Monday, September 7, 2015

ये पत्र ,ये लोग

ये पत्र ,ये लोग 

शशांक  आदर्श 


राधेश्याम के परलोक सिधारने के दो घंटे बाद उनके प्रिय भतीजे ने शोक विह्वल होकर दो पत्र लिखे ,पहला पत्र स्नेही जनों के नाम था -
"बंधु ,अत्यन्त दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि चाचाजी का देहावसान  हो गया है। हाय !अब मुझ अनाथ को कौन सहारा देगा। "
 तथा दूसरा पत्र अपनी प्रियतमा के नाम - "प्रिये ,चलो बुड्ढ़ा खिसका ,भगवान को लाख लाख शुक्रिया। जायदाद मेरे नाम हो गई है ,अब हम
शीघ्र ही शादी करने का विचार ले सकते है। "

1 comment:

प्रदीप कांत said...

"प्रिये ,चलो बुड्ढ़ा खिसका"

इंतज़ार ही था ना उसको

लम्पट मानसिकता को उकेरती लघुकथा