Saturday, October 11, 2008

चाँद शेरी की गजल


नादान न बन कोई तेरा यार नहीं है
जुल्मत में तो साया भी वफादार नहीं है

कार पाए जो मजबूर जवानी की हिफाजत
कानून के हाथों में वो तलवार नहीं है

हर सिम्त नजर आते हैं रावण के फिदाई
अफसोस कहीं राम का अवतार नहीं है

वो सिख है न ईसाई न हिन्दू न मुस्लमां
जिस शख्स में इंसान का किरदार नहीं है

दौलत से नहीं दिल से इसे जीत ले 'शेरी'
ये प्यार है नादां कोई ब्यौपार नहीं है

1 comment:

प्रदीप कांत said...

कार पाए जो मजबूर जवानी की हिफाजत
कानून के हाथों में वो तलवार नहीं है

कार को कर दीजिये.