Wednesday, December 29, 2010

भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर

 
 भंवरी देवी : एक पब्लिक फिगर



चैतन्य त्रिवेदी



अच्छा बताओ भवंरी देवी, जब वे तुम्हारा चीर खींच रहे थे, तब क्या तुमने सरकार को पुकारा था या गोपाल को याद किया था ?

भंवरी देवी, अच्छा यह बताओ , तुम्हारी जानकारी में यह बात तो होगी ही कि सरकार तो द्रोपदी के समय में भी कुछ न कर सकी थी तो अब क्या करेगी । घटना के दौरान तुम गोपाल को आवाज लगा लेती तो हो सकता है कि गोपाल चीर बढ़ा देते । जैसे द्रोपदी का बढ ाया था।

भंवरी देवी , जांच से पता चला कि तुमने घटना के दिन बहुत सस्ती साड ी पहन रखी थी। पता लगाने की बात यह है कि द्रोपदी के समय जो चीर बढ ाया गया था, वा कौन - सा कपड ा था? कितने पने का था ?

(यह बात संसद में विरोधी दलों को जवाब देने के सिलसिले में पूछी गई) हां तो भंवरी देवी , तुमने गोपाल को नहीं पुकारा पता नहीं, तुमने सरकार पर कैसे भरोसा कर लिया । पता नहीं गोपाल ने द्रोपदी के समय इतना कपड ा किसके थान में से चुराया होगा ? यहां तुम्हें अनावृत कर देने से ........ इस इलाके में कपड ों की कितनी दुकाने है ? वे साडि यां रखते हैं या नहीं । घटना के दिन उनके पास साडि यां थी या नहीं ।

अब आखिरी बात यह है कि टी.वी. पर हमने देखा था तुम्हें। तुम्हारा इंटरव्यू भी। देद्गा - भर ने तुम्हें देखा । अखबारों में पढा । रेडियो से जाना तुम्हारा नाम। तुम पब्लिक फिगर हो गई । मीडिया का यही काम है , पब्लिक फिगर बनाना । द्रोपदी भी आज तक पब्लिक फिगर है और बनी रहेगी।

कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पडता ही है । है ना भंवरी देवी!

Thursday, December 9, 2010

गरीब की वृद्धि दर


आंकड़े बताते हैं कि अब भारत में गरीबी २५ प्रतिद्गात ही रह गई है जबकि अन्य आंकडे बताते है कि भारत की ७० से ८० प्रतिशत जनसन्ख्या  २० रूपए से कम पर गुजारा करती है यह तो तब है जब हमारी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ८ से ११ प्रतिशत है अगर अर्थ व्यवस्था में वृद्धि हुई है तो गरीबी कम होनी चाहिए इस दृष्टि से देखे तो पहला वाला आंकड़ा सही लगता है लेकिन विद्वान लोग दूसरी दृष्टि से भी देखते हैं आर्थिक वृद्धि हुई , धन बढ़े लेकिन वह मलाई उड़ाने वालों की जेब में ही चला गया , इसलिए जो धन 7० प्रतिशत तक पहुंचना था वह पहले से ही पेट फुलाये , धापे लोगों की जेब में चला गया खैर देश का धन तो देश में रहा कम से कम राष्ट्र को तो नुकसान नहीं पहुंचा , चाहे ७० प्रतिशत गरीब को पहुंचा हो । लेकिन कुछ विद्धान कहते है इन २० प्रतिशत खाये - अघायें लोगों में ऊपर के ५ प्रतिशत लोगों ने इतना धन कमाया (लूटा) है कि उसे भारत में नहीं रख सकते सो उन्होनें स्वीस बैंक में जमा करा दिया है , लोग इसे कालाधन कहते हैं। धन कभी काला नहीं होता , उसकी चमक हमेशा बनी रहती है उसे तराशने के लिए जौहरी नहीं चाहिए , वे तो रेडियम की तरह चमकते रहते है , कुछ श्याणे लोगों ने विदेश में बडे - बडे फार्म खरीदे हैं , बंगले खरीदे हैं , होटल खरीदे हैं उद्योग खरीदे हैं , और यह सारा पैसा विदेशों में हवाले के तहत पहुंचा यानि काले धन को सुनहरा करने का विदेश में सुअवसर पाकर हमारे ५ प्रतिशत नागरिक धन्य हो गये हैं राष्ट्र को भी गर्व करने का सुअवसर दिया है कि भारतीय विदेशों में निवेश कर रहे हैं देखा! भारत की प्रगति और यहॉं हम एफ डी आई के लिए चिंतित है , क्या गणित है ! हमारा पैसा विदेश में और विदेश का पैसा भारत में , क्यों नहीं होगा , पूंजी तो वही जायेगी जहॉं उसे मुनाफा हो । उनके बच्चे विदेशों में पढ ते है उनकी छुटि्‌टयां लॉस वे गास में गुजरती है। और शाम को डिस्को , केसिनों और एक्सक्लूंसिव क्लबो में गुजारते है एक दिन का खर्च गरीब के दस साल के खर्च के बराबर , अब ये लोग हुए न राजे - महाराजे  , बेहतर से बेहतर वाइन और वूमेन क्योंकि अपने पास वेल्थ है अब इन तीन का संगम हो जाये तो स्वर्ग धरती पर है आखिर इन्द्र लोक में भी तो देवताओं के पास यही है लेकिन ७० प्रतिशत के लिए तो उन्होनें नरक की रचना कर ही दी है । नरक की रचना करने वालों में राजनेता, उद्योगपति , ठेकेदार कम्पनियां , बहुराष्ट्रीय कम्पनियॉं यानि कॉरपोरेट जगत सभी महारथी, बडे - बडे प्रशासनिक अधिकारी, सरकारी अमला जन जन के लिए नरक रच रहे हैं । सरकार आर्थिक वृद्धि का बाजा बजाती रहती है , 'भारत महाशक्ति' का शखंनाद करती है , ओर  नरक की ओर ध्यान दिलाने पर भी नहीं देखती , क्यों देखे कालापक्ष, देखे तो उजला पक्ष देखें। सो सरकार उजला पक्ष ही देखती है और जनता को भी दिखाती है । उजले पक्ष और पोजेटिव थिंकिंग के ऐसे - ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं कि सारे गरीब लोग इन किस्सों को सुनकर गरीबी की रेखा के पार कूद जायेंगे। इतिहास यह सिद्ध नहीं करता लेकिन सरकार है कि इसे सिद्ध करने पर तुली है।

Thursday, November 18, 2010

तीन कविता

शैलेन्द्र

हिन्दी के सुपरिचित कवि एव वरिष्ठ पत्रकार शैलेन्द्र के अब तक तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। बलिया के मनियार स्बे ५ अक्टूबर १९५६ को जन्मे शैलेन्द्रलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर हैं। पत्रकारिता में एक लंबी संघर्षमय यात्रा पूरी करके इस समय जनसत्ता के कोलकाता संस्करण में प्रभारी संपादक पद पर कार्यरत हैं। कविताओं के साथ ही समय समय पर दिनमान, रविवार, श्रीवर्षा, हिन्दी परिवर्तन, जनसत्ता, कथादेश, पाखी,  आदि पत्र पत्रिकाओं में समाचार कथाएँ, लेख, टिप्पणियों, कुछ कहानियों का प्रकाशन भी होता रहा है

