पानी
पहाड़ों की विशालकाय चट्टानों से
रिसता पानी
‘ओस’ और फर्न के
कोमल पौधों के बीच से
रेंगता पानी
पहाड़ी झरनों से
गिरता पानी
चट्टानों से टकराता
बर्फ सा ठंडा जल
पानी रिसता है , रेंगता है
गिरता है , पड़ता है
टकराता है
किंतु , टूटता नहीं
अपना वजूद
बरकरार रखता है
पानी
थोर
पहाड़ी चट~टानो के बीच
उगी लम्बी देहवाली
थोर
अभावों के बीच पली
कुरूप, कांटो भरी
किंतु ,हरित देह की
संवेदनशीलता
कितनी गहन है
खरोंच भर से ही
दूध की तरह उफन कर
बह निकलती है।
नागफनी
उंचे कंकरीले टीले पर
किसने जड़ दिये हैं
मोटे , मोटे
नुकीले कांटो से भरे
हाथ
तमाम भदेसपन के बावजूद
कंकरीले टीले की रेतीली माटी से
जल के बूदों से प्राण ग्रहण करता
जीवन
जीने के संघर्ष की प्रक्रिया में
नागफनी के सूर्ख फूल सा
खिल उठता है।
पकड़
चिड़िया फुद की और
पेड़ पर बैठ गई
आंधी आई
पेड़ हिलता रहा
चिड़िया की पकड़
मजबूत होती रही,
8 comments:
शानदार पेशकश
सुंदर कविताएँ!
भाई भगीरथ जी, बहुत सुन्दर कविताएं लगीं आपकी। बधाई !
अपना वज़ूद बरकरार रखना...
और पकड़ मजबूत करते रहना...
खूब बात कह रही हैं..ये बेहतर कविताएं...
बहुत सुन्दर कविताएँ। सटीक , सुन्दर और प्रभावी बिम्बों का उपयोग किया है। अब तक मैं तो आपको एक बेहतरीन लघुकथाकार के रूप में ही जानता था । आपकी इतनी सुन्दर कविताएँ पड़कर सुखद आश्चर्य से भर गया ।
चिड़िया फुद की और
पेड़ पर बैठ गई
आंधी आई
पेड़ हिलता रहा
चिड़िया की पकड़
मजबूत होती रही,
आपकी लघुकथाओं की तरह ही सारगर्भित कविताएँ।
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई!!!
bahut sunder kavitayen.
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