा? कब? कहां है आजकल?कैसीहै? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?बताओ,और क्या-क्या कहा उसने?
मैंने यह सब उससे पूछा था किन्तु वह हां -हूं करती रही ।
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प्रतिनिधि लघुकथाएं । 1976 । साहित्य संगम ,इंदौर
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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आपको रंगों के पावनपर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बेहतर... :-)
ठीक ही कर रही है !
हूँ....
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अब यही तो संसकृति बची है।
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