सम्पर्क: , किशोर पल्ली, बेलघरिया
फोन: 09903146990
1
सच के बारे में
आओ
थोड़ा छत पर टहल लें
मकान मालिक के
लौटने तक
चाँदनी तले
थोड़ा हँस-खिलखिलालें
तारों की और नज़र कर लें

कितना अच्छा लगता है
तुम्हारे हाथ में हाथ डालकर
थिरकता खुले आसमान के नीचे
अभी पड़ोस की इमारतें
ऊंचा उठने ही वाली हैं
और उस तरफ
बस रही बस्ती
उफ!
हर तरफ उठ रही हैं लाठियाँ
कमज़ोर जिस्मों को तलाशती
आओ
थोड़ा और करीब आओ
कदम-कदम पर हारते
सच के बारे में
थोड़ा बतिया लें

2
कोलकाता
ऐ मेरे प्यारे शहर
तू जिंदा आबाद रह
तुझको नहीं लगे
किसी दुश्मन की नज़र

न पड़े फिर कभी तुझ पर
किसी अकाल की छाया
दंगे-फसाद से बचा रह
तुझमें फूले-फले
ममता और माया
न लौटे युद्ध
तेरे इरादे
बने रहे
नेक और शुद्ध

करता रह तू
सबकी परवाह
लगे नहीं तुझे
किसी की आह

3
बचपन
एक बचपन
मांगता है
रोबोट राकेट
सुबह सुबह
दूसरा रोटी।

एक बचपन
सिर पर उठा लेता है
पूरे घर को
दूसरा बोझ।

एक बचपन
बनता है मदारी
दूसरा जमूरा।

एक बचपन
पढ़ता है पुस्तकें
दूसरा
कठिन समय को।

बचपन होता है
राष्ट्र का भविष्य ।

Sunday, November 7, 2010

नई परिभाषा

यशेंद्रा  भारद्वाज

‘‘देख रामकली तू परिवार की बडी बहू है इसलिए सर ढाँप कर रखना और  बड़ों के पाँव  छूकर आशीर्वाद लेना ।‘‘

सुहाग सेज पर पति द्वारा दी गई हिदायत को उसने पल्लू से बाँध  लिया था। अपने प्रेम और सेवाभाव से रामकली ने सभी का मन जीत लिया था। जिस देवर को उसने कभी गोद में खिलाया था आज उसकी सगाई की रस्म अदा करने लडकी वाले आ रहे थे।

मन में उठ रहे विचारों को झटक उसने काँजीवरम की साड़ी पहनी , नाक में नथनी पावों को लाल-लाल आलते से और चादी नगों वाले बिछुए  पहन  कर सजाया।

सोलह श्रृंगार कर अपना रूप दर्पण में निहारा और धीरे से साड़ी के पल्लू से अपना सर ढ़ाँप लिया था।

चालीस पार कर चुकने के बाद भी उसकी सुन्दरता ज्यों की त्यों कायम थी किसी नई नवेली दुल्हन की शर्माती सकुचाती वह पति के सामने चली गई थी।

‘‘कैसे लग रही हूँ जी , उसने इठलाते हुए पूछा । ‘‘बेजोड‘‘ परन्तु ये पल्लू सर से उतारो, जानती नहीं क्या तुम्हे इस रूप में देखकर लडकी वाले समझेंगे कि हम असभ्य है, गंवार हैं जो आजकल के जमाने के अनुसार नही चलतें।‘‘ कहते-कहते उसने पत्नी के सर से पल्लू खीच लिया था

उसे लगा था कि जैसे किसी ने उसे भरे बाजार में नंगा कर लिया हो । बडे-बूढ़ो के आगे बिना पल्लू के जाने की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठा था

अब उसका ड़रा सहमा सा मन ‘कुलवधु‘ की नई परिभाषा सीखने की कोशिश करने लगा था ।
अन्धा मोड़     सम्पादक  : - कालीचरण प्रेमी   , पुष्पा रघु

Sunday, October 31, 2010

बन्द दरवाजे

सुरेश शर्मा
श्यामलाल का परिवार सुखी परिवार में गिना जाता था रात को काम पर लौटने के बाद दोनो बेटों व बडी बहू के साथ खाना खाते समय टी वी आन कर लेते । सब मिल कर टी वी देखते हुए दिन भर के दुख-सुख व समाचारों का आदान-प्रदान देर तक करते रहते।श्यामलाल सेवानिवृति तथा पत्नी बिछोह के बावजूद कभी भी अकेलेपन का अहसास नही हुआ।
छोटे पुत्र की शादी हुई । दहेज में अन्य सामान के साथ रंगीन टी वी भी आया । श्यामलाल बच्चों के साथ चर्चा करने वाले थे कि दो टी वी का घर में क्या करेगें ? पुराना टी वी बेचकर नया टी वी रख लेंगे। उनका विचार बाहर आ पाता , उससे पूर्व ही छोटू के कमरे से नए टी वी की आवाज बाहर आ गई । खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। एक दिन बडा पुत्र अपने लिए नया टी वी ले आया । अब खाना भी उनके कमरे में जाने लगा।
एक रात अचानक श्यामलाल के सीने में जोर का दर्द उठा । शरीर पसीने से भीग गया । हाथ-पाव कापने लगे। घबराहट बढने लगी तो पानी पीने के लिए उठे । पैरों ने साथ नही दिया। लडखडा कर गिर पडे । दोनो पुत्रों को आवाज लगाई। बन्द दरवाजों से आती धारावाहिक तथा पाप संगीत की मिलीजुली तेज आवाजों में उनकी आवाज कहीं खो गई।
अन्धा मोड(सं-कालीचरण प्रेमी, पुष्पा रघु)-से साभार

Sunday, October 3, 2010

नाटककार शिवराम नहीं रहे




एक अक्टूबर
को अचानक हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई । वे 61 वर्ष के थे और उर्जा से भरपूर , जन - जन के लिए संघर्ष करने को तत्पर वे एक कुशल संगठनकर्ता , वक्ता और नाटककार थे । सीटू और सी.पी.एम. से आरम्भ कर राजस्थासीटू और एम. सी.पी. आई की यात्रा पूरी की वे एम.सी. पी. आई . के पोलतब्यूरों के सदस्य थे। विकल्प जनवादी सामाजिक सांस्कृतिक मोर्चा के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे , उनके जीवन काल में उनकी ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित हुई । साहित्य में वामपंथी रूझान वाले सभी संगठनों को साझा मंच पर लाने का वे अथक प्रयास करते रहे।
वे नाटककार तो अच्छे थे ही, कुशल अभिनेता भी थे । वे अपने परिवार में भी प्रिय थे उनका व्यवहार पारावारिक सदस्यों से मित्रता का था ऐसे आत्मीय जन का बिछुड़ना हृदय को दुख से भर देता है। मैं उन्हें हार्र्दिक श्रृद्धांजली अर्पित करते हुए उनके परिवार के प्रति आत्मीय संवेदना प्रकट करता हूW।
नाट~य संस्था ‘पलाश’ और ज्ञानसिंधु अपने श्रृद्धा सुमन उन्हें अर्पित करता है।




Sunday, September 19, 2010

क्या पता बेटा !


