Saturday, November 29, 2008

लोकतंत्र के कलाकार


भारत में लोकतंत्र के सूत्रधार गाँधीजी थे । इसलिए सरकार के सभी कार्यालयों में महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है गांधीजी का विश्वास था कि यहां के सांसद, विधायक, मंत्री , मुख्यमंत्री , राष्ट्रपति आदि ढाई आने गज की खादी पहनेंगे । यही नहीं वे यह भी उम्मीद करते थे कि वे दो - चार घंटे सूत और उसी का धोती कुर्ता बनवा कर पहनेंगे । वे देश के आदर्श नागरिक होंगे जो दरिद्र नारायण और देश की सेवा में जुटे रहेंगे जिनके जीवन का ध्येय ही गरीबों का कल्याण होगा वे सादा जीवन , सादा भोजन और सादा निवास अपनायेंगे ।
लेकिन यह जरुरी तो नहीं कि जब पात्र मंच पर आयें तो वे सूत्रधार के अनुसार ही चले , पात्र कठपुतली तो है नहीं कि सूत्रधार की अंगुलियों पर नाचें । फिर ये तो जीवित पात्र थे , हाड - माँस के पुतले , इनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं थी , इनके अपने परिवार थे , नाते - रिश्तेदार थे , पुत्र - पुत्रियाँ थीं , जिनकी अपनी आकांक्षाएं थी । ऊँचे लोग ऊँचे लक्ष्य । लक्ष्य को आँख से ओझल मत होने दो । गांधीजी की तरह , लक्ष्य साधने में साधन और साध्य का विवाद मत लाओ , साधन को भूलो , साध्य को साधो , जायज - नाजायज का चक्कर छोड़ो मंच तुम्हारा है , जो चाहो सो दिखाओ , जनता को तो अन्तत: तालियाँ बजाना ही है ।
लोकतंत्र का कलाकार जानता है , वोट हासिल करना कितना मुश्किल है , लोगों को तोड़कर, तो कहीं जोड़कर , तो कहीं जोड़ - तोड़ कर वोट प्राप्त करने होते हैं , एक - एक सीट के लिए 50-50 लाख का दाँव लगाना पड़ता है और वेतन क्या मिलता है ? लोकतंत्र के कलाकार का वेतन - भत्ता भरपूर होना चाहिए ताकि वे लोकतंत्र में अपनी भूमिका ठीक तरह से निभा सके अबकि बार संसद इस मामले मे एक हो गई और उन्होनें अपने लिए इतने वेतन - भत्ते और पेंशन तय किये कि जीते जी कम नहीं पड़ेगी जब यह बिल संसद मेरे पास हुआ तो विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा । राष्ट्रीय एकता का अप्रतिम उदाहरण देखकर दीवार पर टंगे महात्माजी ने अपना चश्मा उतार , आँखे पौंछी और फिर चश्मा लगाकर यथावत फ्रेम मे फिट हो गये ।