ये पत्र ,ये लोग
शशांक आदर्श
राधेश्याम के परलोक सिधारने के दो घंटे बाद उनके प्रिय भतीजे ने शोक विह्वल होकर दो पत्र लिखे ,पहला पत्र स्नेही जनों के नाम था -
"बंधु ,अत्यन्त दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि चाचाजी का देहावसान हो गया है। हाय !अब मुझ अनाथ को कौन सहारा देगा। "
तथा दूसरा पत्र अपनी प्रियतमा के नाम - "प्रिये ,चलो बुड्ढ़ा खिसका ,भगवान को लाख लाख शुक्रिया। जायदाद मेरे नाम हो गई है ,अब हम
शीघ्र ही शादी करने का विचार ले सकते है। "
शशांक आदर्श
राधेश्याम के परलोक सिधारने के दो घंटे बाद उनके प्रिय भतीजे ने शोक विह्वल होकर दो पत्र लिखे ,पहला पत्र स्नेही जनों के नाम था -
"बंधु ,अत्यन्त दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि चाचाजी का देहावसान हो गया है। हाय !अब मुझ अनाथ को कौन सहारा देगा। "
तथा दूसरा पत्र अपनी प्रियतमा के नाम - "प्रिये ,चलो बुड्ढ़ा खिसका ,भगवान को लाख लाख शुक्रिया। जायदाद मेरे नाम हो गई है ,अब हम
शीघ्र ही शादी करने का विचार ले सकते है। "
1 comment:
"प्रिये ,चलो बुड्ढ़ा खिसका"
इंतज़ार ही था ना उसको
लम्पट मानसिकता को उकेरती लघुकथा
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