क्या पता बेटा !

बच्चे ने टी.वी. देखते हुए पिता से पूछा -
‘पापा , ये बुश अंकल ईराक पर बमबारी कर लोगों को क्यों मार रहे हैं ?
‘बेटा कहते हैं सददाम चाचा के पास जैविक व रासायनिक हथियार है जो अगर अलकायदा को दे दिए तो पश्चिमी राष्ट्रों को बरबाद कर देगा ।
‘ पापा ये जैविक - रासायनिक हथियार कैसे होते हैं ?
‘बीमारी के जीवाणुओं और जहरीली गैसों को वातावरण में छोड़कर , लोगों को बीमार कर मार डालते हे।
‘जहरीली गैसों से मारो चाहे बमों से, मरता तो आदमी ही है ’
‘ हा बेटा ! तुम तो अच्छा तर्क कर लेते हो
‘लेकिन बेटा अमेरिका का आदमी स्पेशल है वह पूरी दुनिया को अपनी मुठ~ठी में कर लेना चाहता है
‘पापा आज खबर है कि सद~दाम पकड़ा गया ।
‘हा बेटा , ईराक अमेरिका के अधीन हो गया है अमेरिका कह रहा है कि अब ईराक में प्रजातान्त्रिक सरकार चुनी जायेगी ।
‘क्या वास्तव में ऐसा ही होगा ?
‘होगा लेकिन वह सरकार अमेरिका के आर्थिक व राजनैतिक हित पूरे करेगी । तेल के कुओं पर तो उसने अपना आधिपत्य कर ही लिया है ।
‘पापा , वह जैविक व रासायनिक हथियार वाली बात सही साबित हुई क्या ?
‘ शत प्रतिशत झूठी थी । जिसके आधार पर बुश ने इराक पर हमला किया था ।
‘तो अब सद~दाम पर क्या आरोप लगेगा ।
‘ यही कि डिक्टेटर होते हुए कुर्दो व जनता पर जुल्म ठाने के आरोप ।
‘ इतनी तबाही के बाद बुश इराकियों को प्रजातंत्र का तोहफा देंगे ।
‘पता नहीं बेटा।

शरीफ लोग
एक सुन्दर शरीफ स्त्री , निपट अकेली बीच बाजार में भूल - भूलैया में पड़े चूहे सी भटकती , हर रास्ते और मोड़ पर बैठे शोहदे उसे दबोचने की फिराक में पीछा कर रहे थे । उनकी तत्परता देखने लायक थी ।
'चूहिया अंतत: दबोच ली जायेगी ' उस सुन्दर स्त्री ने सोचा , और मन ही मन कुछ निर्णय किया ।
देखा एक शरीफ अधेड़ आदमी बाजार से कुछ खरीद कर घर की ओर जा रहा था । वह उसके गले पड़ गई - आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर, कब से ढूँढ रही हूँ ' अधेड़ आदमी अवाक देखता रहा - मैं इतनी गई बीती तो नहीं, कसम खाती हूँ तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी ।
शोहदे ठिठक गए - जैसे हाथ से शिकार निकल गया हो शरीफ आदमी ने , बीच बाजार में , लोगों को तमाशे का मजा लेते देख , कहा - यहाँ तमाशा मत बनाओ घर चल कर बात करेंगे ।

गर्मी
अप्रत्याशित ही मध्यावधि चुनाव का एलान हुआ जनवरी का महीना कड़ाके की ठण्ड हाथ - पाँव ठंडे हो गये ।
' वोट तो देना ही है , भाई किसे दें? क्यों दें ? और फिर ठंड में हाड कँपाने क्यों जाएँ ?
' आप उसकी फिक्र न करें , कार्यकर्ता ने आश्वस्त करना चाहा
' तो भई गरम कोट का इन्तजाम हो जाये ।
' हो जायेगा , तुम चलो तो सही , पिछ्ली बार कम्बल बाँटे थे कि नहीं ।
' सो तो ठीक है , मगर
' अच्छा - अच्छा चलो , कार्यकर्ता परेशान होकर बोला '
' वे जीप में बैठ गये । लाईन में खड़े , कोट पहने काँप रहे थे ,
हाथों को रगड़कर गर्मी लाने का उपक्रम कर रहे थे
' कार्यकर्ता से बोले भाई हाथ गरम करो , बड़ी ठंड पड़ रही है , कार्यकर्ता ने झुँझलाकर कुछ नोट रखे उसके हाथ पर , और हिदायत दी - ध्यान रखना ।
यह भी कोई कहने की बात है । उन्होंने दाँत निपोरते हुए कहा ।
अब वे पूरी तरह गरम हो चुके थे ।


दबाव
शासक पार्टी टूट रही थी राजधानियों मे भगदड़ मची हुई थी । दिल्ली में ब्रेक - अवे ग्रुप की बैठक चल रही थी । कुछ विधायक भोपाल से भी गए थे । मुख्यमंत्री पर दबाव डालने का इससे सुनहरा अवसर कौनसा हो सकता था ।
मुख्यमंत्री भी चौकन्ने थे ,
दिल्ली की बैठक से लौटे तो मुख्यमंत्री ने खबर ली ।
' तो आप हमारे घटक के मजबूत कार्यकर्ता हैं ?
वे बगलें झाँकने लगे ।
मंत्रीपद का आश्वासन मिला है '
' नहीं ऐसी बात नहीं है, …
' ठीक है एडजस्ट कर लेगें अगले महीने मंत्रीमण्डल का विस्तार कर रहे हैं । तब तक ये लो हवाई टिकट , अगले सप्ताह डेलीगेशन टोक्यो जायेगा घूम - फिर कर आइये । दर्द उठे तो हमे कहिए , क्यों सीधे दिल्ली भाग जाते हैं ?
जी - अच्छा , और लौटते समय वे आश्व्स्त और सतुष्ट थे ।


खदेड़ना
गांव के छोर पर , जहाँ नदी बहती है तथा जहाँ से जंगल आरंभ होता है , वहाँ सियार हूक रहे थे ।
एक पहर से ज्यादा रात निकल चुकी थी , सर्दी के दिन थे और लोग बिस्तरों में घुसने का इन्तजाम कर रहे थे , किंतु सियारों की हुँआ - हुँआ उन्हें नींद नहीं लेने दे रही थी ।
जैसे ही सियारों की हुँआ - हुँआ तेज हुई , गाँव की गलियों में रहने वाले कुत्ते भी भौंकने लगे । अब तो सोना मुश्किल हो गया गांव का एक कर्रा जवान उठा , लोहा जड़ी लाठी उठाई और कुत्तों के पास जाकर बोला क्यों भौंक रहे हो ?
- हम सियारों को खदेड़ रहे हैं, कुत्ते बोले ।
- अच्छा ! उसने अपनी लाठी उठाई और कसकर मारी , कुत्ते बैं - बैं कर दुम दबाये भागने लगे ।
वह चीखा - इसे कहते हैं खदेड़ना कुत्तों ।













