शकूर अनवर की गजल
हवाओं से बहुत लड़ना पड़ेगा ,
समंदर का सफर महंगा पड़ेगा
सजा लो अपनी दीवारें सजा लो,
गरीबों का लहू सस्ता पड़ेगा
चलो सर्पीली राहों से निकल लें
ये सीधा रास्ता लम्बा पड़ेगा ।
अभी उस बेवफा से कुछ न कहना,
वो सबके सामने झूठा पड़ेगा ।
मेरे उड़ने की कोई हद नहीं है
मुझे ये आसमां छोटा पड़ेगा
समन्दर से अगर मिलना है 'अनवर'
नदी के साथ ही बहना पड़ेगा ।
हवाओं से बहुत लड़ना पड़ेगा ,
समंदर का सफर महंगा पड़ेगा
सजा लो अपनी दीवारें सजा लो,
गरीबों का लहू सस्ता पड़ेगा
चलो सर्पीली राहों से निकल लें
ये सीधा रास्ता लम्बा पड़ेगा ।
अभी उस बेवफा से कुछ न कहना,
वो सबके सामने झूठा पड़ेगा ।
मेरे उड़ने की कोई हद नहीं है
मुझे ये आसमां छोटा पड़ेगा
समन्दर से अगर मिलना है 'अनवर'
नदी के साथ ही बहना पड़ेगा ।
5 comments:
स्वतंत्र रूप में ज्यादातर अशआर बेहतरीन हैं...
अच्छी गजल है
वीनस केसरी
अच्छी गजल।
खूबसूरत ग़ज़ल...सरे शेर पुर असर हैं...पढ़वाने का शुक्रिया.
नीरज
हवाओं से बहुत लड़ना पड़ेगा,
समंदर का सफर महंगा पड़ेगा
बेहतरीन गजल
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