सतीश राठी
“सुनो ,माँ का पत्र आया है .बच्चों सहित घर
बुलाया है ---कुछ दिनों के लिए घर हो आते है .बच्चों की
छुट्टियां भी है .”पति ने कहा .
“मैं नहीं जाऊँगी उस नरक में सड़ने के लिए .फिर
तुम्हारा गाँव तो गन्दा है ही ,तुम्हारे गाँव के और घर
के लोग कितने गंदे है !”पत्नी ने तीखे और चिडचिडे स्वर में प्रत्युतर
दिया .
“मगर तुम पूरी बात तो सुनो .”पति कुछ हिसाब लगाते हुए बोले ,”माँ ने लिखा है कि बहू आ
जायगी तो बहू को गले की चेन बनवाने की इच्छा है.इस बार फसल
भी अच्छी है .”
“अब आप कह रहे हैं और मान का इतना आग्रह है तो
चलिए ,मिल आते हैं और हाँ –फसल
अच्छी है तो मांजी से कहकर दो बोर गेहूं भी लेते आएँगे .” पत्नी ने उल्लास के स्वर में कहा .
4 comments:
जय मां हाटेशवरी....
आप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 23/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
बहुत खूब ,....
सोने की चैन और दो बोरे गेहूँ
I really appreciate your professional approach. These are pieces of very useful information that will be of great use for me in future.
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