Wednesday, October 22, 2008

अरविंद सोरल की गजल



अरविंद सोरल की गजल

सिक्के हवा में देखिए यूं न उछालिए
जलते हुए सवाल हैं ऐसे न टालिए ।

ढाल की व्यवस्थाएं चरमरा गई ,
खंजर उठाइये या गर्दन निकालिए ।

इस चमन में आपने बोये थे कुछ बबूल ,
हो सके तो अब जरा दामन संभालिये ।

अब हमारी चाल भी तो देखिये हुजूर !
आपने तो दाँव अपने आजमा लिये ।

हमारे हाथ बढ़ चुके हैं नोचने नकाब ,
क्या हुआ जो आपने चेहरे छिपा लिए ।

बेशक हमारे खून को चूसा गया मगर ,
बाकि है अगर एक भी कतरा उबालिए ।



शकूर अनवर की गजल



शकूर अनवर की गजल


हवाओं से बहुत लड़ना पड़ेगा ,
समंदर का सफर महंगा पड़ेगा

सजा लो अपनी दीवारें सजा लो,
गरीबों का लहू सस्ता पड़ेगा

चलो सर्पीली राहों से निकल लें
ये सीधा रास्ता लम्बा पड़ेगा ।

अभी उस बेवफा से कुछ न कहना,
वो सबके सामने झूठा पड़ेगा ।

मेरे उड़ने की कोई हद नहीं है
मुझे ये आसमां छोटा पड़ेगा

समन्दर से अगर मिलना है 'अनवर'
नदी के साथ ही बहना पड़ेगा ।

Saturday, October 11, 2008

अखिलेश 'अंजुम ' की गजल



घर बिना छ्त बनाये जायेंगे ,
लोग जिनमें बसाये जायेंगे ।


आपका राज हो या उनका हो,
हम तो सूली चढ़ाये जायेंगे ।


साल - दर -साल बाढ़ आयेगी ,
आप दौरों पे आये जायेंगे ।


बूढ़े बरगद पे देखना जाकर ,
अब भी दो नाम पाये जायेंगे ।


हम तो होते रहेंगे यूहीं हवन
लोग उत्सव मनाये जायेंगे ।

चाँद शेरी की गजल


नादान न बन कोई तेरा यार नहीं है
जुल्मत में तो साया भी वफादार नहीं है

कार पाए जो मजबूर जवानी की हिफाजत
कानून के हाथों में वो तलवार नहीं है

हर सिम्त नजर आते हैं रावण के फिदाई
अफसोस कहीं राम का अवतार नहीं है

वो सिख है न ईसाई न हिन्दू न मुस्लमां
जिस शख्स में इंसान का किरदार नहीं है

दौलत से नहीं दिल से इसे जीत ले 'शेरी'
ये प्यार है नादां कोई ब्यौपार नहीं है