Saturday, April 25, 2020

छोटी कथाओं की बड़ी बात 6




दृष्टि
संजय पुरोहित

पैसेंजर रेल रेंग रही थी. एक ग्रामीण किशोर रामचरितमानस पढ़ भाव विभोर था. अहिल्या उद्धार प्रसंग पढ़ दोनों हाथ उठाते बोल उठा, ‘जय श्री राम.’   यह सुनते ही कम्पार्टमेंट में शांति छा गई. किशोर सहम गया. सब की नजरें उस पर थी.लाल चश्मे वाले एक बढ़ऊ ने उसे हिकारत से घूरा. भगवा दुपट्टा डाले एक युवक ने उसे गर्व से देखा. एक बुढिया ने नेह भाव से निहारा. दाढ़ी –टोपी वाले अधेड़ ने उसे भयभीत हो देखा.  
  किशोर असमंजस से अपनी त्रुटि ढूंढने  लगा.   



                  



मजा

संजय पुरोहित


बेटे को गली में पतंग लूटते देख, साहब नाराज हुए. डांटते हुए बाजार ले गए. पतंग –मांझा दिलाया और नसीहत दी कि ‘अब कभी पतंग लूटने के लिए नहीं भागेगा.’                            
    बेटे ने सिर हिलाया.                                                            कुछ दिनों बाद साहब ने मोटा हाथ मारा. ब्रीफकेस में डाल घर लौटे. तभी देखा बेटा फिर गली में पतंग लूट रहा था.साहब ने क्रोधित होते हुआ कहा ‘कमबख्त, उस दिन पतंग-मांझा दिलवाया था ना. अब क्यों पतंग लूटने के लिए भागता है?”      
    “पापा, जो मजा लूटने में है, वो खरीद कर उडाने में नहीं है.” बेटे ने उत्तर दिया.                               
साहब कुछ न बोले. ब्रीफकेस को कसकर पकड़ा और घर के अन्दर हो लिए.   

  

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