मंजर
चेतना भाटी
‘सुनिए, मुझे कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया
गया है.’ पतिदेव का मूड देखकर पत्नी ने धीरे से कहा. ‘फालतू बातें मत करो. मेरे दोस्त आनेवाले हैं शाम को खाने पर.’ पतिदेव टाई
की गाँठ लगाते हुए बीच में बोले. शाम को पकौड़ियों के लिए बेसन घोलते वक्त पत्नी की आँखों में कवि सम्मलेन का
मंजर घूम रहा था....अब श्री ये कविता पाठ कर रहे होंगे, अब सुश्री वे उठी
होंगी...कि तभी आदेश मिला ‘ड्रिंक्स जल्दी सर्व की जाय ....और पत्नी के हाथ तेजी
से चलने लगे. बाएँ हाथ से माथे का पसीना इस तरह पोंछा मानो सारे मंजर मिटा देना
चाहती हो मस्तिष्क पटल से.
पापी पेट
चेतना भाटी
मैली कुचैली ,
फटी कमीज उठा कर पापी पेट के नाम पर
भीख माँगने का उपक्रम कर ही रह था कि शरमाकर ठिठक गया वह , जब सामने चलते टी
वी पर नजर पड़ी । नाम मात्र को कपड़े पहने बाला उन्हें भी उठा कर अपना पेट दिखाते
हुए नाच रही थी और पूरे स्क्रीन पर पेट ही पेट छाया हुआ था ।
" टी वी के कारण पेट पल रहे हैं या पेट
के कारण टी वी चल रहे है ? " - पेट पर हाथ धरे वह सोच रहा था ।
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