शामिया
ऐतुन की कहानी ‘गर्मी की छुट्टी’
. शामिया ऐतुन की कहानी पढ़िए जिसका अनुवाद
विजय शर्मा जी ने किया है-मॉडरेटर
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शामिया ऐतुन
वह अपनी पुरानी गली में पड़ौसी बच्चों के साथ एक महत्वपूर्ण सदस्य
के रूप में खेलती थी। उसे इतना गर्व था कि वह यह बात अपने स्कूल के साथियों को
बराबर बताती। झुंड़ में वह केवल कंचे, सात पत्थर और फ़ुटवॉल ही नहीं खेलती
बल्कि झुंड के सदस्यों से मासूम नजदीकियाँ थीं उसकी। वह उनके साथ अपना प्रिय
युद्ध-खेल भी खेलती। जिसके लिए दौड़ना, मजबूत माँसपेशियाँ साथ ही कठोर और
ऊधमी व्यवहार भी जरूरी था।
एक दिन वह स्कूल से खूब खुश लौटी कारण गर्मी की छुट्टियाँ शुरु
होने वाली थीं। साल के अंत में उसका एक ही काम था: स्कूल की यूनिफ़ॉर्म उतारती और
फ़ूलों वाला शर्ट और सफ़ेद शॉर्ट्स पहनती। उसका दुबला-पतला शरीर सुंदर लगता, सुगठित और जीवन से
भरा हुआ। ठीक वैसा ही जैसा कि एक नौ साल की लड़की का होता है। वो और उसके भाई बाहर
जा कर खेलने की तैयारी करने लगे। छोटा भाई अपने पिछले दिन के जमा किए हुए पत्थर ले
आया, बड़ा छड़ी और गुलेल। उन्हें समय का ध्यान न था। जब तक उनकी माँ ने उनकी
छोटी बहन को उन्हें बुलाने नहीं भेजा वे शाम तक गली और सड़क पर खेलते रहे।
वे थके और धूल से भरे घर लौटे। खुश, जीवंत और चहकते हुए घर में घुसे। उनके
बाल बिखरे हुए थे, चेहरे, हाथ-पैर और कपड़े गंदे थे। अनहोनी बात, उनके अब्बू सिर
नीचे किए हुए गहरी सोच में डूबे हुए हॉल में चुप बैठे हुए थे। उन्होंने हाथ-पैर
धोए और खाना खाया। ज्योंहि उसके भाई बेडरूम में गए उसकी अम्मी ने उसे हॉल में
बुलाया। तब पिता उठकर रसोई में चले गए।
“आज तुमारा खेल कैसा
था?” अम्मी ने प्यार से पूछा।
“बड़ा मजा आया, हम जीते। फ़ाथी गिरा
और उसके माथे से खून निकला, समीर ने मुझे जमीन पर गिरा दिया लेकिन मुझे कुछ नहीं हुआ। कल हमारा
सॉकर का फ़ाइनल मैच है। हम खेल खतम करना चाहते हैं,” उसने बहुत उत्साह से बताया।
“अच्छा, अच्छा,” अम्मी ने उसे चुप
कराने के लिए कहा। फ़िर वह गंभीर स्वर में बोली, “आज किराने वाला अबु महमद और सब्जी
वाला फ़ाहमी तुम्हारे अब्बा से कह रहा था।”
“क्या चाहिए उन्हें?”
“वे तेरे अब्बा से
कह रहे थे कि तू बड़ी हो गई है और…”
‘माँ एक पल चुप रही ताकि बेटी पूछे, “और क्या?”
“कि अब तेरी छातियाँ
काफ़ी बड़ी हो गई हैं। तुझे बच्चों के साथ शॉर्ट्स पहन कर गली में दौड़ते देख कर वे
बहुत परेशान थे।”
“क्या?”
“दलाल, अब से, तुम बाहर गली में
बिलकुल नहीं जाओगी। यही तेरे अब्बा ने कहा है। अबसे शॉर्ट्स भी नहीं पहनेगी। ये
कपड़े तुम अपने भाइयों को दे सकती हो।”
बिजली गिरी, दलाल ने विरोध करना चाहा। “लेकिन अम्मी, मुझे खेलना अच्छा
लगता है, मुझे शॉर्ट्स पहनना अच्छा लगता है। क्या मतलब है…”
“बात खतम हुई मैं और
कुछ नहीं सुनना चाहती।” माँ ने आखिरी फ़ैसला सुनाया और कमरे से चली गई।
दलाल एक पल खड़ी रही मानो जमीन में गड़ गई हो। उसने खुद को बाथरूम
में खींचा और दरवाजा बंद कर लिया। वह जमीन पर बैठ गई लगता था कुछ सोच नहीं सकती
है। अचानक वह उठी, अपनी शर्ट उठाई,
और खुद को शीशे में निहारा। अपनी छाती
पर हाथ फ़ेरा, उसकी अंगुलियों ने करीब-करीब उसके शरीर से निकलती हुई दो छोटी
अंकुरित कलियों को महसूसा। उसे याद आया पिछले सप्ताह अबु महमद ने उन्हें छूने की
कोशिश की थी। अपनी भावनाओं को संभाल न पा कर उसने खुद को शर्ट से ढ़ंक लिया और गर्म
आँसुओं में फ़ूट पड़ी।
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