अरविंद सोरल की गजल
सिक्के हवा में देखिए यूं न उछालिए
जलते हुए सवाल हैं ऐसे न टालिए ।
ढाल की व्यवस्थाएं चरमरा गई ,
खंजर उठाइये या गर्दन निकालिए ।
इस चमन में आपने बोये थे कुछ बबूल ,
हो सके तो अब जरा दामन संभालिये ।
अब हमारी चाल भी तो देखिये हुजूर !
आपने तो दाँव अपने आजमा लिये ।
हमारे हाथ बढ़ चुके हैं नोचने नकाब ,
क्या हुआ जो आपने चेहरे छिपा लिए ।
बेशक हमारे खून को चूसा गया मगर ,
बाकि है अगर एक भी कतरा उबालिए ।
सिक्के हवा में देखिए यूं न उछालिए
जलते हुए सवाल हैं ऐसे न टालिए ।
ढाल की व्यवस्थाएं चरमरा गई ,
खंजर उठाइये या गर्दन निकालिए ।
इस चमन में आपने बोये थे कुछ बबूल ,
हो सके तो अब जरा दामन संभालिये ।
अब हमारी चाल भी तो देखिये हुजूर !
आपने तो दाँव अपने आजमा लिये ।
हमारे हाथ बढ़ चुके हैं नोचने नकाब ,
क्या हुआ जो आपने चेहरे छिपा लिए ।
बेशक हमारे खून को चूसा गया मगर ,
बाकि है अगर एक भी कतरा उबालिए ।