Wednesday, September 15, 2010

गोविन्द गौड नहीं रहे ।


गोविन्द गौड ने यूं तो कविता से ही लेखन प्रारम्भ किया , किन्तु वास्तविक पहचान कथाकार के रूप में ही बनाई। दैनिक मिलाप, वीर प्रताप, सारिका, समांतर, आघात, दिव्य आहूति, सूजन, युवा हस्ताक्षर , आत्मविश्लेषण, आगामी , राजस्थान पत्रिका, लोकशासन आदि देश की कई पत्र पत्रिका , लोकशासन आदि देश की कई पत्र. पत्रिकाओं इनकी रचनाए प्रकाशित हुई है।
लघुकथा एवं लघुपत्रिका आंदोलन से सम्बद्व रह कर, रावतभाटा, स्लापर हि.प्र. पानीपत, कोटा से क्रमश: चन्दिका, संवाद, हिमस्नेह, राकेश दीप तथा कदम्बगंध पत्रिकाओं का सम्पादन किया ।
इनका एक कहानी सन्ग्रह असमांतर व लघुकथासंगह ‘प्रहार प्रकाशित हो चुका है । यह सन्ग्रह प्रहार लघुकथा के कारवां को आगे बढ़ाने में निश्चत ही मूल्यवान साबित होगा।
अन्तिम दिनों में परिवारजनों विशेषत: पत्नी से प्रताड़ित थे, और रात दिन उनके षड़यंत्रों से वे चिंतित रहते थे, कि वे अति मानसकि तनाव के शिकार हो गये , जब भी मिलते इसकी विषय पर वे घंटो बोलते रहते । समस्या सुलझाने के प्रयत्न मित्रों ने किये भी लेकिन वे सब असफल रहे । वे शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होते गए व 18 अगस्त 2010 को इस जग से विदा हो गये।
दिवंगत आत्मा को हमारी ओर से व मित्र लेखकों की हार्दिक श्रद्धांजलि।

Tuesday, August 3, 2010

किस्सा स्थानीय पत्रकार का


किस्सा स्थानीय पत्रकार का
हमारे कस्बें में एक पत्रकार है जो राजधानी से प्रकाशित होने वाले एक प्रमुख हिन्दी अखबार में पत्रकार हैं । अखबार राज्य स्तर का है इसलिए पत्रकार का स्तर भी राज्य स्तर का है । उन्हें अखबार से कोई वेतन नहीं मिलता फिर भी ठाठ से रहते हैं , हजारों रूपये महीने का खर्चा है , आफीस है टेलीफोन है अब फैक्स भी है इज्जतदार लोगों से उनके ताल्लुक है । अखबार के मालिक बहुत होशियार, मुख्य समाचार तो समाचार एंजेंसी से लेते हैं और फी के स्थानीय पत्रकार रख लेते हैं जो गाहक बनाते हैं , पेपर बांटते हैं , विज्ञापन बुक करते हैं और स्थानीय खबरें भेजते हैं । स्थानीय खबरों में थाने - कचहरी की खबरें, कौन गिरफतार हुआ, कोर्ट ने किसको रिहा किया या सजा दी ; मन्त्रियों, अधिकारियो और राजनेताओं के दौरों की खबरें , उदघाटन - शिलान्यास की खबरें धार्मिक व जाति संगठनों की खबरे, दुर्घटना और हादसों की खबरें , कांगस व भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाईयों के छुटमयै नेताओं द्धारा मुख्यमंत्री, मन्त्री यहा तक की प्रधानमन्त्री को ज्ञापन चिठठी देकर स्थानीय समस्याओं का समाधान करने की अपील , जैसी खबरें होती हैं , जो अखबार के खाली कालमों को भरने के काम आती है , जिससे अखबार की बिक्री भी बढ़ती है पत्रकार को एक काWलम में चार इंच की न्यूज का पैसा मिल जाता है विज्ञापन पर भी कमीशन मिलता है लेकिन कमाइ 500 -700 से आगे नहीं बढ़ती । उन्हे अखबार की कमाई से मतलब नहीं है । उनके पास अखबार का दिया पहचान पत्र है जो सरकारी क्या निजी बसों में भी आने - जाने के काम आता है । किसी सरकारी डराना धमकाना हो तो भी पहचान पत्र काम आता है । थाने में तो इस पहचान पत्र की बहुत भूमिका है । कई मामले थाने में रफा दफा करवाकर अपना कमीशन प्राप्त करते हैं । ऐसे ही वे कभी तहसील चले जायेंगे , तहसील के कर्मचारियों पर हाथ रखेंगे , ट्रांसफर की धमकी देंगे , बड़े ही शिष्ट अंदाज में तब तहसीलदार पत्रकार की सेवा करने लगेगा । , वो तहसीलदार जो दूसरों की जेब काटता है , पत्रकार उसकी भी काट लेता है इस मामले में ये ठीक करता है कम से कम समाजवादी कार्य तो करता है । ऐसे कई ठिये हैं मसलन शराब का ठेकेदार , जुआघर के मालिक , नगरपालिका के चेयरमेन , पी.डब्लू डी के इन्जीनियर , सिंचाई विभाग व बिजली विभाग के ईंजीनियर । जैसे उनकी सब कोई सेवा करते हैं जो नही करते वे उनके बहमास्त्र के शिकार हो जाते हैं । उनका बहमास्त्र है आपके खिलाफ न्यूज लगा दूंगा । क्योंकि लोग बदनामी से डरते हैं । कुछेक शरीफ इसलिए डरते है कि नंगों से कौन पंगा ले । लेकिन अधिकतर तो दो नम्बर की कमाई वाले ही होते हैं , जिस पर वे इनकम टेक्स तक नहीं देते ऐसे में पत्रकार अपना चार्ज वसूल कर लेता तो बुरा क्या है । जो सेवा करने नहीं पहुचते उनके बारें में न्यूज लगा देते है, इस वास्ते पार्टियों के संगठन काम आते है। विरोधी लोग स्वयं पत्रकार को अधिकारी @ नेताओं की पोल पटटी मय सबूत देते हैं । पत्रकार महोदय उन सबूतों के फाटो स्टेट कापी संबधित अधिकारी के पहुचा देते है। फिर टेलीफोन पर उनके भले की बात कह देते हैं कि सच्चाई जानने के लिए वे दूसरे पक्ष से भी तथ्यों की जानकारी कर लेना जरूरी समझते हैं सो दूसरा पक्ष आतंकित हो सेवा करने पहुच जाता है ।
स्थानीय पत्रकार ने अधिशाषी अभियंता को फोन किया ‘हेलो एक्स.ई.एन. साब कहिए क्या ठाठ है ‘आपकी मेहरबानी है साहब बोले ’ ‘लेकिन आपकी तो मेहरबानी होती ही नहीं’ स्वर व्यंग्यपूर्ण था कहिए क्या सेवा करूं । सेवा का आपने अवसर दिया ही नहीं , सुना है से भरा एक ट्रक स्टोर से रवाना होकर सीधे साहब के बन रहे नये बंगले पर खाली हुआ है, अब यह लगायें कि ये बंगला कौन से साहब का बन रहा हैं ’ पत्रकार का सीधा लक्ष्य अधिशाषी अभियंता ही थे । परन्तु मजाल है एक बार में ही बात तय की जाकर सौदा पटाया जाये । अधिशाषी अभियंता भी कम घाघ नहीं था। सो उन्होनें पत्रकार महोदय को डिनर पर बुलाकर बताया कि देखों अगर पैसे में सौदा पटाओगे तो नुकसान में रहोगे , ज्यादा से ज्यादा पाच हजार , बस केवल एक बार की कमाई और फिर !पत्रकार हाथों पर चेहरा टिकाये उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे थे । ‘फिर मेरी भी जेब खाली क्यों हो ! सरकारी तिजोरी लबालब भरी है , एक मुठठी मैने निकाली और अगर एक मुठठी आप निकाल लेंगें तो कौनसी तिजोरी खाली हो जायेगी। गंगोत्री से एक लोटा पानी पी लेने से गंगोत्री थोड़े ही सूख जायेगी । ‘तो कैसे क्या किया जाये ! पत्रकार लालायित हो बोले । ‘अभी बगीचों में मिट्टी डालने का टेन्डर निकला है ‘टेंडर मैं भरवा देता हू , काम भी मैं करवा दूंगा तुम तो अपना 20 प्रतिशत प्रोफिट ले लेना ।’ ‘ऐसा हो जायेगा ! ‘हां क्यों नहीं । फिर ऐसे टेंडर निकलते ही रहते है। जैसे देशी खाद लाने के , गडडा खोदने के पेड़ लगाने के , मेरे साथ रहे तो साल में डेढ़ दो लाख की कमाई करवा दूंगा । ‘सच’ उनकी आखें चमक उठी । इससे पत्रकार की स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें भी अपराधियों की गेंग में शामिल कर हमेशा के लिए चुप कर दिया ।

