सिरफिरी
-सुधा भार्गव
“बड़ी कमजोर लग रही
है. क्या बात है? खाती पीती नहीं!”
“खूब खाती हूँ. चाय के साथ काजू बादाम लेती हूँ. दिन में दो बार जूस लेती हूँ. पेटभर रोटी खाती हूँ.जब-तब मार और गाली भी सहन करती हूँ.” “यह क्यों?” “सिरफिरी ! औरत होकर औरत से पूछती है, क्यों?”
“खूब खाती हूँ. चाय के साथ काजू बादाम लेती हूँ. दिन में दो बार जूस लेती हूँ. पेटभर रोटी खाती हूँ.जब-तब मार और गाली भी सहन करती हूँ.” “यह क्यों?” “सिरफिरी ! औरत होकर औरत से पूछती है, क्यों?”
अधूरी परीक्षा
-सुधा
भार्गव
अनेक देवी-देवताओं
की मन्नतों के बाद सुरया के लड़का हुआ था| एक माह के बाद उसके हाथ की हड्डी टूट गई
और प्लास्टर चढ़ गया| हँसते-खेलते बच्चे को पीड़ा से तिलमिलाते देख सुरया के दिल में
दर्द के फफोले फूट पड़ते| उसका बेटा पुजारी की कृपा से हुआ था | ऐसे बच्चे उसके
समाज में देवी के चरणों का प्रसाद है | वह तभी मिलता है जब माँ-बाप परीक्षा में
खरे उतरें | पुजारी ने एक दिन शिशु को मंदिर की छत पर खड़े होकर नीचे फेंक दिया |
बच्चे को लपक तो लिया गया पर उसकी हड्डी टूट गई| उसकी अस्वस्थता की खबर सुनकर
सुरया की बुआ आई और सांत्वना देने लगी| सर पर हाथ फेरा –बेटी, परीक्षा तो तुमने
पास कर ही ली|कुछ दिन में बच्चा ठीक हो जायगा सुरया फूट पड़ी –‘बुआ, अभी तो परीक्षा
अधूरी है| दूसरा बच्चा होने पर उसकी बलि देनी होगी| जो देवी ने दिया उसे लौटना
होगा !
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