Wednesday, May 20, 2020

छोटी कथाओं की बड़ी बात 9



संवेदन पीठिका
-कृष्णलता यादव

अपनी दादी के सामने बैठी अनि एक पल दादी के चेहरे को देखती, दूसरे पल उसकी नजरें दादी के पलस्तर बंधे हाथ पर जा टिकती. तत्क्षण उनका बायाँ हाथ अपने नन्हें हाथों में लेकर बोली, ‘दादी, अगर हाथ टूटना ही था तो यह वाला टूट लेता.’                                           
‘फिर क्या होता, बेटू?” दादी ने लाड से भरकर पूछा.  ‘फिर आप उस वाले हाथ से लिखती रहती और आपको चुप-चुप नहीं बताना पड़ता. अब तक बहुत सारी कविता और कहानियां लिख चुकी होती न ?”                                                                                 अनि को अपने बाहुपाश में समेटते हुए दादी ने उसका माथा चूमा और अस्फुट शब्दों में कहा, ‘मेरी बेकली को समझनेवाली मेरी बच्ची, तुम संवेदना का गहना पहनकर धरती पर आई हो. दुआं करती हूँ, यह गहना यूँ ही दिपदिपाता रहे.’ कहते-कहते उनकी आँखों से दो मोती ढलक पड़े.




पहचान
-कृष्णलता यादव       
सार्वजनिक कार्यालय में काउंटर पर कर्मचारियों की लम्बी कतार. किसी के सामने पट्टिका नहीं. न जाने इनमें रत्ना कौन है. पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया, पकौड़े-सी नाक, बिल्ली की सी आँखें, हाथी के से कान और ऊंट के से होंठों वाली महिला रत्ना है.                                    मैं कुछ आगे बढ़ी. दिमाग में बिल्ली, ऊंट, हाथी के चित्र बनने –बिगड़ने लगे तो झुंझलाहट हुई.एक अन्य कर्मचारी से पूछताछ की. उत्तर मिला, “सबसे भोली सूरतवाली स्त्री को रत्ना  समझिए.”                                                                  मस्तिष्क में रह-रह कर प्रश्न उठ रहा था. रत्ना के बहाने इन दोनों ने अपनी पहचान नहीं बता दी?     

     


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