Tuesday, July 6, 2010

गिनती’ व ‘बड़बोला’ ’ का मंचन












बड़बोला गिनती’


निर्देशक :- सविता शर्मा , निर्दे’शक :- आशा भारती
नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए कथाकार बलराम अग्रवाल द्वारा लिखी गई अभिनेय नृत्य-नाटिकाओं ‘गिनती का गीत’ तथा ‘हैं जंगल के राजा आप’ का मंचन ‘गिनती’ व ‘बड़बोला’ नाम से ‘पलाष’’ संस्था के तत्वाधान में माडर्न पब्लिक सीनियर सैकेंडरी स्कूल, रावतभाटा के वार्षिकोत्सव पर मई 2010 में किया गया। इन नाटिकाओं के मंचन का निर्देशन श्रीमती सविता शर्मा व सुश्री आशा भारती ने किया किंडर गार्डन के बच्चों ने इसे अभिनीत किया। ‘गिनती’ नाटिका में शीनम, गुनगुन, खुशी, ज्योति, मेघा, शाहिन, कुसुम, लक्षिता, मुस्कान व सुमन तथा ‘बडबोला’ नाटिका में अमन विशनोई, विजय, पीयूष, विकास गुप्ता, भरत, यश, रतन, भैरू व तनिष ने अभिनय किया । गीत-संगीत व नृत्य के माध्यम से अबोध बच्चों को गिनतियां कैसे सिखाई जायें यह ‘गिनती नाटिका में दर्शाया गया। ‘बड़बोला’ में प्रकृति सरंक्षा का संदेश है। छोटे बच्चों द्वारा अभिनीत इन नाटिकाओं को दर्शकों ने तो खूब सराहा ही नन्हें कलाकारों ने भी खूब मौज-मस्ती से अभिनय करके इनका मजा लूटा।

Monday, June 7, 2010

भगीरथ की कविताएं

पानी








पहाड़ों की विशालकाय चट्टानों से
रिसता पानी
‘ओस’ और फर्न के
कोमल पौधों
के बीच से
रेंगता पानी
पहाड़ी झरनों से
गिरता पानी
चट्टानों से टकराता
बर्फ सा ठंडा जल
पानी रिसता है , रेंगता है
गिरता है , पड़ता है
टकराता है
किंतु , टूटता नहीं
अपना वजूद
बरकरार रखता है
पानी









थोर

पहाड़ी चट~टानो के बीच
उगी लम्बी देहवाली
थोर
अभावों के बीच पली
कुरूप, कांटो भरी
किंतु ,हरित देह की
संवेदनशीलता
कितनी गहन है
खरोंच भर से ही
दूध की तरह उफन कर
बह निकलती है।







नागफनी
उंचे कंकरीले टीले पर
किसने जड़ दिये हैं
मोटे , मोटे
नुकीले कांटो से भरे
हाथ
तमाम भदेसपन के बावजूद
कंकरीले टीले की रेतीली माटी से
जल के बूदों से प्राण ग्रहण करता
जीवन
जीने के संघर्ष की प्रक्रिया में
नागफनी के सूर्ख फूल सा
खिल उठता है।


पकड़
चिड़िया फुद की और
पेड़ पर बैठ गई
आंधी आई
पेड़ हिलता रहा
चिड़िया की पकड़
मजबूत होती रही,


Friday, May 21, 2010

श्याम कुमार पोकरा के कहानी संग्रह 'माँ का आँचल' का लोकार्पण

(दाएं से बाएं दिलीप भाटिया , मनोज कुमार शर्मा , राधेश्याम मेहर , विजय जोशी,भगीरथ, हंसराज चौधरी)








श्याम कुमार पोकरा के कहानी संग्रह "माँ का आँचल " का लोकार्पण दिलीप भाटिया , मनोज कुमार शर्मा, राधेश्याम मेहर , विजय जोशी, भगीरथ, हंसराज चौधरी ने किया इस अवसर पर बोलते हुए भगीरथ ने कहा कि श्याम पोकरा ग्रामीण अँचल के कथाकार हैं । इनकी कहानियों के परिवेश व भाषा में गांव बसा है । सामाजिक सरोकारो से ओतप्रोत होती 'आम का पेड़ , दादी माँ , भ्रूण रक्षा , व माँ का आँचल इस संग्रह की विशिष्ट कहानियाँ हैं 'दाढ़ देवी' कहानी की अपेक्षा सिने पटकथा ज्यादा लगती है 'खप्पर' जबरदस्त कथा है जो अंधविश्वास को उघाड़ते - उघाड़ते उसे पुख्ता कर देती है । लेखक को ऐसे मौको पर सचेत रहने की जरुरत है । वरिष्ठ कथाकार राधेश्याम मेहर ने श्यामकुमार पोकरा से अपने सबंधों का खुलासा करते हुए उनके सरल और आत्मीय स्वभाव से सभी को परिचित कराया । युवा कथाकार विजय जोशी ने प्रतिभावान रचनाकार श्याम पोकरा को बधाई देते हुए कहा कि हर वर्ष कम से कम इनकी एक पुस्तक अवश्य प्रकाशित होती है इनकी सर्जना को सलाम करते हुए आशा व्यक्त की कि उनकी सर्जनात्मकता और आगे तक जायेगी।

