व्रती
– कान्ता राय
सालों गुजर गए थे, मोहित विदेश से वापस नहीं लौटे.
पतिव्रता अपने धर्म का निर्वाह किए जा रही थी कि आज ऑफिस में काम के दौरान
अशोक दोस्ती से जरा आगे बढ़ गए.
उसने
इंकार नहीं किया और व्रत टूट गया.
बैकग्राउंड
- कान्ता राय
"ये कहाँ लेकर आये हो मुझे।"
"अपने गाँव, और कहाँ!"
"क्या, ये है तुम्हारा गाँव?"
"हाँ, यही है, ये देखो हमारी बकरी और
वो मेरा भतीजा "
"ओह नो, तुम इस बस्ती से बिलाँग
करते हो?"
"हाँ, तो?"
"सुनो, मुझे अभी वापिस लौटना
है!"
"ऐसे कैसे वापस जाओगी? तुम इस घर की बहू हो, बस माँ अभी खेत से आती
ही होगी"
"मै वापस जा रही हूँ! सॉरी, मुझसे भूल हो गई। तुम डॉक्टर
थे इसलिए ...."
"तो ....? इसलिए क्या?"
"इसलिए तुम्हारा बैकग्राउंड नहीं देखा मैने।"
2 comments:
बहुत शानदार दोनों लघुकथाएं
बहुत ही सुंदर, गहरे भाव समेटे हुए ।
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