Monday, April 29, 2013

जिंदगी


जिंदगी

महावीर प्रसाद जैन
शादी के बाद पहली रात उन्होंने अपने भावी जीवन  को व्यवस्थित  करने की योजनाएं बनाते हुए बितायी ण्दोनों ने अपनी सीमित आय को देखते हुए यह निर्णय भी लिया  कि अभी कम.से.कम पांच साल अपने बीच बच्चा नहीं आने देंगे
  दोनों खुश थे बावजूद ढेर.सी दिक्कतों के। पति की आय में से कुछ भी बचना मुश्किल था ।गुजर बडी खींचतान से होती थी।पर दोनों समझदार थे। हालात से जूझना जानते थे ।
  एक दिन पत्नी ने बडे उदास लहजे में कहा.सुनो! तुम किसी डाक्टर या नर्स को जानते हो जो एबोर्शन—
.दीपा ! यह.
.हां...!
दोनों हैरान थे! यह क्योंकर और कैसे हो गया!बहुत एहतियात के बावजूद भी ।
.दीपा! यह क्या हो गया हम अपना भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं और फिर—
.इसीलिए तो कह रही हूं कि ...
  रात को खाना वगैरह खाकर वे सोने लगे तो पत्नी ने सुबह की बात आगे बढाई।पति चुपचाप सब सुनता रहा।उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वह सारा दिन इस नयी स्थिति से निपटने का ढंग सोचता रहा था।पत्नी भी टूटी.टूटी.सी लग रही थी।
पत्नी बोली.जब इस तरह इससे मुक्ति मिल सकती है तो फिर हम उदास क्यों है ?
.तुम उदास हो ?
.नहीं आने वाले सुख से डर रही हूं !
.सुखों से डरते नहीं दीपा!
.और किया भी क्या जाये ?
.वही जो करना चाहिये अनायास वह उठ बैठा और पत्नी को स्वयं मे समेटता हुआ बोला.आने वाले की प्रतीक्षा में हम उसके स्वागत की तैयारियां करेंगे वह हमे नई जिंदगी देगा—
.हमारे हर सुख.दुख की लडाई में एक  और नाम शामिल हो जायगा ! कहते हुए पत्नी ने भी पति  को   बाहों में समेट लिया और उसे लगा कि वह पहले से अधिक सुरक्षित हो गई है !
(छोटी-बडी बातें  १९७८)

4 comments:

बलराम अग्रवाल said...

अपने समय की चिंताओं और मानसिक दबावों को ईमानदारी से प्रस्तुत करती सशक्त लघुकथा। इसमें रेखांकित करने वाली बात यह है कि तत्कालीन आर्थिक संकट से उपजे मानसिक दबावों को नारेबाजी के तौर पर चीखते हुए बताने की बजाय उन मानवीय मूल्यों और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को बचाये-बनाये रखने का पूरा ध्यान रखती है जिन्हें नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता और जिन्हें नज़रअन्दाज़ करने के कारण ही बहुत-से समकालीन लघुकथाकार निहायत कमज़ोर नज़र आते हैं। इसे पढ़ने के तुरन्त बाद मैंने महावीर भाई से बात की और एक अच्छी रचना के लिए उन्हें बधाई दी। आप भी उनसे बात करें। मो॰ नं॰ है:09871480022

सुभाष नीरव said...

नि:संदेह एक खूबसूरत लघुकथा। बलराम अग्रवाल की बात से मैं सहमत हूँ।

प्रदीप कांत said...

मनोवैज्ञानिक ढंग के ट्रीटमेंट से आम आदमी की ईमानदार और सशक्त कथा है

http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

sakaratmak aur achchi laghu katha.