Tuesday, May 4, 2010

भीतर का सच


अशोक भाटिया
बच्ची सो चुकी थी । वह खाना खाकर खाली था। उसने काम के हिस्से के तौर पर, ब्रश किया, टी.वी. ऑन किया और बैड पर पसर गया । उधर रमा सुबह के लिए दही जमाने, सब्जी बनाने और कपड़े तहाने के बीच , ताबड तोड घुम रही थी । वह खाली हुई तो पति ने बाहरी दरवाजे बंद कर दिये ।
''आज तो कई दिन हो गये..........'' विशाल ने चादर खोलते हुए कहा
''इस वक्त तो में थककर चूर हो जाती हू।...........'' रमा ने कमर सीधी करते हुए कहा।
वह सोना चाहती थी, पर उसने सोचा - ''ये नाराज हो गये , तो जो थोड़ा बहुत काम करते हैं , वह भी नहीं करेंगे''
''अब तो रितु ढाई साल की हो गई ! '' विशाल ने रमा को चादर ओढते हुए कहा
''अभी बहुत छोटी है, थोड़ी और बड़ी हो जाये......''
''.......''
''मैं तो कहती हूँ..... एक बच्चा ही काफी है हम दोनो नौकरी - पेशा है। बच्चे पालने आजकल बड मुश्किल है ...''
''जो आयेगा, वह पल भी जायेगा... हमे क्या कमी है? ''
सुनकर रमा पल - भर सोच में डूब गई .... फिर मुस्कान और गम्भीरता को जोड कर बोली -''अच्छा एक बात बताओ... अगर हमारा पहला बच्चा लड का होता, तो भी क्या दूसरे के बारे में सोचते ? ''
''तो क्या तू यह कहना चाहती है , कि मैं लड के की चाह में ही , दूसरा बच्चा कह रहा हूँ !'' विशाल ने अपने मन पर प्रश्न -चिन्ह को तुरंत हटाना चाहा ।
''आदमी लाख लबादा ओड कर आ जाये , औरत उसका मन ताड ही लेती है!'' यह सुनकर विशाल मानो हिल गया। उसने सोचा -''इसे आज क्या हो गया है! '' और सहज होने की कोशिश करते हुए उसने कहा -''तो चलो , इसमें बुराई क्या है? लडकी तो है ही लड का भी हो जायेगा , तो जिंदगी में दोनो तरह का ऐक्सपीरियंस हो जायेगा.......''
''लेकिन यह तो किसी के बस का नहीं , कि क्या होगा ? कार्नर वाले देसराज ने इसी चक्कर में पॉच लड कियॉं पैदा कर ली। अब पछता रहे हैं!'' विशाल के मर्म पर चोट पड़ी थी , ''क्यों नहीं किसी के बस का ..?'' तिलमिलाते हुए वह बोला -''कई औरतें तो लड कियों का ठप्पा लेकर आती हैं!''
''ऐसी बात नहीं!'' रमा ने थोड़ा खिसकते हुए कहा- ''औरत तो मर्द का ही सूक्ष्म रूप होती है।''
''मर्द तो सप्लाई ही कर सकता है ग्रहण तो औरत को करना होता है वह क्या ग्रहण करती है। इसी पर सब कुछ है!'' विशाल रौ में कह गया।
सहसा दोनों के बीच एक सन्नाटा पसर गया रमा दीवार पर टंगे, अर्द्ध नारीश्वर का चित्र देखने लगी उसने सोचा-''औरत तो सिर्फ सॉंचा है।''
थोड़ी देर बाद विशाल की ओर मुड कर वह बोली -''सांइस तो आपने भी पढी है। औरत के पास तो सिर्फ एक्स गुण होते हैं । मर्द के पास एक्स और वाई दोनों होते हैं'' वह गम्भीर हो गई थी,
विशाल ने उसकी बात नहीं सुनी। वह अभी उसका पिछला तर्क ही पचा नहीँ पाया था वह बोला - ''हो सकता है वाई गुण तूने लिए ही न हो....''
''ऐसे तो मैं भी कह सकती हूँ कि हो सकता है आपसे सिर्फ ऐक्स गुण ही आये हों.... ''रमा भी रौ में कह गई,
यह सुनकर विशाल पूरी तरह जल - भुन गया ,उसेन मूँह दूसरी तरफ घुमा लिया रमा ने उसके हाथ में हाथ रखते हुए कहा-''यह सब तो संजोग होता है , इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता न आप, न मैं....''
विशाल का मन अभी बड़ा नहीं हो पा रहा था, हालांकि बात उसे जॅंच जरूर गई थी।
(अंधेरे की ऑंख पुस्तक से)

Monday, April 12, 2010

धर्म - संस्कृति


प्रश्न पत्र
विषय - धर्म - संस्कृति

प्रश्न १ धार्मिक उन्माद धर्म है ? क्या उन्माद पैदा करने वाले लोग धार्मिक होते हैं ?
२ क्या गुबंद का तोड़ा जाना परम सौभाग्य का प्रतीक है ? क्यों?
३ गुलामी के एक प्रतीक को नष्ट करना क्या हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य नहीं ? इस सन्दर्भ में यह बताइए की मस्जिद का तोड़ना राष्ट्रीय कर्त्तव्य कैसे हो गया ।
४ ६ दिसम्बर १९९२ भारतीय इतिहास में शौर्य दिवस माना जायेगा क्यों?
और क्यों कुछ लोग इसे काला दिवस के रूप में मनाते हैं ?
५ जो भारतीय संस्कृति नहीं अपनाता उसे भारत में रहने का हक नहीं क्या आप इस कथन से सहमत हैं स्पष्ट कीजिए
६ भारतीय संस्कृति हिन्दु संस्कृति है या साझी गंगा -जमुनी संस्कृति । विद्यार्थी अपने इतिहास /अनुभव के ज्ञान के आधार पर बताए
७ रामलला ने कहॉं जन्म लिया यह इतिहास का नहीं है यह प्रश्न आस्था का है इस संदर्भ में बताइये कि क्या राम ऐतिहासिक पुरूष थे अगर थे तो उनका जन्म स्थान ऐतिहास प्रश्न क्यों नहीं है
८ पाकिस्तान क्रिकेट टीम जब भारत की टीम से जीतती है तो किन क्षेत्रों में पटाखे छोड जाते है मिठाई बॉंटी जाती है यह मिथ है अर्द्धसत्य या वास्तविकता ।
९ हम पॉंच हमारे पच्चीस मुहावरा किस समुदाय के संदर्भ में रचा गया है? और किसने रचा है
१० कुछ लोग मानते हैं कि कुछ वर्षो में अल्पसंखयक बहुसंखयक हो जायेंगे । क्या आप इस मत से सहमत हैं तो तुलना कर बताइये सन१९८१ व २००१ में भारत की कुल जनसंख्या में मुसलमान कितने प्रतिशत थे।
११ हिन्दु जागरण मंच किसको जगाता है और किसके विरूद्ध जगाता है यह मंच धार्मिक अंधविश्वासों सामाजिक कुरीतियों और जातिवाद के विरूद्ध जागरण क्यों नहीं करता ।
१२ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा बहुसंख्यकों की सद्इच्छा पर निर्भर है विश्व हिन्दु परिषद के किस नेता ने कहा किस राज्य के घटनाक्रम के सन्दर्भ में कहा क्या आप इससे सहमत है स्पष्ट कीजिए
१३ अप्रवासी भारतीय हिन्दु संगठनों को करोड़ों का चन्दा क्यों देते है दूर देद्गा में रहकर भारतीय संस्कृति बनाम हिन्दु संस्कृति क्यों प्यारी लगती है ।
१४ राम मर्यादा पुरूष है क्या श्रीराम कहने वाले किसी मर्यादा को मानते है
१५ रथ यात्राओं में कौनसी रथ यात्रा प्रसिद्ध है इस प्रसिद्ध रथयात्रा से धार्मिक जागरण हुआ या धार्मिक उन्माद इसका राजनीति में क्या फायदा हुआ
१६ उन दो सन्यासिनों के नाम बताओ जिन्होंने अपने प्रवचन में घृणा और आक्रमकता को हिन्दु धर्म का गहना बनाया।

