Monday, October 26, 2009

युगल की कथाएं

जात
युगल

छोटी जात वालों के कुएं में कुछ गिरा । जाग हो गयी । कई लोग कुएं पर जमा हो गए । कुएं में अंधेरा था । कुछ पता नहीं चल रहा था कि क्या गिरा है । एक आंशका थी कि शायद कोई आदमी गिरा हो । मजबूत रस्से में झग्गर बांध कर डाला गया । चार -पांच आदमियों ने खींच कर उस भारी बोरे को उपर किया । बोरे का मुहॅं खुला, तो सबों के मुहं खुले रह गये -‘‘अरे ! यह तो किसी बड़े घर का लगता है।’’
लोग उपचार में जुट गये । आग सुलगायी गयी । गरम तेल की मालिश होने लगी। उपचार के बाद वह आदमी होश में आया । एक आदमी ने पूछा-‘‘बाबू साहब, आपका घर?’’
‘‘रतनपुरा।’’
‘‘कौन जात हुए?’’
वह आदमी उस हाल में भी जात पूछे जाने पर तमक उठा-‘‘साले जात पूछते हो ? ये कड़कड़ाती मूंछे, ये चमकते रोएं और रंग नहीं देखते ? अंधे ! ये किस जात के होते हैं?’’
तब उन लोगों ने उस आदमी को उसी बोरे में कसा और फिर से उसी कुएं में डाल दिया । लोग उसकी जात जान गये थे ।



रास्ता

उसके सोते कई दिन गुजर गये थे । घर के लोग उठाकर थक गये थे और अंत में झुंझलाकर उठाना ही छोड़ दिया था । लेकिन जब वह उठा , तो उसे लगा कि दूर -दूर तक धुंध छाया हुआ है । हवा भारी और कड़वी है । उसने गहरी सांस ली , तो कलेजे में जलन होने लगी । बाहर आया, तो देखा, वादियों में कॅंटीली झाड़ियाँ उगी हैं, एक दूसरे में ऐसी गुंथी हैं कि राह खोजना मुहाल । उपर से गहराता मोटे पर्दे - सा धुंध ।
उसने एक निर्णय लिया और पांव आगे बढ़ाये । उसे ठोकर लगी और पांव में कांटे चुभ गये । उसने कांटे निकालने का प्रयास किया और देखा कि उसके पांव खून से भीग चुके हैं । खून से सने हाथ को दामन से पोंछना चाहा, तो पाया कि उसके दामन तार - तार हो चुके है। उसने आवाज लगायी - ‘‘लोगो, बाहर आओ , धुएं और धुंध के पार जाने के लिए , अंधेरे से लड़ने के लिए ।’’
उसे आश्चर्य हुआ कि लोगों ने आवाज सुनकर अपने - अपने दरवाजे बंद कर लिये । उसने दरवाजों पर दस्तक दी और पुकारा - ‘‘दरवाजा खोलो , तुम्हारे चारो ओर जहरीला रिसाव हो रहा है । तुम नहीं निकलोगे , तो तुम्हारे बच्चे घुट- घुट कर मंरेगे । अपने बच्चों के लिए , अगली पीढ़ी के लिए बाहर निकलो ।
लेकिन कोई नहीं निकला , तो उसने मुंडेरों पर चढ़कर देखा कि हर घर में ऊँट उकड़ू बैठे है और जहरीले रिसाव से अपने को बचाने के लिए बालुओं के ढेर में अपना थुथना गाड़े हैं । उस धुँध में वह निर्णय नहीं कर सका कि वे ऊँट ही थे या आदमी थे ।
फिर वह उस अंधेरे के पार जाने के लिए भागने लगा । वह रोना चाहता था , लेकिन उसकी रूलाई प्रार्थना बन गयी - भगवान ! प्रकाश दो ! अंधेरे से बचाओ ! हमें कांटो के पार ले चलो !
तब उसके सामने एक आकृति प्रकट हुई । उसके वस्त्र धवल थे । आकृति चिकनी थी और होठों पर मुस्कान थी । देवदूत की तरह वह बोला - मैं तुम्हें इस अंधेरे के पार ले चलूंगा । मेरे पीछे आओ !’’
और वह पत्थरों से टकराता, काटो से उलझता , रक्ताविल चरणों से उसके पीछे चलता रहा ....... चलता रहा ।
कि उसने एक चमकती हुई अट्टालिका देखी , जो बाहर - भीतर से जगमगा रही थी । सारा प्रकाश वहीं कैद था और उसके ऊपर की चिमनी से जहरीला रिसाव हो रहा था । जिस आदमी के पीछे वह चल रहा था , वह उस अट्टालिका के अंदर चला गया और दरवाजा स्वतः बंद हो गया ।
यद्यपि चलते - चलते उस आदमी के पांव थक चुके थे , फिर भी उसने उस बंद दरवाजे पर पांव से प्रहार करना शुरू किया । उसने किसी को पुकारा नहीं, किसी से प्रार्थना नहीं की । उस अट्टालिका में कैद प्रकाश की मुक्ति का उसके सामने वहीं रास्ता था।



3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

दोनों कथाएँ बहुत सुंदर ही नहीं अपितु उच्च कोटि की हैं। लेकिन आप को इन्हे दो अलग अलग पोस्टों में पेश करना चाहिए था। दोनों कथाओं पर प्रतिक्रिया मिलती। अब दोनों पर नहीं मिलेगी।
इन युगल कथाओँ की स्वतंत्र रूप से अधिक महत्ता है।

प्रदीप कांत said...

दिनेश जी की बात से मै भी सहमत हूँ.

उमेश महादोषी said...

दोनों लघुकथाएं अच्छी हैं, पर मुझे दूसरी ज्यादा ने ज्यादा प्रभावित किया।