Wednesday, March 31, 2010

मंच के कवि

मंच के कवि

उभरते हुए युवा कवि जिसे देखा उसे पकड़कर ले गये और अपनी कविता पेल दी । हालांकि कविता सुनाने के पहले चाय कचौड़ी का आदेश दे मारते थे । उन्हें फायदा यह हो जाता था कि एक श्रोता को ही चाय कचैड़ी खिलानी पड़ती थी और उसे माध्यम बनाकर वे पूरे रेस्त्रां के ग्राहकों को अपनी कविताएं सुना डालते थे । सुनाने के बाद , वे प्रतिक्रिया जानने की गरज से , लागों के चेहरे देखते । कोई न कोई कह ही बैठता - वाह साब आप तो कमाल की कविता करते है।
वे जब कभी अखबार देखते केवल कवि सम्मेलन की खबरे पढ़ते थे । अगर उन्हें मालूम हो जाये कि आने वाले दिनों में फलां जगह कवि सम्मेलन है , तो वहाँ पहुँच जाते , आयोजकों से सम्पर्क करते । कहते - मै रेवाड़ी कवि सम्मेलन से आ रहा था आपके प्रोग्राम के बारे में मित्रों से सुना तो आ गया - चलो कुछ नहीं तो यहाँ का कवि सम्मेलन तो सुनेंगें ।
सुनाइये क्या लिखते हैं आयोजकों ने पूछा
अरे साब लिखते तो कुछ नहीं है मगर सहारनपुर में लागों ने जो प्यार दिया है मैं उसे भूल नहीं सकता आयोजकों को मजबूरन हजार रूपये की राशि देनी पड़ी । एक दो वजनी व्यंग्य कविता सुनाकर प्रभावित करते । फिर परिचय देते , पूरा परिचय लेंगे । व्यक्तिश: घुलेंगे मिलेंगे और दोस्ती गाँठेंगे ।
होता अक्सर यह था कि उन्हें चांस मिल ही जाता था थोड़ी - बहुत दान दक्षिणा भी । फिर वे इस बात का ध्यान रखते कि कवि सम्मेलन की रपट अखबारों में भेजते , दो तीन प्रसिद्ध नाम के बाद अपना नाम घुसेड़कर लिखते थे कि युवाकवि कल्पित की हास्य व्यंग्य कविताओं पर खूब तालियाँ पिटी ।
अखबारों की कटिंग सहेजकर रखते थे जैसे विद्यार्थी अपने प्रमाण पत्र सम्भाल कर रखता है , इस तिकड़म से उन्हे विशेष फायदा नहीं हुआ तो नई योजना बनाई , किसी प्रसिद्धकवि के नाम से , वे स्वयं आयोजकों को चिठ्ठी लिखते कि कवि कल्पित को जरूर बुलाया जाये मंच पर नई जमीन तोड़ रहे है।
धीरे - धीरे उन्होने काम के आदमियों को पकड़ा , जो उन्हें कवि सम्मेलन दिलवा सके । इसके लिए उनके पास एक अमोध अस्त्र था ।
हमारा विभाग वर्ष भर में दो कवि सम्मेलन करवाता है । यहाँ अपने अलावा है कौन ? निमन्त्रण मैं ही भिजवाता हूँ आप निश्चित रहे अगली बार निमन्त्रण आपके पास पहुंचेगा कई बार ऐसा होता भी कि उनकी लिस्ट से भी कवि बुलवा दिये जाते । जिनकों भी आफीशियल निमन्त्रण जाता अपनी तरफ से और चिठ्ठी लिख देता कि निमन्त्रण भिजवा रहा हूँ , अवश्य आइयेगा आदि । फिर इन्कवारी भी कर लेते इन्दौर या जयपुर कवि सम्मेलन का क्या हुआ । मुझे निमन्त्रण भिजवा रहे हैं न ?
अब सुनते हैं महीने का दस हजार रूपया औसतन कमा लेते हैं आयोजकोंकी बोतलें, अण्डे और चिकन साफ कर लेते हैं मंच पर वे कवि के बजाय एक्टर हो जाते हैं , भावुकता में आवाज भर्रा जायेगी आखें भर आयेंगी , चेहरे पर करूणा के भाव आ जायेंगें
करूणा व्यंग्य लिखते हैं अजमेर में लड़कियाँ इसी तरह कारूणिक आख्यान पर रो पड़ी थी । जाहिर है रोते हुए आदमी को देख , श्रोता कम से कम सहानुभूति अवश्य दिखाते ।

वे असंतुष्ट थे कि कवि पाँच पाँच हजार कूट लेते हैं एक कवि सम्मेलन। दिल्ली में ए - वन फलेट है गाड़ी है , आधुनिक सुख - सुविधायें हैं मुझे अभी भी क्लर्क की नौकरी करनी पड़ रही है
आयोजकों को राजी करने के लिए , प्रोग्राम खत्म हाने पर नोन - वेजिटेरियन कविताऐं, चुटकुले या दौहे सुनाते ताकि उनका दिल जीता जा सके और अगली बार का निमन्त्रण पक्का हो ।

एक बार आत्मीय क्षणों में उनसे बात होने लगी -
- आखिर आप मंच क्यों चाहते हैं ?
-(आत्मविभोर होकर) हजारो - हजार श्रोता मेरा नाम सुनेंगे ।
-क्यों आपकी कविता नहीं सुनेंगे ।
-कविता तो माध्यम है । इस माध्यम से सुन तो मेरा नाम ही रहे हैं
-जब तालियाँ बजती हैं तो
-तो मैं आत्म मुग्ध हो जाता हूँ मेरी जय जयकार हो रही है
-यानि आपकी कविता कहीं नहीं होती ।
-वे बोले जा रहे थे - आयोजक सम्मान करते है। कविगण स्नेह करते हैं । कवत्रियाँ भी अतिस्नेह रखती है। महिला श्रोता ओटोग्राफ लेती है। चाय पर बुलाती हैं । बस मजे ही मजे हैं ।

Wednesday, March 10, 2010

कानूनी किताबों के बारे में


कानूनी किताबों के बारे में

जरा ऊंची देकर पटखनी दो तब कहीं जाकर कमाई होती है,कानूनी किताबों के भरोसे कमा खाना यहॉं असम्भव है। मुवक्किल ही तुम्हारा मुर्गा है और मुवक्किल ही तुम्हारी मुर्गी तुम चाहो तो मुर्गा काट लो और तुम चाहो तो मुर्गी के अण्डे खाते रहो ,जैसा उचित समझो।

एफ.आई.आर दर्ज होते ही या गिरफतारी होते ही मुजरिम वकील की टोह लेता आपके पास आयेगा,आपका फर्ज है कि उसे बैठने को कहे,उसे पीने को पानी दें,साथ ही तसल्ली दें आवश्वस्त करें की घबराने की बात नहीं है,अभी निपटा देते है।

जैसे ही वह आस्वस्त हो उसे आई .पी .सी.के प्रावधान बताएं और तफसील से बताए,कि इस जुर्म में कम से कम तीन साल की जेल होगी हाकिम के कर्रा होने के किस्से सुनाएं। डी.वाई.एस.पी. के ईमानदार होने के वाकिए बताए। और बताए कि यह काम बहुत मुश्किल है,पुलिस पर राजनैतिक दबाव लाना होगा,हथकड़ी तो लगेगी,पुलिस रिमांड मांगेगी,हाकिम जे.सी. देगा और चार्जशीट भी पुखता तय करेगी पुलिस।

लेकिन चिंता करें,मैं जो हूं,आप निश्चिंत रहे आखिर वकालात कर रहे हैं भाड़ नहीं झौंक रहे है। फिर उसे चाय पिलाए,पीने को सिगरेट दें और उसके साथ आए लोगों को आश्वस्त करें कि आपने किस तरह इससे भी कठिन केस मुजरिम के हक में हल करवाएं है।

स्टडी में रखी हजारों किताबों की तरफ इशारा करे,एक दो खोल कर देख लें और कहें कि आपको रिलीफ मिलेगा। हालांकि कोई वकील गारंटी नहीं देता,लेकिन आप आश्वस्त रहें, मुझे पूरा विश्वास है आपको रिलीफ मिलेगा।

इतनी सुनने पर वह उबने लगेगा, उसे जल्दी है, उसे तुरन्त मुद्‌दे पर आने की जरूरत है, वह पूछेगा इसमें कितना पैसा लग जायगा। आप पूछें कि केस थाने में सलटाना है या कोर्ट में।

वकील साहब,आप थाने चलिए,पुलिस ने उसे अपनी कस्टडी में ले रखा है,पुलिस बेरहमी से मारती है वह घबड़ा जायेगा , पहले उसे देखिए बाद की बात बाद में देखेंगे। आप तुरन्त रवाना हो फोन पर थानेदार से बात करें और बताएं कि आप रहे हैं। पूछें कितने रूपये लेकर आये हो वे एक -दूसरे की तरफ देखेंगे,एक आध अपनी अंटी की तरफ देखेगा तगड़ी पार्टी होगी तो बोलेगी कितना लगेगा,आप कहें अभी पॉंच हजार दे दें बाकि की बात बाद में कर लेगें।वे तीन निकाल कर देंगे।

थाने जाएं,थानेदार से बात करें,मुजरिम के सगे से कहे,साहब के लिये ठण्डा लायें,सिगरेट का पेकेट लायें, थानेदार कर्रा पड जायेगा।मैं कुछ नहीं कर सकता आप साब से बात कर लें।

आप डी.वाई.एस.पी.की चेम्बर में जाएं कुछ और बात करें बाहर निकल कर अपने मुवक्किल के हमदर्द को बताएं ,वह बात थानेदार की पहुंच से बाहर चली गई है।इस तीन हजार से आपका काम नहीं होगा।और जेब से तीन निकालकर उनके हाथ में रख दें। वे नहीं नहीं कर ्पैसे आपको लौटा देंगे और अन्टी से दो हजार निकाल कर आपके हाथ में दे देंगे उनसे कहें आप बाहर बैठें,मैं मुजरिम से बात करूंगा,कॉंपते मुजरिम को तसल्ली दें। अभी बाहर निकलवाता हूं घर वाले खाना लेकर आएं है लेकिन पुलिसवाला उन्हें खाना नहीं देने देता है।कस्टडी में जहॉं हे वही कोने में मूत रहा हे,दुर्गन्ध रही है फिर मिलें थानेदार से चुपके से,दो हजार उन्हें दे,फिर मुजरिम को छुड़ा कर,उसके हमदर्द के हवाले कर दें,और ताकिद कर दे कि सुबह सात बजे के पहले मुजरिम फिर थाने में हाजिर हो जाएं यहॉं से पुलिस उसे कोर्ट में पेश करेगी। जब पक्की हामी भरें तो उसे जाने दे।

कस्टडी में पिटाई नहीं होती है तो उसकी रेट है,आरोपी से मिलने का भी रेट है,थाने के परिसर में घूमने की रेट चाय समोसे,सिगरेट मंगा कर खा पी सके इसके लिए जेब में पैसे रखने की छूट है मगर चार्ज है कि थाने के सभी कर्मचारी /सिपाही चाय वगैरह पीयेंगे।बिना हथकडी लगे कोर्ट में पेश होना है या हथकडी लगाकर गली - घूमाकर थाने ले जाने में जो भी पसन्द है इसकी छूट भी पुलिस देती है

कोर्ट परिसर में पॉंव रखते ही हाकिम, पी.पी.,पेशकार,बाबू,मुंशी और चपरासी सबके नाम के पैसे प्राप्त करें फिर अपनी फीस भी प्राप्त करें सबके नाम का पैसा लेने से एक फायदा यह होता है कि मुवक्किल को तसल्ली हो जाती है कि अब यह काम होगा।बताइये यह कमाई कानूनी किताबों से हो सकती है।क्या कानूनी किताबों में इस कमाई की तरफ कोई ईशारा किया गया है।

बेहतर तो यह है कि किसी न किसी हाकिम से आपकी सेटिंग हो तब प्रेक्टीस ऐसी दौड़ेगी कि ब्रेकर लगाने पर भी नहीं रूकेगी।

संगीन मामला अगर महीने में एकाध भी हाथ लग जाये तो महीनों की कमाई खरी हो जाती है। हाकिम,पी.पी और पेशकार से सेटिंग रखने के लिए मोटी पुस्तके काम नहीं आती है ही कानूनी दलीलें हकिम की त्यौहार पर भेंट पूजा करें,दावत आदि पर बुलाते रहें रोज कुछ कुछ कमाई करवायें तब आपका दबदबा और रूआब बनेगा। इतना ही नही कि आप थाने और कचहरी तक ही अपने आप को सीमित कर ले,आजकल मुखय राजनैतिक पार्टियों में आपके टाउट होने चाहिए जो आपकों केस ही लाकर नहीं देंगे बल्कि वक्त जरूरत राजनैतिक दबाव लाने में भी आपकी मदद करेंगे, राज किसी पार्टी का हो,आपको हर पार्टी अपना समझे।कई काम तों मेल मिलाप से ही निपट जाते है। खासतौर से समझोते करवानें में यह कला काम आती है और केस के फैसले तक आपको इन्तजार नहीं करना पडता,पता नहीं ऊँट किस करवट बैठे अतः समझौते करवा लो कोर्ट भी हमेशा समझोते के हक में रहती है हाकिम को फ़ैसले नहीं लिखने पडते और फाईल निपट जाती है टारगेट पूरे हो पाते और प्रमोशन लेकर उपर की कोर्ट में चले जाते है।

कानूनी पुस्तके वकील का गहना है जो मुवक्किलों पर रौब मारने के काम आता है या यू कहें उन्हें फॉंसने के काम में आता है अब मुवक्किल भी बेवकूफ नहीं रह गये है वे तहकीकात करते हैं कि कौनसे वकील की सबसे अच्छी सेटिंग है और कौन उन्हें रिलिफ दिलवा सकता है।